Vyang / व्यंग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Vyang / व्यंग लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, अगस्त 02, 2013

यथा प्रजा तथा राजा

बहुत पहले की बात है ! एक फ़कीर भ्रमण करते-करते किसी नगर में पहुंचा ! वहां मीठे पानी का एक कुंआ था, जिससे सम्पूर्ण नगरवासियों का काम चल जाता था ! फ़कीर ने कुंए का पानी पिया और घोषणा कर दी कि अगली पूर्णमासी को इस कुंए का पानी दूषित हो जाएगा ... जो भी इस पानी को पिएगा वो पागल हो जाएगा ! 

फ़कीर की यह बात चारों तरफ चर्चा का विषय बन गई .... हर तरफ शोर ! सयानों ने कहा कि ये फ़कीर खुद पागल है ... इसकी बात पर क्या ध्यान देना ! जैसा चल रहा है चलने दो ! यह मुद्दा राजा के कानों तक पहुंचा तो उसने तत्काल महामंत्री को बुलाया ! आपस में विचार-विमर्श किया .... महामंत्री ने समझा दिया कि मामला साधारण है ! चिंता करना फिजूल है ! 

राजा आश्वस्त नहीं हुआ ... उसने विवेक का स्तेमाल करते हुए अपने लिए बड़े-बड़े कुंड में मीठा स्वच्छ पानी संचित करवा लिया ! 

इधर कुछ ही समय बाद पूर्णमासी लगते ही कुंए का पानी सचमुच दूषित हो गया ! नगरवासी पानी पी-पीकर पागल हो गए ! राजा ने यह सब देखा तो मन में संतुष्टि हुयी कि अच्छा हुआ जो खुद के लिए पानी संचित करवा लिया ! संचित पानी कई वर्षों के लिए पर्याप्त था ! 

किन्तु कुछ ही दिनों के बाद राजा के लिए राज-काज चलाना मुश्किल हो गया ! वह जान गया कि इन पागलों पर शासन करना नामुमकिन है ! उसने तत्काल एक निर्णय लिया ....... उसने जो भी पानी स्वयं के लिए संचित करवाया था .. वो सारा पानी फिकवा दिया ! अब वो भी कुंए का दूषित पानी पिएगा, क्योंकि .............
==========
The End 
==========
लेखक : प्रकाश गोविन्द
-------------------------

मंगलवार, जुलाई 23, 2013

इन्डियन मुजाहिदीन का नेता जी को पैगाम


भाई जान !
हम खैरियत से हैं ... अल्लाताला से दुआ करते हैं आप भी चैनोअमन से होंगे !
आपको इत्तिला देना चाहता हूँ कि आपके बेवज़ह के बयानात से हमारा दिल टूट गया !
महीनों प्लानिंग हम करते हैं ...
जी जान लगा के बम हम फोड़ते हैं ...
लेकिन आप उसका क्रेडिट किसी और को दे देते हैं ..
ये गैरमुनासिब बात है ... आपको हमारे ज़ज्बातों का ख्याल रखना चाहिए ...
हमारे मुजाहिदीन साथी आपके बयान से बहुत ही ग़मगीन हैं ...
आपका यही रवैया रहा तो हमको कौन बम फोड़ने का ठेका देना पसंद करेगा ?

उम्मीद करता हूँ आपके दिमाग-ए-शरीफ में हमारे ज़ज्बात घुसे होंगे !
परवरदिगार आपको थोड़ी समझदारी दे !
आमीन !

आपका गरीब भाई
इन्डियन मुजाहिदीन



=========
The End 
=========
Prakash Govind

------------------------------------------------------------------------------------------
फेसबुक लिंक :
------------------------------------------------------------------------------------------

शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008

तमाशा -ए-लोकतंत्र


- व्यंग कथा -


उस बस्ती से बाहर जाने वाले रास्ते पर एक विशाल पत्थर पड़ा था ! बस्ती वालों ने कई बार सरकारी संस्थाओं से गुहार की थी कि उस पत्थर को हटा दिया जाए क्यूंकि उससे आम जनता को बड़ी परेशानी होती है , लेकिन जैसा कि सरकारी काम काज में हमेशा होता है , उनकी बात पर किसी ने ध्यान नही दिया !

लेकिन एक बार संयोग से जब राज्य में सरकार बदली तो एक ऐसे सज्जन मुख्यमंत्री बन गए, जिनके एक रिश्तेदार उस बस्ती में रहते थे ! रिश्तेदार ने मुख्यमंत्री से कहा ! मुख्यमंत्री ने तुंरत कार्यवाई करने का आश्वासन दिया ! मुख्यमंत्री ने एक मंत्री को "पत्थर हटाओ विभाग" का मंत्री बना दिया ! मुख्यमंत्री के पास, जाहिर है कि बहुत सारे काम थे, सो व्यस्तता के चलते वे "पत्थर हटाओ विभाग" बनाना भूल गए ! नए बने मंत्री सचिवालय गए और उन्होंने जगह-जगह पूछा कि "पत्थर हटाओ विभाग" कहाँ है ? लेकिन उन्हें कोई ठीक जवाब नही दे पाया ! यहाँ तक कि अपने विभाग की खोज में वे सचिवालय के बाहर पानवालों और चायवालों के पास भी गए, लेकिन उन्हें कुछ पता नही चला ! उन्हें कार, बंगला, सुरक्षा गार्ड और चपरासी मिल गए, लेकिन विभाग नही मिला !

कालांतर में राजनैतिक वजहों से अचानक मंत्री जी का राजनैतिक वजन बढ़ गया सो मुख्यमंत्री को उनकी बात सुननी पडी ! तुंरत विभाग का गठन हो गया ! "पत्थर हटाओ विभाग" में एक सचिव, एक संयुक्त सचिव, एक उप सचिव आदि मय पीए, टाइपिस्टों, चपरासियों के आ गए ! बल्कि एक पत्थर हटाओ निदेशालय भी बन गया और वहां निदेशक, उप निदेशक आदि मय अमले के आ गए ! हर विभाग का बजट बना ! बैठकें होने लगीं ! अच्छा खासा दफ्तर बन भी गया !

लेकिन एक समस्या हो गई ! जिस बैठक में पत्थर हटाने के लिए मजदूर लगाने का निर्णय होना था उसके पहले मंत्रिमंडल में फेरबदल हो गया ! विभाग के मंत्रीजी को वित्त विभाग में छुट्टे पैसों का स्वतंत्र प्रभार मिल गया और पशुपालन विभाग में सुअरबाड़े के प्रभारी मंत्री "पत्थर हटाओ विभाग" के मंत्री हो गए ! उनकी इस विभाग में कोई रूचि नही थी ! सचिव महोदय भी तबादला करवा कर दिल्ली चले गए ! उसके बाद कालांतर में सरकार बदल गई और नए मुख्यमंत्री की भी इस विभाग में कोई रूचि नही थी, इसलिए पत्थर वहीँ पड़ा रहा ! फ़िर निजीकरण की क्रान्ति आ गई, जहाँ तहां ढीले-ढाले सरकारी तंत्र की जगह चुस्त दुरुस्त निजी क्षेत्र आ गए !

फ़िर वक्त के फेर में पुराने वाले मुख्यमंत्री फ़िर से मुख्यमंत्री बन गए ! उनके रिश्तेदार पत्थर की शिकायत लेकर फ़िर उनसे मिले ! मुख्यमंत्री ने कहा कि अबकी बार वे सरकारी तंत्र पर निर्भर नही रहेंगे ! यह काम निजी क्षेत्र को दिया जायेगा !

"पत्थर हटाओ विभाग" को ख़त्म करके उसका विनिवेश कर दिया गया ! एक निजी कंपनी को पत्थर हटाने का ठेका मिला ! उस कंपनी ने एक और कंपनी बनायी, जिसका नाम 'स्टोन एंड स्टोन' था ! एक विख्यात मेनेजर को इस कंपनी का जनरल मेनेजर बनाया गया ! इसके बाद कई मेनेजर नियुक्त हुए ! एक सज्जन मानव संसाधन मेनेजर बने, एक प्रोडक्शन मेनेजर बने, एक जनसंपर्क मेनेजर बने, एक मेंटेनेंस विभाग के मेनेजर बने, जाहिर है एकाउंट्स और सामान्य काम काज देखने के लिए मेनेजर तो थे ही ! एक शानदार एयर कंडीशंड खूबसूरत ऑफिस बनाया गया ! तमाम अखबारों में विज्ञापन दिए गए !

ऑफिस में तमाम भर्तियाँ हुयीं ! इस बीच जनरल मेनेजर ने इस्तीफा दे दिया ! उन्हें मनाने के लिए उन्हें तरक्की देकर सीईओ और प्रेसिडेंट बना दिया गया ! इसी बीच और मेनेजरों कि तरक्की भी हुयी, जो मेनेजरों थे वे सब जनरल मैनेजेर हो गए ! जनरल मैनेजेर वाइस प्रेसिडेंट हो गए, बाबू मेनेजर हो गए ! इन लोगों की रोज कई बैठकें होतीं थीं ! जिनमे तय किया गया कि पत्थर हटाने के लिए कुछ मजदूरों को भर्ती किया जाए !

मजदूर भर्ती भी हुए, लेकिन इस बीच कंपनी की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई और उसे ठीक करने के लिए मजदूरों को निकालने का फ़ैसला किया गया ! यह पाया गया कि मजदूर कंपनी पर बोझ थे, इसलिए उनकी छुट्टी कर दी गई ! लेकिन पत्थर हटाने का काम करना जरूरी था इसलिए यह तय किया गया कि किसी और कंपनी को पत्थर हटाने का ठेका दिया जाए ! यह प्रक्रिया चल ही रही थी कि मालिक ने घोषणा कर दी कि कंपनी घाटे में है और इसे बंद किया जाए ! मेनेजर लोग दूसरी कंपनी में चले गए, कंप्यूटर बेच दिए गए !

वह पत्थर अब भी बस्ती के रास्ते में पड़ा है !!!