वह दोनों आमने-सामने बैठे थे ! बीच में एक छोटी सी गोल मेज थी ! जिसमें कॉफी के दो प्याले, एक शुगर पाँट, दो चम्मच और एक ऐश ट्रे पड़ी थी ! आदमी सिगरेट पीते हुए थोड़ी-थोड़ी देर बाद मुस्करा देता था ! औरत चुप थी, लेकिन आदमी की मुस्कराहट से परेशान हो उठती थी !
उसने आदमी से पूछा - "कितने चम्मच चीनी" ?
आदमी ने सन्क्षिप्त जवाब दिया - "दो चम्मच" !
"लेकिन तुम तो हमेशा एक चम्मच चीनी लेते हो" ?
"हाँ" !
"फिर" ?
"आज से पहले तुमने भी तो कभी कुछ पूछा नहीं" !
"हाँ .... लेकिन" ?
"लेकिन कुछ नहीं , आज कॉफी कुछ अधिक मीठी हो तो अच्छा है"
आदमी ने सन्क्षिप्त जवाब दिया - "दो चम्मच" !
"लेकिन तुम तो हमेशा एक चम्मच चीनी लेते हो" ?
"हाँ" !
"फिर" ?
"आज से पहले तुमने भी तो कभी कुछ पूछा नहीं" !
"हाँ .... लेकिन" ?
"लेकिन कुछ नहीं , आज कॉफी कुछ अधिक मीठी हो तो अच्छा है"
औरत ने चुपचाप दो चम्मच चीनी डाली और कप आदमी की तरफ बढा दिया ! दोनों धीरे-धीरे कॉफी 'सिप' करने लगे और आहिस्ता-आहिस्ता कप खाली हो गए ! सन्नाटे को तोड़ते हुए औरत बोली -
"जानते हो तुम्हारी कॉफी में जहर था, .... जो एक घंटे बाद तुम पर अपना असर दिखायेगा" !
आदमी ने सुना और आहिस्ता से बोला - "मालूम था" !
आदमी ने सुना और आहिस्ता से बोला - "मालूम था" !
औरत ने ठहाका लगाया और बोली -
"यानी कि तुमको मालूम था ... इस कप में जहर था,, फिर भी तुम पी गए ? .... जबकि तुम मना कर सकते थे या बहाने से कप गिरा सकते थे या फिर अलमारी से अपना रिवाल्वर निकालकर मुझे गोली भी मार सकते थे,,,लेकिन तुमने यह सब नहीं किया और कॉफी पी गए" ?
"हाँ जानता था फिर भी मैं पी गया ! इसका भी एक कारण है ..... मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि तुम मुझे जहर भी दे सकती हो ... और दुविधा में जीने से बेहतर है असलियत जानने की ललक में मर जाना" !
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[कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित]
just awesome...
जवाब देंहटाएंप्यारका ऐसा जजबा... या बेवफ़ाई का अंजाम?
जवाब देंहटाएंचलो कहानी खत्म पेसा हज्म,
जवाब देंहटाएंwow, i hav started following this blog.
जवाब देंहटाएंVery nice post...
Would like to fwd this short story to my friends, if you dont' mind.
अब यकीन आया या नही?
जवाब देंहटाएंरामराम.
कहानी बेबाक है ओर निर्मम भी...तल्ख़ भी है ओर दिलचस्प भी....ह्म्म्म्म्म्म ये अंदाजे बया भी कुछ अलग सा है...
जवाब देंहटाएंकुछ अलग सी लघु कथा.
जवाब देंहटाएंजो अंत में बेबाक खामोशी छोड़ जाती है.
कहानी में वफा और बेवफाई का अद्भुत चित्रण किया है.
गहरी छाप छोड़ती है रचना
आपका ब्लॉग नित नई पोस्ट/ रचनाओं से सुवासित हो रहा है ..बधाई !!
जवाब देंहटाएं__________________________________
आयें मेरे "शब्द सृजन की ओर" भी और कुछ कहें भी....
कहानी का कथानक बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गया.. आप बहुत अच्छे carrykachr भी बनाते हैं आज ही पता चला.. आभार.
जवाब देंहटाएंमैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि तुम मुझे जहर भी दे सकती हो ...
जवाब देंहटाएंऔर दुविधा में जीने से बेहतर है असलियत जानने की ललक में मर जाना" !
ये कहानी की बेसलाईन हैं
आखिर की दो पंक्तियाँ मन को उद्वेलित कर देती हैं
कहानी के अंत के बारे में कुछ भी कह पाना बहुत मुश्किल है
प्यार का आधार यकीन ही होता है - - - अगर यकीन नहीं तो प्यार कैसा ?
शायद यह विश्वास और विश्वासघात दोनों की पराकाष्ठा है
bahut hi nirala andaz..............
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा है।
जवाब देंहटाएंye to Mujhe pata hi nahi tha ki aap itne lambe samay se kahaniya likh rahe hai...kahani vakai achhi hai...
जवाब देंहटाएंcarrykachr bhi bahut achha banaya hai apne...
प्रकाश जी,
जवाब देंहटाएंवाकई एक बहुत ही कसी हुई लघुकथा पढी आज। बहुत ही सधे हुये ताने-बाने में बिंधा हुआ घटनाक्रम। आज के दौर में रिश्तों में ऐसा मर्म शायद अब कथाओं की ही बात हो।
रेखाचित्र बिल्कुल संगत देता है जा़किर हुसैन साहब की तरह।
दिल से बधाई
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अच्छी लगी आपकी कहानी, पुरानी होकर भी कितनी नयी है..
जवाब देंहटाएंआपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! चित्र भी बहुत सुंदर बनाया है! बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
--kasaa हुआ kathanak!
जवाब देंहटाएं-सच में दिल को chhu गयी यह कहानी !
**anmol जी की बात dohra रही हूँ--'यह विश्वास और विश्वासघात दोनों की पराकाष्ठा है'.
-कहानी लिखने का andaaz भी pasand आया..20 साल पहले likhi यह कहानी आप ने आज prastut की ,abhaar,
अपनी likhi और भी kahaniyan padhwayen..anurodh है.
[सोच रही हूँ...kahani ka [1 ghante baad- anjaam क्या हुआ होगा??]
हो सकता है वह zahar नकली हो??[ तो..कितना achcha होगा..एक जान तो bach jayegi..
--
Aap artist bhi hain yah jaankar ashcharya hua!
rekha chitr bahut achcha hai.
- multi-talented personality hain!
गोविन्द सर आपने बेहद दिलकश अफसाना लिखा है. कहानी अंजाम पे आकर हैरत में डालती है. क्या इतना सेंसटिव भी कोई होता है. मै भी इसको पढ़कर उदास हो गयी. आप हमें भी बताएं कैसे इतना सुन्दर हम लिख सकते है
जवाब देंहटाएंआप ऊपर वाली कमेन्ट को हटा दें. जिसमे बुराई लिखी है.
वाह प्रकाश जी, बहुत अच्छी लघुकथा.....
जवाब देंहटाएंis kahaani ko maine bahut pahle kisi magzine mein padha hai aur ye kahaani meri diary ka hissa v hai... aaj ise blog par dekhkar dil ko itni khushi mili main bata nahi sakta...
जवाब देंहटाएंye kahaani mujhe us din v itni hi pasand thi jitni aaj...
likhte rahiye...
मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि तुम मुझे जहर भी दे सकती हो ...
जवाब देंहटाएंऔर दुविधा में जीने से बेहतर है असलियत जानने की ललक में मर जाना" !
मुझे कहानी बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
खूब सूरत लघुकथा.
जवाब देंहटाएंओ-हेनरी की कहानियों मे पुरूष गोली मारता कहानी खत्म हो जाती ,लेकिन मुझे आपका मतलब आपकी कहानी का अन्त पसन्द आया
श्याम सखा
मन को झकझोर देने वाली रचना। पढवाने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
पसंद आयी आपकी लघुकथा ,बधाई .
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा ----बधाई
bahut hi achhi laghu katha lagi...
जवाब देंहटाएंकहानी तो अच्छी है परन्तु इतना दुखद अंत? और इतनी खतरनाक बेबफाई ? वेसे कहानी थोडी सी बड़ी होती तो और मजा आता.
जवाब देंहटाएंअंत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंमन यह मानने को तैयार नहीं होता कि अन्त दुःखद होगा। कुछ न कुछ चक्कर होगा एक लाइन का भर का। पर क्या? यही तो बात है...
जवाब देंहटाएंरचना अपने आप में बहुत सुन्दर है।
bevafai mein marna behtar hai kya?
जवाब देंहटाएंकहानी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंअनूठी शैली मे लिखी गई,
जवाब देंहटाएंउत्तम लघु कथा के लिए बधाई।
सुंदर/सचोट कथा! पति के जवाब ने शायद पत्नि को ज़िंदा ही मार दिया होगा।
जवाब देंहटाएंEk prabhavi laghukatha me jo hona chahiye wo sari hi chijen hain isme.Badhai.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी है. अंत में कहानी जिस तरह से पलटती उससे इसकी मार्मिकता बढ़ जाती है.
जवाब देंहटाएंये हिदी में लिखने वाला बॉक्स कैसे लगाया है हमे भी बताये...
story..kaaphi achchi hai..lagta nahi ki aapki ye pahli rachna hai.....
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कहानी..मानवीय भावों को प्रदर्शित करती हुई .
बधाई
sir , main bahut der se aapki posts padh raha hoon , aur ye waali post s padhkar to mere shabd hi chup ho gaye...
जवाब देंहटाएंnaman hai aapko ,.aapki lekhni ko salaam..
meri badhai sweekar karen..
Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
सबसे पहले आपका शुक्रिया की आप मेरे ब्लॉग पे आयें और इतना बढ़िया कमेन्ट किया....सच में लोग प्रेम में कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहतें हैं.....बहुत अच्छी रचना....
जवाब देंहटाएंchhoti si khani me gahre bhaw..really awesome....
जवाब देंहटाएंअफ़सोस की आपके ब्लॉग पर आने में देरी हुई...क्या खो रहा था पता चला...चलो देर आयद दुरुस्त आयद...आप का ब्लॉग तो खूबसूरत है ही आपकी लेखनी भी कमाल की है...जिस अंदाज़ से आपने ये लघु कथा लिखी है उस पर तालियाँ बजाने को जी करता है...बहुत खूब....लिखते रहें...
जवाब देंहटाएंनीरज
कहानी अच्छी है बहुत बहुत बधाई.....
जवाब देंहटाएंयकीन के साथ जीना होता है .यकीन जब हो ही गया की सच क्या है तो मरना क्यूं ? कहीं यकीन से ज्यादा यह इच्छा तो नहीं की तुम्हारे लिए मर भी सकते हैं :):)
जवाब देंहटाएंप्रकाश भाई आप अपनी और भी लघु-कथाओं को पोस्ट कीजिये
जवाब देंहटाएंमैं उन्हें भी पढ़ने के लिए उत्सुक हूँ
कृपया जल्दी-जल्दी पोस्ट किया करें
बार-बार खाली लौटना पड़ता है
google men search karte huye pata nahi kaise yahan aa gaya,. saahitya ki jyada samajh nahi hai mujhe. lekin isko padhane ke baad ajeeb sa ehsaas hua. acha laga kahne se jyada uchit hoga ya kahna ki aapki kahani ne udaas kar diya. (-gunjan goswami)
जवाब देंहटाएंawesome ...Intresting ...memorable ...
जवाब देंहटाएंJust wonderful story
Bahut dino se kuch naya post nahin kiya aapne.
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंडॉ.अनुराग की पोस्ट पर आप के कमेन्ट पढ़े...ऐसा लगता है वह खुद ब खुद अपने आप में एक पोस्ट बन सकती है..वैसे भी आप की तारीफ़ है और आप की टिप्पणी से लगता भी है की आप ने पोस्ट को बड़े दिल और दिमाग से पढ़ा है..सरसरी नज़र से नहीं...कविताओं की पंक्तियाँ और उदहारण जोड़ना किसी निबंध जैसा बना देते हैं...
वैसे ,आप की नयी पोस्ट कब आएगी?काफी समय से कुछ नया पोस्ट नहीं किया आप ने?
आभार,
अल्पना
Uff ! Iske aage kuchh nahee kah paa rahee hun...
जवाब देंहटाएंhttp://kshama-bikharesitare.blogspot.com/
prakash ji
जवाब देंहटाएंmere paas koi shabd nahi hai ki mai aapke lekhan ki taarif karun ..main spechless hoon bhai.. aapki lekhni ko salaam .. aapko naman .. yaar main ye kahaniya ,apne ghar me padhwaata hoon , aap sach me bahut accha likhte ho ji .. aapse ab seekhna padhenga sir .. naman ..
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
sir ,aapka lekhan mujhe baar baar yahan aane par mazboor kar deta hai .....kya karun .. bahut dino baad aaj blogging karne baitha hoon.. aapki kahani padhne baith gaya ..
जवाब देंहटाएंaap ki chhoti-chhoti laghu kathayen bahut badi badi seekh deti hain aap ki rachnayen bahut achhi lagti hain aise hi likhte rahiye.
जवाब देंहटाएंमैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि तुम मुझे जहर भी दे सकती हो ...
जवाब देंहटाएंऔर दुविधा में जीने से बेहतर है असलियत जानने की ललक में
मर जाना" !
behad prabhavi..
बहोत ही मार्मिक लघु कथा लिखी है आपने. मै आपको एक महिने से जान रहा हूँ, पर इस लघु कथा को आज ही पढ़ पाया
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी,
यकीन और हमदर्द दोनों लघु कथाएँ पढ़ीं। पढने के बाद मन में बहुत बेचैनी थी , शायद आप इस कहानी के लेखक होने के कारण बेहतर समझ सकेंगे। फिर टिप्पणियां पढ़ीं , और मेरी बेचैनी ख़तम हुई आपकी ही एक टिपण्णी से --
" गुनाहगार को भी गुनाह का बोझ
बहुत लम्बे समय तक उठाना पड़ता है ..."
आभार।
.
मै कहानियाँ बहुत पसन्द करता हों और लिखता भी हूँ , मुझे आप कि कहानियाँ बहुत पसन्द आयी|
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर भी पधारें मेरा पता -
http://deep2087.blogspot.com
आज पाँचवी बार इस लघुकथा को पढ़ रहा हूँ, ना जाने क्यों मेरा मन इस ब्लॉग पर आता है तो तो इसी लघुकथा पर ठहर जाता है, अभी मैने आपकी कई रचनाएँ नहीं पढ़ी है, जब इस ब्लॉग पर आता हूँ तो ये पोस्ट मुझे अपनी तरफ खींच लेती है और फिर पुरी लघुकथा पढ़ने के बाद एक-एक करके सारे कमेंट भी पढ़ता हूँ.
जवाब देंहटाएंनिश्चित तौर पर ऐसा इसलिये है क्योकिं इतनी अच्छी लघुकथा मैनें आज तक कहीं नहीं पढ़ी और हो सकता आगे भी ऐसी लघुकथा पढ़ने को ना मिले.
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सर दीपावली के अवसर पर कहीं दिखे नहीं आप...... कहाँ है आप ????????
लगभग सभी ब्लॉगर्स ने दिवाली के दिन अपने ब्लॉग पर दिये रखे और लोगों को शुभकामनाएँ दी
पर आपका ब्लॉग दिपक के बगैर भी जगमगा रहा था..................
अंधेरी राह पर जगमगाती एक नयी आश हैं
वक्त से परे रहकर झिलमिलाते रहिये
कैसे कहूँ उजालों का साथ रहे आपके संग
आखिर आप तो खुद ही प्रकाश हैं....................
इस कंमेंट को लिखते समय कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा कीजियेगा.................
बहुत ही बढ़िया.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी
जवाब देंहटाएंयशवंत भाई
जवाब देंहटाएंआपकी इनायत का शुक्रिया ..
कोमल भावो की
जवाब देंहटाएंबेहतरीन........