सोमवार, जुलाई 27, 2009

अकेला / हमदर्द [दो लघु-कथाएँ]


अकेला [लघु-कथा]
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यूँ तो पूरे गाँव में सौ के लगभग घर थे, फिर भी उसे अपने अलग-थलग पड़ जाने की कसक थी ! यह बात मन को बहुत कचोटती थी कि पूरे गाँव में उसकी जाती-बिरादरी का कोई भी व्यक्ति ना था !

मैट्रिक की पढ़ाई के पश्‍चात कुछ ऐसा संयोग बना कि आगे के अध्ययन के लिए अपने मामा के पास दूसरे प्रदेश जाना पड़ा ! अब उसका एकाकीपन और भी बढ़ गया था ! जब भी उसे कोई अपनी तरफ का व्यक्ति मिलता, उसका मन प्रफुल्लित हो उठता ... चेहरे की चमक बढ़ जाती ! उसके बाद फिर वही अकेलापन !

पढ़ने-लिखने में आरंभ से ही मेधावी छात्र होने के कारण इंजीनियरिंग कालेज में चयन हो गया ! इंजीनियरिंग में टॉप करने के उपरांत विदेश जाने का अवसर मिला तो अमेरिका के लिए रवाना हो गया ! वहीं 'स्पेस रिसर्च सेंटर' में नौकरी भी लग गयी ! सभी ऐशो-आराम वा सुख-सुविधाओं के बीच भी उसे सदैव तलाश रहती थी, अपने देश के किसी भी व्यक्ति की ! भीड़ से घिरा रहने के बावजूद भी वह अपनी तन्हाई से परेशान रहता !

बहुउद्देशीय परियोजना के अंतर्गत अंतरिक्ष में स्थापित प्रयोगशाला में शोध कार्य हेतु प्रतिभाशाली तीन लोगों का चयन हुआ तो उसमें उसका भी नाम था

आज उसे अंतरिक्ष में स्थित लैब में काम करते हुए आठ दिन हो गये थे ! दो दिन पूर्व उसके दोनो सहयोगी पृथ्वी पर अति-आवश्यक उपकरण सामग्री लाने गये थे ! अब उसे घबराहट हो रही थी ! उसके एकाकीपन वाला बुखार तेज होता जा रहा था !

उसके अधीर व व्याकुल मन को प्रतीक्षा थी - पृथ्वी के किसी भी व्यक्ति की !'

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हमदर्द [लघु-कथा]
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एक लंबी आह भरते हुए उन्होने अख़बार से सिर उठाया,
'ओह, क्रुएल, किस कदर निर्दयी हैं !'
फिर उनकी दृष्टि पास बैठे साथियों पर घूम गयी,
'देखिए साहब, साइंस के नाम पर बेचारे जानवरों पर कितना ज़ुल्म हो रहा है !'

मेज पर अख़बार फैलाते हुए वे बोले,
'ज़रा देखिए, इस बेचारे मंकी चाइल्ड को, इसकी आँखों में कितना दर्द दिखाई दे रहा है, बेचारा मासूम है .... तड़प रहा होगा दर्द से, मगर बेज़ुबान है ! अपनी पीड़ा व्यक्त नहीं कर सकता, कहे भी तो किसे ?'

'क्या हुआ .... ?' लोगों की निगाहें समाचार-पत्र में छ्पे चित्र पर टिक गयी !

'अरे इस बेचारे का दिल काटकर निकाल दिया और इस मासूम बच्चे को मशीन का दिल लगाकर दो महीने से जिंदा रखे हुए हैं ! कितना अमानवीय कार्य है और फिर इस परीक्षण को विज्ञान की सफलता कहते हैं !
इस बेचारे के दर्द का ज़रा भी एहसास नहीं ...... !'

'साहब, ........
ख़ानसामा ने कमरे में आते हुए पूछा, - 'आज मुर्गा बनेगा या मीट ?'

'अरे भाई, मुर्गा ही ले आओ, लेकिन हाँ .. पिछली बार का मुर्गा ज़रा सख़्त था !
लगता है बड़ा मुर्गा ले आए थे ! ऐसा करो, एक बड़े की जगह दो छोटे-छोटे चूजे ले आओ ! दस-बीस रुपया ज्यादा लग जाए तो कोई बात नहीं !'

साहब फिर से गंभीरतापूर्वक अख़बार की अन्य खबरें पढ़ने में व्यस्त हो गये !

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46 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत दिनों बाद आप की पोस्ट आई है.
    दोनों लघु कथाएँ बहुत अच्छी हैं.अपनी बात पाठक तक पहुँचने में पूरी तरह सक्षम.
    [एक प्रश्न-२००६ के बाद आप ने कोई और कहानी क्यों नहीं लिखी?]

    अब कहानी के विषय में-
    -पहली कथा में एकाकीपन की व्यथा को समझाने की सफल कोशिश की है.व्यक्ति अगर धरती पर नहीं है तो धरती वासी को खोजता है.और धरती पर rah कर अपने देश वालों को और देश में अगर है तो अपनी बोली वालों को ..और अगर बोली वाले मिल जाएँ तो अपने शहर वालों को.......कैसे और कहाँ खतम होगी यह तलाश?
    दूसरी कहानी में मनुष्य के दोगले वर्ताव या दो रूपों का बहुत ही सफल चित्रण किया है..कहानी एक प्रश्न उठाती है हमारी संवेदनाएं क्यों बंट जाती हैं?क्यों ऐसा अंतर है?
    दोनों कहानियां और इनकी प्रस्तुति बेहद प्रभावी है.बधाई.

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  2. अकेला ने ज्यादा प्रभावित किया ....आदमी की कमजोरी है अपने आस पास वैसा तलाशना जिस माहोल में वो पला बड़ा है ..यहाँ तक की अपने देश में ही हम जब एक प्रदेश से दूसरी जगह नौकरी करने /या पढने जाते है ...उन गलियों चौबारों की इम्पोर्टेंस समझने लगते है ...या कहिये हर उस चीज की जिसने बिना शर्त हमारी जिंदगी में दखल रखी है .बेजान या जान वाली....दूसरी कहानी से ज्यादा आपका केलिबर है....

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  3. आप की पोस्ट पर पसंद वाला बटन काम नहीं करता प्रकाश जी या तो इसे पोस्ट के ऊपर रखें या नीचे ..शायद साइड बार में काम नहीं कर रहा होगा.... साईट के मुख्य टाइटल पर क्लिक करें या पोस्ट के टाइटल पर क्लिक करें दोनों तरह से पसंद का नंबर दिखाई नहीं देता है.

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  4. Aap waakai dil ko chhu lene wali rachnaaon ka prayan karte hain. Is shamaa ko jalaaye rakhen.

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  5. दोनों ही कहानियां इंसानी दिमाग और उसकी मानसिकता को दिखाती है
    बहुत सच्चा जज्बा है

    hamdard kahani ke jaise dogle vayabhaar wale log bahut mil jaayenge

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  6. दोनों ही कहानियों का विषय बहुत अच्छा है.
    पहली कथा में अकेलेपन को बहुत सुन्दरता से व्यक्त किया है ..सच है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसकी चाह कभी ख़तम नहीं होती..पहले वह रिश्तेदार ,फिर दोस्त ,फिर शहर वासी ,देश वासी को फिर पृथ्वी वासी को dhundataa रहता है.....हालाँकि आपने सच कहा कथानक कुछ और प्रभावी कर सकते थे आप.
    दूसरी कथा काफी करीब है इंसानी फितरत के..इस तरह के लोग हर जगह देखने को मिल जाते हैं ..कहानी प्रभावित करती है.

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  7. "अकेला" एक बहेतरीन रचना. ये बिलकुल सही है हम भीड़ मे होते हुए भी अकेले ही रह जाते है. अकेले चले थे जिंदगी के इस सफ़र मे...ये सोचा कि कोई हमसफ़र मिलेगा हमे भी....पर अफ़सोस हम पा न सके उसे..........रह गए बस यूँ ही अकेले..........

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  8. आपकी रचनाओं में गहरी बात छुपी होती है | सबसे बड़ी बात यह भी है कि विविधता दिखाई देती है | पहली कहानी अकेला अपने गूढ़ अर्थ की खातिर ज्यादा प्रभावित करती है | हमदर्द कहानी पढ़ने में दिलचस्प लगी | लोगों की मानसिकता ही ऐसी होती है कि अपने आप को नहीं देखते बस दूसरों को गलत ठहराते रहते हैं |
    अच्छा अनुभव रहा दोनों कहानियां पढना |

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  9. आपकी कहानियां आम कहानियों से हटकर होती हैं
    कहीं न नहीं एक गहरा विचार छुपा होता है
    पहली कहानी में जिस अकेलेपन की बात की गयी है
    वो हम सबके मन की गाँठ है और कमजोरी भी
    दूसरी कहानी इंसान के मानसिक खोखलेपन को दिखाती है

    दोनों कहानियां याद रखने योग्य हैं
    आपको शुभकामनाएं हमारी

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  10. दोनों ही कहानियां कलात्मक और बेहतर अंदाज में लिखी गयी हैं.
    इनको पढ़ना बेहतरीन तजुर्बा रहा.
    मुबारकबाद

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  11. सर आपके दोनों अफ़साने दिलकश और गहरे जज्बात लिए हुए हैं. दुनिया में तनहा कोई नहीं रहना चाहता ... एक ख़ास मुकाम पे जो हमारे करीब होता है वही अपना हो जाता है.
    दुसरे अफ़साने में आपने नकली चेहरों की तफसील बयां की है ..ऐसे लोगों से हम आये-दिन रूबरू होते रहते हैं
    आपका शुक्रिया
    बस आप जल्दी जल्दी लिखते रहें

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  12. हमेशा की तरह इस बार भी आपकी कहानिया बेजोड़ है
    हाला की काफी लम्बे इंतजार के बाद कुछ पढने मिला लेकिन इस पोस्ट को पढ़ कर इंतजार करना स्वारथ रहा
    जल्दी जल्दी लिखा करो आप और २००६ के बाद कहानियां क्यों नहीं लिखी...कृपया लिखते रहिये...

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  13. गोविन्द सर हमें दूसरी कहानी बहुत पसंद आई .. हमदर्द वाली !
    वैज्ञानिक लोग अगर बन्दर पर कोई प्रयोग कर रहे हैं तो उसमें
    लाखों मनुष्यों की भलाई छुपी है लेकिन वो आदमी तो सिर्फ अपना
    पेट भरने के लिए किसी की जान ले रहा है !

    पहली वाली कहानी भी अच्छी है

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  14. बहुत अच्छी पोस्ट है दिल को छु लिया है

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  15. प्रकाश जी आपकी दोनों लघु कथाएँ पढीं...कम शब्दों में बात कहने का आपका ये अंदाज़ बहुत दिलकश है...कथ्य और शिल्प के लिहाज़ से बेजोड़...दोनों ही कथाएँ दिल पर दस्तक देती हैं...पहली में इंसान को अपनी सरहदों से बाहर जाने की प्रेरणा मिलती है तो दूसरी करनी और कथनी का अंतर स्पष्ट करती है...आपको इन लघु कथाओं के प्रस्तुतीकरण के लिए तहे दिल से धन्यवाद....
    नीरज

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  16. Jis baat ko kahne me kai pristh rangne hote usi bat ko atyant prabhavi dhang se aapki pahli laghukatha chand shabdon me kah jati hai.Vaastav me manushya hamesha apne aap se bhagne ki koshish me laga rahta hai.

    Jahan tak dusri laghukatha ka sawal hai to yah berahmi se manushya dwara pahne gaye mukhote ko noch ke phenkti hai.Par jo baat pidadayak hai wo yah ki koi na koi mask to hum sabhi ne laga rakha hai aur shayad isse wakhif bhi nahin.

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  17. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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    INDIAN DEITIES

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  18. दोनों कहानियां बहुत सुन्दर हैं. दोनों कहानियों में ही गहरी बात छुपी है. दोनों में ही मानवीय कमजोरियां छुपी हैं.
    मुझे बहुत पसंद आयीं. अमा यार कैसे लिखते हो ? लेकिन खूब लिखते हो.

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  19. अच्छी लघुकथाओं के लिए बधाई
    आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
    रचना गौड़ ‘भारती

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  20. "sirji aapki laghu katha o ne to dil aur dimag hamara jit liya hai ....wakai me sabd aur sahi prasang ka talmel sahi waqt per bahut kum jagah dekhne milta hai jo aaj hume is blog per dekhne mila hai "

    ----- eksacchai {AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  21. आपकी दोनों लघुकथाएं पसंद आई ...

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  22. दोनो ही कहानियां अपना असर छोडतीं हैं ।

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  23. आज काफी दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आई ...... कहानी पढ़ी पहले सोचा इतने लोगो ने तो तारीफ की है...... छोडो चलो यहाँ से.... टिपण्णी तो बताती ही है रचनाकार को की रचना अच्छी है ..... फिर लगा ये तो नाइंसाफी होगी. अतः मेरी ओर से भी बधाई स्वीकार करें .

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  24. dono kahaniya bahut achchi hain...बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....

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  25. मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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  26. बहुत अच लिखा है

    अकेलापन कथा बहुत सही और सुन्दर है.

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  27. प्रकाश जी,

    दोनों ही कथायें प्रभावी हैं और अपनी बात पूरी कहती हैं उनका लघु या वृहद होना जरूरी नही।

    फिर व्ही प्रश्न दोहराना चाहूंगा कि २००६ बाद क्यों नही लिखी? यदि कोई व्यक्तीगत कारण हो तो ठीक नही तो आपने लिखते रहना चाहिये और हम सबसे बाँटते भी।

    सादर,


    मुकेश कुमार तिवारी

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  28. बहुत दिनों से कोई नयी पोस्ट नहीं लिखी आप ने...????

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  29. इष्टमित्रों और परिवार सहित आपको, दशहरे की घणी रामराम.

    रामराम.

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  30. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है.

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  31. बहुत सुन्दर रचनाए हैं प्रकाश जी ! बन्दर का दर्द देखकर दिल पसीज गया छोटे मुर्गे के चुज्जे का नाम आते ही रसना पर पानी आ गया !!! यही हैं हम इंसान !!

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  32. प्रकाश जी ये हवाओं का रुख़ मोड़ कर आप अपनी ही लेखनी में मशगूल हो गये .....और ये एक से बढ़ कर एक रकनायें ....इतनी बेहतरीन टिप्पणियों के बाद कुछ कहने को बचा ही क्या है .....सच -मुच दोनो रकनायें बहुत ही गहरे भाव लिए हुए हैं ....बधाई ...!!

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  33. बहुत दिन से सोच रही थी कि फुरसत मे आपला पूरा ब्लाग पढूँगी ।अज सोचा और कुछ नहीं यही काम किया जाये। आते ही पढ कर अनुभूति हुयी कि पिछले एक साल से इतने ब्लाग पढने पर भी मैने कुछ नहीं पढा और ैअकेला और हमदर्द लघु कथाओं ने सारी कमी पूरी कर दी आपकी लेखनी को नमन है। इस से अधिक शब्द नहीं हैं मेरे पास । बाकी रचनायें ऐसे ही धीरे धीरे पढूँगी। बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्

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  34. प्रकाश जी आपकी कहानियां बेहतरीन हैं...

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  35. .
    अपुन आज को सिरिफ़ आपका घर देखने वास्ते आयेला है ।
    अच्छा लगा अमकूँ, फुँटास इश्टोरी लिखता है, बास... निडर लोग का माफ़िक कमेन्ट बक्सा का दरवज़्ज़ा भी बिन्दास वेलकॅम दिया, सो चलेंगा । आज टैम नहीं है, पण अब आने-जाने का इश्टार्ट करता हूँ ।

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  36. पोस्‍ट पढ़ कर, घर के पते की खोज का नमूना मनोहर श्‍याम जोशी की कुरु कुरु स्‍वाहा का भी याद आ रहा है.

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  37. बहुत दिनों बाद कोई पढने लायक सामग्री मिली. धन्यवाद्. आप सब को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक त्योहार दशहरा की शुभकामनाएं. आज आवश्यकता है , आम इंसान को ज्ञान की, जिस से वो; झाड़-फूँक, जादू टोना ,तंत्र-मंत्र, और भूतप्रेत जैसे अन्धविश्वास से भी बाहर आ सके. तभी बुराई पे अच्छाई की विजय संभव है.

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  38. meri khanabadoshi se puchho
    kitna mushqil hai raste ko ghar kahna

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  39. bahut dinon baad is or aai....sach kahun to aapki post hai to bahut hi umda....lekin kaafi badi bhi to ise phir se padhne aaungi...aapke dwara diye bebaki ke adhikaar ka upyog karte huye ye likh rahi hun...dhanywaad

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  40. Bahut sundar laghukathayen....
    Aapko Janamdin kee bahut bahut haardik shubhkamnayen....

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  41. vyast pathakon ke liye sashakt lekhan badhai...aKELEPAN KO PARIBHASIT KAR DIYA...,DOOSARI KAHANI SE MENAKA GANDHI KE SARP PRAM KI YAD AA GAI ,VE KABHI BAKARE KI HALALI PAR BAT NAHIN KARTI.

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'आप की आमद हमारी खुशनसीबी
आप की टिप्पणी हमारा हौसला' !!

संवाद से दीवारें हटती हैं, ये ख़ामोशी तोडिये !!
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