मंगलवार, जुलाई 30, 2013

ज़िन्दगी हारी नहीं ... (क्षणिकाएं)

एक होड़ सी मची है बिकने के वास्ते 
साँसों को समेटे हैं मरने के वास्ते, 
जिंदगी का ये तमाशा कितना अजीब है 
क्या क्या जतन हैं करते जीने के वास्ते !
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"रूह ने उसकी कहा मरघट से कल ये दोस्तों

उम्र ही हारी है मेरी ज़िन्दगी हारी नहीं" !!

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कश्ती भी नहीं बदली, दरिया भी नहीं बदला,
हम डूबने वालों का, जज्बा भी नहीं बदला,
है शौक–ए-सफ़र ऐसा कि, एक उम्र हुयी हमने,
मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला …
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उनके पायलों की छनछनाहट 
मेरे दिल को झनझनाती हैं !
वो एक दिन राह से गुजरी थीं
राहें आज तक गुनगुनाती हैं !

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-- Prakash Govind 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. सभी क्षणिकाएँ बहुत उम्दा और अर्थपूर्ण हैं.
    ख़ास कर ज़िंदगी के वास्ते..पहली क्षणिका में दर्दीली सच्चाई है.

    दूसरी क्षणिका 'कश्ती भी नहीं बदली'...गहन भाव-अभिव्यक्ति दर्शाती है
    'रूह ने उसकी कहा'..चंद शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है.

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  2. है शौक–ए-सफ़र ऐसा कि, एक उम्र हुयी हमने,
    मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला …

    bahut hi sundar
    kya taareef karun
    dil ko chhu gayi

    जवाब देंहटाएं

'आप की आमद हमारी खुशनसीबी
आप की टिप्पणी हमारा हौसला' !!

संवाद से दीवारें हटती हैं, ये ख़ामोशी तोडिये !!
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