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सोमवार, जून 13, 2016

सभ्य समाज में कहाँ है कोई दलित ?


एक आम आदमी सुबह जागने के बाद दाँत ब्रश करता है, नहाता है, कपड़े पहनकर तैयार होता है, अखबार पढता है, नाश्ता करता है, घर से काम के लिए निकल जाता है.....बाहर निकलकर रिक्शा करता है, फिर लोकल बस या ट्रेन पकड़कर ऑफिस पहुँचता है, वहाँ पूरा दिन काम करता है, साथियों के साथ चाय पीता है, शाम को वापिस घर के लिए निकलता है.घर के रास्ते में एक सिगरेट फूँकता है, बच्चों के लिए टॉफी, बीवी के लिए गजरा लेता है, मोबाइल में रिचार्ज करवाता है, और अनेक छोटे मोटे काम निपटाते हुए घर पहुँचता है.... 
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अब आप बताइये कि उसे दिन भर में कहीं कोई दलित मिला ??  क्या उसने दिन भर में किसी दलित पर कोई अत्याचार किया ?? 
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उसको जो दिन भर में मिले, वो थे अख़बार वाले भैया, दूध वाले भैया, रिक्शा वाले भैया, बस कंडक्टर, ऑफिस के मित्र, आंगतुक, पान वाले भैया, चाय वाले भैया, टॉफी की दुकान वाले भैया, मिठाई की दूकान वाले भैया ..... जब ये सब लोग भैया और मित्र हैं तो इनमें दलित कहाँ है ? 
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क्या दिन भर में उसने किसी से पूछा कि भाई, तू दलित है या सवर्ण ? अगर तू दलित है तो मैं तेरी बस में सफ़र नहीं करूँगा, तुझसे सिगरेट नहीं खरीदूंगा, तेरे हाथ की चाय नहीं पियूँगा, तेरी दुकान से टॉफी नहीं खरीदूंगा ...... क्या उसने साबुन, दूध, आटा, नमक, कपड़े, जूते, अखबार, टॉफी, गजरा खरीदते समय किसी से ये सवाल किया था कि ये सब बनाने और उगाने वाले दलित हैं या सवर्ण ? 
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आम तौर पर हम सबके साथ ऐसा ही है, शायद ही कोई आजकल के युग में किसी की जाति पूछकर तय करता है कि फलां आदमी से कैसा व्यवहार करना है. 
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हम सबकी फ्रेंडलिस्ट में न जाने कितने दलित होंगे....क्या आज तक किसी ने कभी भी उनकी पोस्ट लाइक करने से पहले, या उसपर कमेन्ट करने से पहले उनकी जाति पूछी ? क्या किसी से कभी कहा कि तुम दलित हो इसलिए मेरी पोस्ट पर कमेन्ट मत करो ? 
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जब रोजमर्रा की जिंदगी में हमसे मिलने वाले दलित नहीं होते, तो उनमें से कोई मरते ही दलित कैसे हो जाता है ?? 
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जाति धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को नकार दीजिये.......ये हमें असंगठित कर के हम पर राज करना चाहते हैं......सभी जाति, धर्म के , हम भारतीय मिलकर इन्हें खदेड़ दें. 
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संगठित हो जाइये.....हम सब भारतीय हैं.

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भारत का पक्का बदमाश : "महात्मा गांधी"


1939 अक्टूबर माह की एक दोपहर 12 बजे एक छोटे से स्टेशन पर रेल गाड़ियों की क्रासिंग हो रही थी। एक बंगाली युवक गांधी से भेंट करने सेवाग्राम जा रहा था। तभी उसे गाड़ी में पता चला कि गांधी तो क्रासिंग के लिए बाजु खड़ी ट्रेन से दिल्ली जा रहे हैं। 
...... 
वह फटाफट उतरा और पास खड़ी में गांधीजी के डिब्बे से बिलकुल सटे हुए डिब्बे में चढ़ गया । चढ़ते ही उसने अपने झोले से एक पुस्तक निकाली उसका शीर्षक था - "भारत का पक्का बदमाश : महात्मा गांधी " 
.... 
पुस्तक का शीर्षक देखते ही सहयात्री एकदम उछल पड़ा और उस बंगाली युवक से पूछ बैठा - अरे भाई ये कैसा टाइटल है बुक का, और तुमने ट्रेन क्यों बदली ? 
... 
युवक ने बताया मेरे मालिक और गुरु गोविन्ददास कौन्सुल ने ये किताब लिखी है और इस की सम्मति लिखवाने के लिए मैं गांधीजी के पास सेवाग्राम जा रहा था। पर इस जगह मालूम हुआ कि गांधीजी तो बगल में खड़ी रेल से अपनी मण्डली के साथ दिल्ली जा रहे है सो मैं यही उतर गया और इस ट्रेन में सवार हो गया और अब मैं पास वाले डिब्बे में जाकर गांधीजी से इस पुस्तक पर सम्मति के दो शब्द लिखवाऊंगा। 
भौचक हुआ सहयात्री बोल पड़ा - अरे भाई पुस्तक का नाम तो थोडा ठीक-ठाक रखा होता और मुझे तो नही लगता की गांधीजी इस पर सम्मति भी लिख देंगे। वह बंगाली युवक बोला मैं जा रहा हूँ गांधीजी के डिब्बे में क्या तुम साथ आओगे। सहयात्री की तो हिम्मत नही हुई । 
सो वह बंगाली युवक अकेला ही गांधीजी के डिब्बे में घुस गया। और थोड़ी ही देर में गांधीजी से सम्मति लिखवाकर वापस अपनी जगह आ गया। तब उसने अपने सहयात्री के पूछने पर बताया। 
गांधीजी के डिब्बे में मेरे हाथ में "भारत का पक्का बदमाश : महात्मा गांधी" ये पुस्तक देखते ही गांधीजी का साथी गुस्से से लाल-पीला हो उठा और मेरे हाथ से पुस्तक छीनकर एक कोने में फेंकने ही वाला था की गांधीजी का ध्यान इस तरफ गया और वे बोले - "लाओ तो सही इधर देखूं क्या हैं" 
"बापू आप क्यों अपना वक्त बर्बाद करते हैं फिजूल की गाली-गलौज होगी इसमें" .. बापू के साथ चल रहे..लोग बोले। 
गांधी बोले - भले ही गाली हो इसमें। गालियों से हमारा क्या बिगड़ता है ? और पुस्तक गांधीजी ने मेरे हाथ से लेकर पूछा - "क्या चाहते हो तुम "? 
... 
मैंने तुरन्त कहा की इस पुस्तक पर आपकी सम्मति चाहिए। तब गांधीजी ने पुस्तक के पन्ने उलट पुलट कर थोड़ी देर देखा और हंसकर बोले - "अरे तुम्हारे गुरु तुम्हारे मालिक ने तो सब कुछ लिख दिया है, अब मैं क्या और लिखू " ? 
... 
मैंने कहा बापू आप जो चाहे पर सम्मति के रूप में कुछ तो लिख दीजिये। तब बापू ने कहा अच्छी बात है लिख देता हूँ। 
गांधी जी ने उस पुस्तक पर ये लिखा था - 
"प्रिय मित्र; 
मैंने अभी पांच मिनिट तक आपकी पुस्तक सरसरी तौर पर देखी । इसके मुखपृष्ठ या मज़मून के विरोध में मुझे कुछ भी नही कहना हैं। आपको पूरा अधिकार हैं कि जो पद्धति आपको अच्छी लगे उसके द्वारा आप अपने विचार प्रकट करें। 
भवदीय : मो.क.गांधी 
रेल में : 1-10-39 " 
मित्रों ! 
कहाँ इतनी सहिष्णुता और कहाँ आज का दौर जहां खान पान को लेकर लोग एक दूजे की जान पत्थरो से मार-मार कर ले लेते हैं। 
बापू तुम फिर आना मेरे देश ! 

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शुक्रवार, जून 10, 2016

हिन्दू और मुसलमान दोनो धरती के बोझ है ?


250 वर्ष का इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि वर्ष 1800 के बाद जो दुनिया मे तरक़्क़ी हुई, उस मे पश्चिम मुल्को यानी सिर्फ यहूदी और ईसाई लोगो का ही हाथ है। हिन्दू और मुस्लिम का इस विकास मे 1% का भी योगदान नही है। 
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1800 से लेकर 1940 तक हिंदू और मुसलमान सिर्फ बादशाहत या गद्दी के लिये लड़ते रहे। दुनिया के 100 बड़े वैज्ञानिको के नाम लिखे तो बस एक या दो नाम हिन्दू और मुसलमान के मिलेंगे। 
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पूरी दुनिया मे 61 इस्लामी मुल्क है, जिनकी जनसंख्या 1.50 अरब के करीब है, और कुल 435 यूनिवर्सिटी है। दूसरी तरफ हिन्दू की जनसंख्या 1.26 अरब के क़रीब है और 385 यूनिवर्सिटी है, जबकि अमेरिका मे 3 हज़ार से अधिक, जापान मे 900 से अधिक यूनिवर्सिटी है। ईसाई दुनिया के 45% नौजवान यूनिवर्सिटी तक पहुंचते है, वही मुसलमान के नौजवान 2% और हिन्दू के नौजवान 8 % तक यूनिवर्सिटी तक पहुंचते है। दुनिया के 200 बड़ी यूनिवर्सिटी मे से 54 अमेरिका, 24 इंग्लेंड, 17 ऑस्ट्रेलिया, 10 चीन, 10 जापान, 10 हॉलॅंड, 9 फ़्राँस, 8 जर्मनी, 2 भारत और 1 इस्लामी मुल्क मे है। 
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अब हम आर्थिक रूप से देखते है। अमेरिका का जी.डी.पी 14.9 ट्रिलियन डॉलर है जबकि पूरे इस्लामिक मुल्क का कुल जी.डी.पी 3.5 ट्रिलियन डॉलर है। वही भारत का 1.87 ट्रिलियन डॉलर है। दुनिया की 38000 मल्टिनॅशनल कंपनी में से 32000 कंपनी सिर्फ अमेरिका और युरोप मे है। 
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अभी तक दुनिया के 10000 बड़ी अविष्कारो मे 6103 अविष्कार अकेले अमेरिका मे और 8410 अविष्कार ईसाई या यहूदी ने किये है। दुनिया के 50 अमीरो मे 20 अमेरिका से, 5 इंग्लेंड से, 3 चीन, 2 मक्सिको, 2 भारत और 1 अरब मुल्क से है। --- अब हम आप को बताते है कि हम हिन्दू और मुसलमान जनहित, परोपकार या समाज सेवा मे भी ईसाई और यहूदी से बहुत पीछे है। रेडक्रॉस दुनिया का सब से बड़ा मानवीय संगठन है। 
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बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन मे बिल गेट्स ने 10 बिलियन डॉलर से इस फाउंडेशन की बुनियाद रखी है। जो कि पूरे विश्व के 8 करोड़ बच्चो की सेहत का ख्याल रखती है। 
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वहीँ भारत मे कई अरबपति है। मुकेश अंबानी अपना घर बनाने मे 4000 करोड़ खर्च कर सकते है, और अरब का अमीर शहज़ादा अपना स्पेशल जहाज पर 500 मिलियन डॉलर खर्च कर सकता है मगर मानवीय सहायता के लिये आगे नही आ सकता है। 
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अब आप खुद अंदाजा लगाइये के हिन्दू और मुसलमान की इस धरती पे क्या औकात है। बस हर हर महादेव और अल्लाह हो अकबर के नारे लगाने मे हम सबसे आगे हैं।


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मंगलवार, मार्च 24, 2015

तलाश है ऐसे तीन लोगो की ...



एक लङकी थी रात को आँफिस से वापस लौट रही थी तो देर भी हो गई थी... पहली बार ऐसा हुआ और काम भी ज्यादा था तो टाइम का पता ही नही चला ! वो सीधे ऑटो स्टैंड पहुँची, वहाँ एक लङका खङा था ! वो लङकी उसे देखकर डर गई कि कही उल्टा सीधा ना हो जाए ! 
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तभी वो लङका पास आया ओर कहा- "बहन तू मौका नही जिम्मेदारी है मेरी ओर जब तक तुझे कोई गाङी नही मिल जाती मैँ तुम्हे छोङकर कहीँ नही जाउँगा .. डोंट वरी" 
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वहाँ से एक ओटो वाला गुजर रहा था लङकी को अकेली लङके के साथ देखा तो तुरंत ओटो रोक दी ओर कहा- "कहाँ जाना है मैडम आइये मैं आपको छोङ देता हुँ" 
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लङकी ओटो मे बैठ गई रास्ते मे वो ओटो वाला बोला- "तुम मेरी बेटी जैसी हो, इतनी रात को तुम्हे अकेला देखा तो ओटो रोक दी, आजकल जमाना खराब है ना और अकेली लङकी मौका नही जिम्मेदारी होती है" 
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लङकी जहाँ रहती थी वो एरिया आ चुका था, वो ओटो से उतर गई और ओटो वाला चला गया। लेकिन अब भी लङकी को दो अंधेरी गली से होकर गुजरना था, वहाँ से सिर्फ चलकर गुजरना था 
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तभी वहाँ से पानीपुरी वाला गुजर रहा था शायद वो भी काम से वापस घर की ओर गुजर रहा था .. लङकी को अकेली देखकर कहा- "आओ मैं तुम्हे घर तक छोङ देता हुँ" ... उसने अपने ठेले को वही छोङकर एक टार्च लेकर उस लङकी के साथ अंधेरी गली की और निकल पङा 

वो लङकी सही-सलामत घर पहुँच चुकी थी । 
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आज मेरे भारत को तलाश है ऐसे तीन लोगो की ... 
1) वो लङका जो बस स्टैंड पर खङा था 
2) वो ओटो वाला ओर 
3) वो पानीपुरी वाला 

जिस दिन ये तीन लोग मिल जाएगे उस दिन मेरे भारत में रेप होना बंद हो जाएंगे 
...और तभी आएंगे अच्छे दिन।।


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The End
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शनिवार, दिसंबर 27, 2014

नज़रिए का फर्क

एक प्रख्यात लेखक अपने स्टडी रूम में बैठे थे। उन्होंने पेन उठाया और लिखना शुरू किया :- 

"पिछले वर्ष मेरा ऑपरेशन हुआ और गॉल ब्लॉडर निकल दिया गया, इसकी वजह से लम्बे समय तक मैं बिस्तर पर रहा। इसी साल मेरी उम्र 60 वर्ष की हो गयी और मुझे अपनी पसंदीदा जॉब छोड़नी पड़ी। मैंने अपने जीवन के 30 साल इस पब्लिशिंग कंपनी में बिताये। इसी वर्ष मुझे पिता जी की मौत के दर्द से भी मुझे गुजरना पड़ा … और इसी साल मेरा बेटा कार एक्सीडेंट की वजह से अपने मेडिकल इम्तिहान में भी फेल हो गया .... उसे कई दिनों तक हॉस्पिटल में रहना पड़ा। कार ख़राब हो गयी सो अलग।" 
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अंत में उसने लिखा - "ओह ~~ ये बहुत ही ख़राब वर्ष रहा।" 
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लेखक अपने शोक में डूबा हुआ था, तभी उसकी पत्नी कमरे में आई। उसने पीछे खड़े होकर पति के लिखे विचारो को पढ़ा। वो चुपचाप कमरे से बाहर चली गई। थोड़ी देर बाद वो एक दूसरा पेपर ले कर आई और अपने पति द्वारा लिखे पेपर के बगल में रख दिया। 
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लेखक ने देखा कि उस पेपर में लिखा हुआ था :- 

"पिछले साल मुझे अपने गाल ब्लेडर से छुटकारा मिल गया, जिसकी वजह से इतने साल मैंने दर्द में गुजारे। बहुत अच्छे स्वास्थ्य के साथ मैंने 60 वर्ष पुरे किये और अपनी जॉब से रिटायर हो गया। अब मैं अपना समय और बेहतर लिखने में बिताऊंगा बताउगा। इसी वर्ष भगवान ने मेरे बेटे को नया जीवन प्रदान किया। मेरी गाड़ी जरूर बर्बाद हो गयी लेकिन मेरा बेटा बिना किसी अपंगता के सकुशल है। इसी साल मेरे पिता 85 वर्ष की आयु में बिना किसी पर निर्भर हुए भगवन के पास चले गए।" 

अंत में लिखा था - "भगवन के आशीर्वाद से भरा ये साल बहुत अच्छा बीता।" 
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देखा आपने ? 
एक ही घटना लेकिन नजरिया अलग अलग। 
अगर सकारात्मक सोच हो तो जीवन को बेहतर ढंग से जिया जा सकता है ! 

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The End
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गुरुवार, दिसंबर 25, 2014

अटल - नेहरु प्रसंग

एक बार लोकसभा में पंडित नेहरु ने जनसंघ के ऊपर आलोचनात्मक टिप्पणी की थी तो अटल जी ने उसका ऐसा जवाब दिया की नेहरु जी न सिर्फ बात में छुपे प्रहार को समझ गए बल्कि भरी संसद में ठहाका मार के हंसने भी लगे ! 
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बात 1957 के दौर की है जब अटल जी बलरामपुर से कांग्रेस के हैदर हुसैन को हराकर पहली बार संसद पहुंचे थे. लोकसभा में किसी चर्चा के दौरान पंडित नेहरु जी ने अटल जी की पार्टी जनसंघ पर निशाना साधते हुए कहा की ये पार्टी सामाजिक अस्थिरता के लिए जिम्मेदार है.....! 
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जब बोलने की बारी अटल जी की आई तो अटल जी ने कहा ''मुझे पता है नेहरु जी रोज़ सुबह शीर्षासन करते हैं ... खूब करें ... पर कम से कम मेरी पार्टी की तस्वीर तो उल्टी ना देखें.'' 
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इतना सुनना था कि पंडित नेहरु जी संसद में ही जोर-जोर से ठहाका मार कर हंसने लगे ! नेहरु जी समझ गए थे कि इन दो पंक्तियों के जवाब से अटल जी ने ना सिर्फ जनसंघ का पक्ष रखा बल्कि एक बेहद अलग हलके-फुल्के अंदाज़ में शब्दों का वो प्रहार किया है जो एक कुशल वक्ता भी घंटो के भाषण के बाद भी ना कर पाता. 
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इस प्रसंग में एक सीख है कि जहां एक ओर आदमी को व्यंग्य विधा में जवाब देने की कला होनी चाहिए वहीँ दूसरी ओर नेहरु जैसी स्वीकार्यता और पर-प्रशंसा का भी गुण होना चाहिए... 

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The End 
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बुधवार, दिसंबर 24, 2014

डबल स्टैण्डर्ड

वो स्कर्ट पहनती है । वो चालू है 
वो नाईट शिफ्ट में काम करती है । वो चालू है 
- वो लड़कों से बात करती है । वो चालू है 
और 
वो शॉर्ट्स पहनता है । वो कूल है 
वो नाईट शिफ्ट में काम करता है । वो मेहनती है 
वो लड़कियों से बात करता है । वो पॉपुलर है 
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OK SOCIETY, TO HELL WITH YOU 

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औरतों को जींस नहीं पहनना चाहिए 
औरतों को तेज आवाज में बात नहीं करना चाहिए 
औरतों को रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए 
औरतों को खुलकर हंसना नहीं चाहिए 
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और 
औरतों को ऐसे बकलोल भी नहीं पैदा करने चाहिए 
जो ऊपर लिखी ऐसी बातों का समर्थन करते है !
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The End
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शुक्रवार, अगस्त 08, 2014

स्वर्ग, हैवन या ज़न्नत का फैसला कैसे होगा ?

मैं एक बात को लेकर बहुत कन्फ्यूज हूँ
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मान लीजिये एक आदमी हिन्दू धर्म में पैदा हुआ ! जब 24-25 वर्ष का युवा हुआ तो क्रिस्चियन लड़की से प्यार कर बैठा, लेकिन लड़की ने शर्त रख दी कि पहले ईसाई धर्म अपनाओ तब शादी करुँगी ! लड़के ने धर्म परिवर्तन कर लिया ... बन गया क्रिस्चियन !
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छह-सात वर्ष बीते उसके बाद डायवोर्स हो गया !

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फिर एक लड़की पर दिल आया ,,, इस बार लड़की मुस्लिम थी ! मुस्लिम लड़की ने भी वही शर्त रख दी कि पहले इस्लाम अपनाओ ! लड़के ने एक बार
फिर धर्म परिवर्तन किया और बन गया मुसलमान !
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कुछ साल बाद उसकी मौत हो जाती है
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अब सवाल ये उठता है कि हिन्दू मान्यता के अनुसार तो मरने के बाद ऊपर भगवान् चित्रगुप्त जी कर्मों के हिसाब से पाप-पुण्य और स्वर्ग-नरक का फैसला करते हैं, लेकिन मरने वाले ने तो पहले ही हिन्दू धर्म से एकाउंट क्लोज कर लिया था .... ईसाई धर्म से भी एकाउंट क्लोज कर लिया था!
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तो भैया ऊपर फैसला कैसे होगा ?
क्या अल्लाह मियां मरने वाले की फाईल जीसस और चित्रगुप्त से मंगवाएंगे ?
या फिर ऐसा तो नहीं कि
मरने वाला पहले स्वर्ग , उसके बाद हैवन और आखिर में ज़न्नत जाएगा ?

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The End
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बुधवार, सितंबर 04, 2013

जो खुद ही माया में अटके हों ....


आजकल अध्यात्म का मार्ग कितना सहज-सरल हो गया है …. बस दोनों हाथ जोड़ कर भक्तिभाव से टीवी ऑन कीजिए, धार्मिक चैनल के बटन दबाइए और खो जाईये अध्यात्म में। 

बड़े-बड़े वातानुकूलित महलों में रहकर आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने वाले … दुनिया भर के भौतिक सुखों को भोगने वाले आजकल के बाबा लोग तथ्य की बात कैसे बता सकते हैं ? जो खुद ही माया में अटके हों, वो भक्तों में प्रेम कैसे जगा सकते हैं ? 

आज रुपया खर्च करके कोई भी बाबा / महात्मा अपना प्रवचन धार्मिक टीवी चैनलों पर प्रसारित करवा सकता है। 

सवाल ये है कि लाखों रुपया हर महीने खर्च करके कोई अपना प्रवचन टीवी पर क्यों प्रसारित करवाना चाहता है ? साफ जाहिर है कि ऐसा करना घाटे का नहीं, मुनाफे का सौदा है। जितनी ज्यादा बार बाबा जी का चेहरा आएगा, उतनी ही उनकी प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी, चेले बढ़ेंगे, आमदनी बढ़ेगी। फिर ये आध्यात्म कहां हुआ ? ये तो धर्म का व्यापार हो गया और ये व्यापार आजकल जोरों से चल रहा है। 

धर्म का कारोबार करने वाले, धार्मिक भू-माफिया बन के हजारों-लाखों एकड़ जमीन हथियाने वाले, आध्‍यात्‍म का चोला ओढ़ कर तंत्र-मंत्र करने वाले, पाखंडों से भरपूर प्रवचन देने वाले इन तथाकथित संत-महात्माओं से समाज को बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है।
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End
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ प्रतिक्रियाएं
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  • aajkal sabse fayde ka yahi business hai  :-)
  • बहुत सही फोटो लगाई है भाई; मुझे बचपन की एक कहावत याद आ गयी :
    'के तो बाबो रेल मैं, नहीं तो बाबो जेल मैं' अर्थात 'या तो बाबा रेल में, या फिर बाबा जेल में' ।
  • या तो बाबा रेल में, या फिर बाबा जेल में' ...   :-)   :-)
  • अध्यात्म एक बेहद संजीदा विषय है। इसकी परत दर परत में कई रहस्य और ज्ञान के अकूत भंडार है। बस आमजन की उस रहस्य और ज्ञान को अर्जित करने की लालसा की पहचान कर कुछ ढोंगी लोग संत का चोंगा ओढकर बेबकुफ़ बनाने का काम कर रहे हैं। जिस प्रकार बंदुक का निर्माण जिस वक्त हुआ होगा। उसके बनाने वाले की सोच होगी की कमजोर के हाथ में रिवाल्वर होने से मजबुत वयक्ति उसको परेशान नही करेगें। मतलब आत्मरक्षात का कार्य यह करेगी। लेकिन आज सैनिक से लेकर गुडे मवाली तक इसका उपयोग कर रहे हैं।
  • Mamta Singh जी … आपने बहुत सुन्दर बात कही … सहमत हूँ 
  • सर इसमे हम बाबा लोगो की गलती ही क्या बताये! खुद हम ही इतने ज्यादा अंधविशवास मेँ फसे हुऐ हे की 
    कोई भी शातिर आदमी धर्म की भावनाओ मेँ जोडकर हम से कुच्छ भी करवा सकता हे।
  • Lalit Sharma 
    main to in baba logo ko manata hi nahi ye to hamesha pakhandi hote hain paiasa dekho duniya 
    ka haih inke pass kabhi inone garib ko dekha hai galti aourto ki hai jo inke pass jati hi our pati ko 
    bolti hai aap bhi mere sath chalo ....
  • जय हो बाबा की शायद हॉर्लिक्स लेते होंगे.
  • मंदिर की दीवारें बोली मस्जिद के कंगूरों से......
    संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से………।
  • ye saare baba aapas men hi ek doosre se bahut jala karte hain. irshya aur ahankar se grasit 
    ye baba log bhakton ko kya gyan denge ?
  • संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से .... ha ha ha ha ha
  • Ram tha,  ram hai , ram rahayga.  baki dhongi aaye aur gaye .   jay jay sri ram...
  • Prakash Govind भाई जी ये विश्वास विश्वास की बात होती है , किसी को पत्थर में भगवान दिखता है , 
    किसी को अपने माँ बाप में तो किसी को किसी इन्सान में , जिस तरह से आप ने लिखा है मित्र वो कदापि 
    सहारनीय नहीं है , आप किसी की भावनावो की ठेस पंहुचा रहे है !!
  • Shahnawaz Shanu galti in baba logo ki nahi hai galti ham logo ki hai jo aankh band karke 
    vishvas kar lete hai
  • isiliye naitik patan ho raha hai samaj ka,
  • mangesh ji jab bat vishvas ki hai aur aankh band kar hi chalna hai to fir koi problem hai hi nahi. 
    jab koi taklif a jaye to thanedar chor ,neta chor adi nahi kahna chahiye aur sahan karna chahiye 
    kyonki hamne vyavstha ko saf karne ka prayas kiya hi nahi
  • सही कहा सर जी !!

    आपने भी कुछ हट कर ही सोचा है....जो हम सब को विचार करने पर विवश कर दी...।
    बहुत खूब ।
  • Sahi kaha jak.aur ha mangeshji rahi bhavnao ki bat jab asay asumal jaisay ko bhagvan 
    mantay ho tab bhavna ko thays n pahucti kya.bhagvan insan ban sakta h per koi insan 
    bhagvan n ban sakta.app ki sub batay galat h.i agree with prakash govind.
  • Sanju Rajesh Kala 
    dhk lo apka as. ram sant
  • मंगेश पराते जी …. मैंने यहाँ कुछ लिखा ही कहाँ है …. सब कुछ तो दबा ले गया सिर्फ आप जैसों की 
    भावनाओं का ख्याल करके    :-)   :-)
    वरना मेरे विचार सुनकर तो न जाने कितने मिर्गी के शिकार होकर गाली-गलौज करते ! 

    बस इतना जान लीजिये कि मेरी निगाह में दामिनी या गुडिया
     के बलात्कारियों से कहीं ज्यादा इस तरह के 
    धूर्त / मक्कार / ढोंगी बाबा अपराधी हैं ! ऐसे चालबाज मक्कार बाबाओं की ताकत होते हैं आप जैसे भोले भाले 
    अंधे भक्त ! भारत निर्माण करना है तो ऐसे सभी तथाकथित स्वभू भगवानों से छुटकारा पाना होगा ! ऐसे बाबाओं 
    को बीच चौराहे पे तोप से उड़ाया जाना चाहिए तभी अन्य हजारों ढोंगी बाबाओं पर असर पड़ेगा ! 

    एक बात और … यहाँ सवाल किसी भी मज़हब का नहीं है …. 
    किसी भी मज़हब का कोई भी शख्स (बाबा, पादरी, मुल्ला) ये सब मक्कारी कर रहा हो उसकी जगह सिर्फ 
    जेल होनी चाहिए !
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गुरुवार, अगस्त 01, 2013

हम पूर्वजों के क्रेडिट पर कब तक शान मारेंगे

नवीनतम से नवीनतम विज्ञान का अविष्कार भी धर्म की हजारों वर्ष पुरानी किताब में पहले से दर्ज है ! 
आगे भविष्य में भी जितने अविष्कार होंगे वो सब भी इन्ही धार्मिक ग्रंथों के हवाले से होंगे !
मुझे तो लगता है हमारे धर्म ग्रंथों का सबसे ज्यादा अध्ययन अमेरिका, जापान, फ्रांस वालों ने ही किया है .... 

उन्होंने वहीँ से सब चोरी कर लिया ! 

परमाणु बम क्या कद्दू .... हमारे यहाँ तो ब्रह्मास्त्र था 
विमान और राकेट गए तेल लेने ...हमारे यहाँ तो पुष्पक था 
फोन..मोबाईल तो कुछ नहीं ...हम तो परकाया प्रवेश में भी माहिर थे 
अमेरिका वाले मंगल जा रहे हैं ...हुंह ..
हमारे ऋषि-मुनि तो मंगल की मिटटी का रंग तक बता चुके हैं 
एलोपेथिक बकवास है ..... आयुर्वेद का लोहा तो दुनिया मान चुकी है 


आत्म मुग्धता के नशे से कब बाहर निकलेंगे ?
कभी भारत विश्व गुरु रहा होगा ... 
सवाल है कि -
"आज भारत क्या है ?"
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-- प्रकाश गोविन्द
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फेसबुक लिंक :

फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
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Pankaj Mohan Sharma : 
Ab to duniya hamara GHOTALASHSTRA padh rahi hai. 
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Ranjan Yadav :
नीचे की पंक्ति अति सुन्दर- 'भारत विश्व गुरु रहा होगा ...आज भारत क्या है?'  
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Harmahendra Hura :
pracheen samay men Swiss Bank nahin tha isliye desh ki pragati desh mein samavisht thi. ab kuchh logon ki pragati aur desh ka vinaash hai  
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Sanjay Bengani :  
हमें वो इतिहास पढ़ाया जाता है जो हमें शर्मसार करे. और हम अपने अतित पर गर्व करना चाहते है. हम वर्तमान को बनानें में असफल रहे तो अपने अतित को वर्तमान से ज्यादा अच्छा बताते हैं. इसकी जड़ में यही है. 
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Ek Diwana Tha :
Aaj bharat corruption men sab se aage hai.   
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Shah Nawaz : 
आप इसे आत्म मुग्धता कह सकते हैं मगर यह सत्य है, हालाँकि ज़रूरत अब और भी आगे देखने की है। मगर क्या अपने गौरवशाली इतिहास को भुला देना चाहिए ? 
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Prakash Govind :
Shah Nawaz Bhayi हमें अपने अतीत पर ... अपने पूर्वजों पर निश्चित ही गर्व होना चाहिए ... लेकिन उनके इतिहास का ताबीज गले में लटकाने का बजाय उससे प्रेरणा लेनी चाहिए ... उससे सबक लेना चाहिए ... उसे आधार बनाकर आगे बढना चाहिए ... अतीत का ढोल बजाने से क्या होगा ?   
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Sandeep Gupta :
shah nawaz ji itihas nahi bhulana hai yaad rakhna hai. aur bhavishya ki traf dekhna hai.  
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Suryakumar Pandey :
maithili sharan gupt ne bharat bharti me iska vistar se varnan kiya hai.  
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Danda Lakhnavi :  
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पाखंडों से दोस्ती, सदाचर से........हेट। 
चार ग्राम युग-धर्म का, कई कुंतलों पेट॥
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Brajesh Rana : 
हिन्दुस्तान में वेद तो हैं ही नहीं. अँगरेज़ चुरा कर ले गए नहीं तो हम नंबर एक होते.  1197 से 1757 तक क्या कर रहे थे? 
पूरे भारत वर्ष में गुरुकुल थे और शिक्षा की अपूर्व व्यवस्था थी. सब अंग्रेजों ने बर्बाद कर दी. Macauley की औलादों ने. 
गांधारी अफगनिस्तान से, बाली और सुग्रीव और हनुमान इंडोनेशिया से, हिडिम्बा मणिपुर से. अपनी तो सिर्फ द्रौपदी हे. 
1197 से 1757 तक कुछ नहीं कर पाए और दोष देते हैं अंग्रेजों को. ये तो औरंगजेब में ही खुश रह सकते हैं. 
कोई दीक्षित साहिब हैं कहते थे की दातुन करनी चाहिए नीम के पेड़ की. अगर हिन्दुस्तानियों ने बात मान ली तो एक नीम का पेड़ नहीं बचेगा. पूरे सवा सौ करोड़ हैं अब तो. 
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Shivendra Sinha :
अभी खोज चल रही है / जिस दिन भी पारस पत्थर मिल गया हम अमेरिका, जापान और फ्रांस को जेब में रख के घूमेंगे.  
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Syed Khalid Mahfooz :
भविष्य को भूल कर, वर्तमान की चिंता छोड़, अतीत पर गर्व ... हमें कुएं का मेंढक बना देता है...  
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Prabhu Heda :  
ये तो कुछ भी नहीं साहब विश्व की प्रथम फायर प्रूफ लेडी भारत से थी जिसका नाम होलिका था, पहले पत्रकार नारद तो विश्व ही क्या समस्त ग्रहों की सनसनीखेज न्यूज़ टेलीकास्ट कर सकते थे, "संजय" के पास तो ऐसा सैटलाइट था की वो महाभारत का आँखों देखा हाल 3डी में देख और दिखा सकते थे, यही नहीं मेडिकल साइंस तो इससे भी आगे था अब गणपति का ही उधाहरण ले लो! दादागिरी भी हमसे ही सीखी है सबने. शनिदेव का आतंक आज भी हर शनिवार को उसके चेले दिखा जाते है !  
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Anupam Parihar :
अच्छी बहस है .... वर्तमान जब पीड़ित होता है तो अतीत की सांसें लेता है ....कुछ दिन तो चलेगा.  
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Shiv Shambhu Sharma :
आत्म मुग्ध हो तब तो बाहर निकले मुदा हम आत्मुग्ध भी नही है और आज का भारत क्या है यह बता पाना सहज नही रहा ... वैसे यह सच है जब दुनियां के और लोग आदिमानव थे तब यहां यज्ञ की समिधा दी जाती थी। ’ब्रम्ह सत्य जगतमिथ्या’ के सिद्धांत से न माया मिली न राम और हम नकलची आलसी बन कर रह गये जबकि आज जो नये आविष्कार परक सुविधाए हम भोग रहे है वह भी उन लोगो के परिश्रम का फ़ल है जो हमारे यज्ञ समिधा के समय आदिमानव थे।  
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Govind Singh Parmar  :  
भाई, आपकी बात अपनी जगह सही है, लेकिन जापान अमेरिका के लोग तब कुछ नहीं जानते थे जब हम नालंदा विश्वविद्यालय जैसा संस्थान चलाते थे, चीन, ईरान, भारत सबसे महत्वपूर्ण देश हुआ करते थे, आज विश्व व्यापार में हमारा हिस्सा केवल एक प्रतिशत है जो 1000 में 30 और 1500 सन में 25 प्रतिशत था, हां हम पिछले चार सौ सालो में बहुत पिछड़े है ! 
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Nitish K Singh :
Bade bade bhavishya apne me khone ki wajah se itihas men vileen ho gye... Intezar kijiye ek aur itihas ka.   
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Diwakar Mishra : 
Ham bhi bahut haisiyat rakhte the, keval dharm aur darshan men hi nahi, duniyavi cheezon men bhi... hazzaron saalon ki gulami ne bahut pichhaad diya hai.. jaisa ki uupar govind ji ne bataya.. us gulami ke jamane me bhi duniya ka ek chauthai vyapar hamare kabje me tha... Macauley ne hamare confidence ko khatam karne ka jo safal prayas kiya hai, us se yah aatma-mugdhata ka nasha hi bahar nikal kar la sakta hai... jarurat hai ki ise nashe ke roop men nahi, balki davayi ke roop me prayog kiya jaaye. 
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Huma Kanpuri :
हम क्या थे, आचार्य चतुरसेन का 'सोना और ख़ून' पढ़कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अपना उपहास न किया जाए, ताकि औरों को भी बोलने का अवसर मिले।  
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Prakash Govind :
Huma Kanpuri Ji आचार्य चतुरसेन जी को खूब पढ़ा है ... ऐतिहासिक कहानियों को लिखने में उनका कोई मुकाबला नहीं ! सवाल ये है कि मान लीजिये हमारे परदादा नामी-गरामी पहलवान थे ... तो उनकी क्रेडिट पर हम दूसरों पर कब तक जलवा गांठते रहेंगे ? उपहास तो हम स्वयं अपना बना रहे हैं !  
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राजीव तनेजा  :  
वर्तमान में जीने के बजाय हम भूतकाल में जीते हैं....हर नई तकनीक चाहे वो मोबाईल हो या फिर कंप्यूटर ... हम दुसरे देशों की तरफ ताकते हैं लेकिन फिर भी पुरानी बातों को याद कर ... इण्डिया इज बैस्ट का नारा लगाते रहेंगे ! 
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Sunil Mishra Journalist :
Bharat aaj bhi Bharat hai....log jaisa bana rahe hain...waisa ban raha hai.....   
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दिनेशराय द्विवेदी : 
हमें नशे में जीने की आदत है। 
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Alok Khare :
Khush hote raho ! is par tax nahi lagta ! kehte raho hamaare chacha Jameedaar--Soobedaar the ! usse kya ? tum to saale driver ho ! usko jaano bas ! kaun kya tha usme kya rakha hai ? aur kab talk dhol peet-te rahoge wo bhi aisa jiski khaal na jaane kab ki fat chuki hai ! sahi kaha bhai ji! are theek he ham rahe honge vishva guru ! to kya uski pension aaj tak khaate rahoge khaali-peeli.  
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Prakash Govind :
आलोक भाई ... दहशत तो तब होती है जब कोई प्रकांड पंडित अपनी बात मनवाने के लिए भारी भरकम संस्कृत के श्लोक बोलने लगता है ... तब मुंडी ऊपर-नीचे हिलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता :-)   
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Ssd Agrawal :  
आपकी बात सही है परन्तु हमारी तकनीकी लिपिबद्ध न होने की वजह से कहानी किस्से बन कर रह गयी है । बहुत पीछे न जा कर मुगल शासन काल की ही बात करे उस समय जो तकनीकी थी वो विश्व मे प्रख्यात थी परन्तु आज विलुप्त हो गयी क्यूँ की हम सब अपनी विरासत को आगली पीढ़ी तक नहीं बढ़ा पाये ।  
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Diwakar Mishra :
इस पोस्ट पर बहुत कमेंट आए, और बहस चली । पर इतने सारे विमर्श से क्या किसी का मत बदला? यहाँ दो पक्षों के कमेंट आते रहे हैं । और जब उनके कमेंट दुबारा आते हैं तो लगता है कि उनका मत अब भी उसी ओर ही नहीं बल्कि उसी जगह पर है । आखिर क्यों लम्बी चर्चा के बाद भी किसी के मत में (अक्सर) विकास या परिवर्तन नहीं होता । कारण कि अधिकतर की प्रवृत्ति सुनने की नहीं सुनाने की होती है, सीखने की नहीं सिखाने की होती है, सीखने को चेला बनना और सिखाने को गुरु बनने के रूप में देखते हैं और गुरु बनना चाहते हैं । क्या कोई ऐसा है जिसका मत ऊपर की चर्चा पढ़कर बदला हो? यदि हो तो कृपया बताएँ ।  
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Prakash Govind :
Diwakar Mishra Ji आपकी प्रतिक्रया अच्छी लगी ! आभार !! ....... 
फेसबुक सहज अभिव्यक्ति का एक माध्यम है ! यहाँ गुरु-चेला बनाने जैसी कोई बात नहीं ! हम सभी यहाँ एक-दुसरे से ही काफी कुछ सीखते हैं ! जहाँ तक मत या विचार बदलने की बात है तो वो एक ऐसी प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे ही होती है ! मन के भीतर जमी परतों को खुरच के अलग करना इतना आसान नहीं होता ! अभी तो सिर्फ इतना ही बहुत है कि हम एक-दूसरे को सुनें ... समझें और अभिव्यक्ति का सम्मान करें !  
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आनंद शर्मा :  
Vivek Shrivastava Aap se poorn sahmati .. puraani uplabdhiyaa prerak ho sakti hain ... par unke bharose vartmaan men sirf deenge haanknaa katayi theek nahi. 
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Prakash Govind :
हम विकास का अंतर इस बात से लगा सकते हैं कि जब यहाँ तुलसीदास जी रामायण की चौपाईयां रच रहे थे तब यूरोप में कैमरे का आविष्कार अंतिम पड़ाव पर था ! 
आप इतिहास उठा के देखिये हमने हर प्रगति और परिवर्तन का जमकर विरोध किया ! लेकिन हुआ क्या ? सारे परिवर्तन होकर ही रहे बस विरोधों और उदासीनता के कारण गति धीमी रही ! जब रेलगाड़ी आई तो तहलका मच गया ... लोग छाती पीटने लगे कि इससे तो हिन्दुस्तान बर्बाद हो जाएगा ... देश के सारे पशु - गाय-बैल-बकरी कट के मर जायेंगे ! आस-पास के मकान गिर जायेंगे ! गर्भवती महिलाओं पर बहुत घातक असर पड़ेगा ... जाने-जाने क्या-क्या बातें और विरोध !

कैमरा आया तो लोगों ने अफवाह फैला दी कि इससे तस्वीर मत उतारने देना ...शरीर की ताकत ख़त्म हो जायेगी ! घरों में नल लगने शुरू हुए तो लोगों ने भगा दिया ..... ये पानी कौन पिएगा ... जाने कितने कितने दिन का बासी पानी ...सब अशुद्ध हो जायेंगे ! ... 

इसी तरह चाय का विरोध ...चीनी का विरोध ...अंग्रेजी दवाईयों का विरोध ... टीवी का विरोध ... हर चीज का विरोध किया ! विरोध, नकारात्मकता और परिवर्तन से घबराना हमारा मूल स्वभाव ही है ! 

आपको याद है न ? जब कंप्यूटर आया था तो पूरे देश ने कैसा विरोध किया था ... सब बेरोजगार हो जायेंगे .. हाय दादा अब क्या होगा ! आज क्या स्थिति है बताईये ? कंप्यूटर के बिना हम स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहते !   
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शैलेश गुप्ता : 
लेकिन आज के इस विकसित साइंस और सनातन विज्ञान में एक मूल भूत फर्क था और वो की हमारे यहाँ जो कुछ भी तकनीक विकसित की गई थी वो पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखती थी परन्तु आधुनिक विज्ञानं में वो बात नहीं ..... और पूर्ण सहमत हु आप की इस बात से भी की समय पूर्वजो के विकास से आत्म मुग्ध होने का नहीं बल्कि उन से सीख और प्रेरणा ले कर आगे बढ़ने का है ! 
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Mumtaz Aziz Naza :
wo chidiya, jis ko sone ke lalach ne noch noch kar itna zakhmi kar diya hai ke wo tadap tadap kar cheekh rahi hai, phir bhi us par kisi ko taras nahi aa raha  
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जितेन्द्र जौहर :
यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है, इसे हवा में नहीं उड़ाया जा सकता...!  
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