गुरुवार, जून 25, 2009

यकीन

यकीन [लघु कथा 131लघुकथा एवं रेखा चित्र - प्रकाश गोविन्द

वह दोनों आमने-सामने बैठे थे ! बीच में एक छोटी सी गोल मेज थी ! जिसमें कॉफी के दो प्याले, एक शुगर पाँट, दो चम्मच और एक ऐश ट्रे पड़ी थी ! आदमी सिगरेट पीते हुए थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुस्करा देता था ! औरत चुप थी, लेकिन आदमी की मुस्कराहट से परेशान हो उठती थी !

उसने आदमी से पूछा - "कितने चम्मच चीनी" ?

आदमी ने सन्क्षिप्त जवाब दिया - "दो चम्मच" !

"लेकिन तुम तो हमेशा एक चम्मच चीनी लेते हो" ?

"हाँ" !

"फिर" ?

"आज से पहले तुमने भी तो कभी कुछ पूछा नहीं" !

"हाँ .... लेकिन" ?

"लेकिन कुछ नहीं , आज कॉफी कुछ अधिक मीठी हो तो अच्छा है"

औरत ने चुपचाप दो चम्मच चीनी डाली और कप आदमी की तरफ बढा दिया ! दोनों धीरे-धीरे कॉफी 'सिप' करने लगे और आहिस्ता-आहिस्ता कप खाली हो गए ! सन्नाटे को तोड़ते हुए औरत बोली -
"जानते हो तुम्हारी कॉफी में जहर था, .... जो एक घंटे बाद तुम पर अपना असर दिखायेगा" !

आदमी ने सुना और आहिस्ता से बोला - "मालूम था" !

औरत ने ठहाका लगाया और बोली -
"यानी कि तुमको मालूम था ... इस कप में जहर था,, फिर भी तुम पी गए ? .... जबकि तुम मना कर सकते थे या बहाने से कप गिरा सकते थे या फिर अलमारी से अपना रिवाल्वर निकालकर मुझे गोली भी मार सकते थे,,,लेकिन तुमने यह सब नहीं किया और कॉफी पी गए" ?

"हाँ जानता था फिर भी मैं पी गया ! इसका भी एक कारण है ..... मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि तुम मुझे जहर भी दे सकती हो ... और दुविधा में जीने से बेहतर है असलियत जानने की ललक में मर जाना" !
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[कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित]

bar'यकीन' लघु कथा को अल्पना वर्मा जी के स्वर में सुनिए :