शुक्रवार, जनवरी 16, 2009

अंध विश्वास का मायाजाल

andh vishvas

क्या टी वी...क्या अखबार...क्या मैगजीन...सब जगह तंत्र-मंत्र , ज्योतिष , टैरो-कार्ड, फेंग-सुई-वास्तु का जाल फैला नजर आता है ! देश की आजादी के पश्चात संपन्न वर्ग के ज्यादातर लोग कभी इतने अन्धविश्वासी नहीं रहे जितने कि आज हैं ! आज समाज का शिक्षित और सुविधाभोगी वर्ग जिस तरह अपने जीवन में तर्क-विरोधी होता जा रहा है - वो शर्मनाक व निराशाजनक है !

न्तर केवल इतना है कि संपन्न लोगों के ओझा और बाबा भी खाते-पीते वर्गों से आने लगे हैं ... धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलते हुए लेटेस्ट टेक्नोलोजी से संपन्न ! हाथों में पचास हजार का मोबाईल है तो उँगलियों में शनि निवारण हेतु गोमेद धारित अंगूठी भी है ! आज मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत मोटी तनखाहें लेने वाले अधिकारी, करोड़ों में खेलने वाले फिल्म और ग्लैमर की दुनिया से जुड़े लोग, बुद्धिजीवी समझे जाने वाले प्रोफेसर, आधुनिकता का पर्याय फैशन डिजायनर व इंटीरिअर डेकोरेटर वगैरह का तंत्र-मंत्र के प्रति विशवास देखकर कौन कह सकता है कि इनका ज्ञान, शिक्षा, आधुनिकता और शेष जगत से कोई रिश्ता भी है !

नके डिजाईनर कपड़े इनके आतंरिक खोखलेपन और उनके इस मानसिक दिवालियेपन को बस किसी तरह छुपा लेते हैं ! आज स्थिति यह है कि समाज के सबसे संपन्न तबकों के लोग अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए किसी भी तरह की हास्यास्पद और ऊलजलूल की सीमा तक जाने को तैयार हैं , हर तरह के टोटके करने को तैयार हैं !

मारा आज का पढ़ा-लिखा, संपन्न वर्ग जो ऊपर से तो अत्याधुनिक, आत्मविश्वासी दिखायी पड़ता है, मगर अन्दर से पिछडा और डरा हुआ है ! इसीलिये बाबाओं-तांत्रिकों के धंधे भी अब ज्यादा तेजी से पनप रहे हैं ! इन्हे मीडिया का भरपूर समर्थन भी मिल रहा है ! इनके पास आने वाले ऐसे लोग बहुत हो गए हैं, जिन्हें जल्दी से जल्दी बहुत ज्यादा पैसा चाहिए, बहुत बड़ी पदोन्नति चाहिए, अपने बच्चे का किसी ख़ास शिक्षा संस्थान में दाखिला चाहिए, किसी को अपने पति या पत्नी को किसी प्रेमिका या प्रेमी से चक्कर से छुड़वाना है तो किसी को पुत्र प्राप्ति के बिना स्वर्ग का द्वार बंद दिखायी दे रहा है !

स्थिति दर्शाती है कि जिस वर्ग ने आजादी के बाद समृद्धि की सबसे ज्यादा मलाई उल्टे-सीधे तरीके से बटोरी है, वही इस समय सबसे अधिक हताश और परेशान है क्योंकि उसे अपने सिवाय दुनिया में कुछ नहीं दिखता ! स्त्रियाँ सार्वजनिक जीवन में इतनी तेजी से आई हैं कि स्त्री-पुरूष समीकरण बदल गए हैं और उससे जो नई-नई जटिलताएं पैदा हो रही हैं, उनसे न तो स्त्रियाँ निपट पा रही हैं और न पुरूष ! समस्या को समझने के बजाय इसका वे काल्पनिक समाधान ढूँढने में लगे हैं !

वर्ग के लोगों ने सफलता का गुरुमंत्र अपने पास रखने के लिए धार्मिक होकर देख लिया, साम्प्रदायिक होकर देख लिया, जातिवाद भी आजमाकर देख लिया, मगर समस्या वहीँ की वहीँ है और यह होना ही था ! बेईमानी, भ्रष्टाचार और आपाधापी से कमाया गया धन जीवन को निश्चिंतता नहीं दे पा रहा है ! शायद इसी से घबराकर और परिवर्तन की किसी भी मुहिम में शामिल होने में अक्षम इन वर्गों के लोग अब अतार्किकता और अंधविश्वास की शरण में हैं ताकि वहां से शायद कोई प्रकाश, कोई उजाला, कोई उम्मीद दिखायी दे जाए और उनका उद्धार हो जाए, लेकिन क्या ऐसा होगा ? क्या वक्त नहीं आ गया है कि लोग पूरे समाज की स्थिति की तमाम जटिलताओं को तर्कसंगत ढंग से समझने की कोशिश पहले से ज्यादा करें !

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