सोमवार, जुलाई 29, 2013

क्या सचमुच दुखुराम अपराधी है ?

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समाचार-पत्र में छपी एक खबर पर 
नज़र पड़ी तो मैं सोच में पड़ गया !!
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जाँजगीर ( छतीसगढ़ ) चांपा जिले के बिर्रा गाँव में रहने वाले दुखुराम का अपने भाइयों के साथ ज़मीन जायदाद सम्बंधित एक मुकदमा लगभग छः साल से चल रहा है | मुक़दमे की पेशियों से परेशान दुखुराम को उम्मीद थी कि इस बार उसके मामले में सुनवाई हो जाएगी | मुक़दमे की पेशी पर अदालत में पहुंचे दुखुराम यादव को जब लगा कि इस बार भी सुनवाई नहीं होगी और अगली तारीख मिलेगी तो उसने अपनी जेब से सौ सौ रुपये के तीन नोट निकाल कर जज की ओर बढ़ा दिये | उसने जज से अनुरोध किया कि वे पैसे ले लें और सुनवाई कर दें | 


भरी अदालत में रिश्वत की इस पेशकश से जज और दुखुराम यादव के वकील सहित सभी लोग भौंचक रह गये | जज के निर्देश पर फ़ौरन पुलिस को बुलाया गया और रिश्वत देने के मामले पर दुखुराम यादव को गिरफ्तार कर लिया गया | मामला रिश्वत की पेशकश का था इसलिए जज की शिकायत पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 8 और 12 के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया | 

पत्रकारों से बातचीत में दुखुराम ने सरलता से जवाब दिया "मुझे गाँव में बताया गया था कि पेशी पर पैसे देने पड़ते है तभी सुनवाई होती है | बहुत उम्मीद के साथ मैंने जज साहब को पैसे दिये थे, लेकिन उन्होंने नहीं लिये' 

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कोई मुझे बताए कि :-
क्या सचमुच दुखुराम अपराधी और सजा पाने के योग्य है ?
क्या उसने जो कुछ अदालत में कहा और किया वह असत्य था ?
क्या वादी ज़िंदगी भर मुक़दमे की पड़ती तारीखों पर अदालत का
चक्कर लगाते रहने के लिये बाध्य और अभिशप्त है ?
किसके पास है उत्तर इन प्रश्नों का ?
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ चुनिन्दा टिप्पणियां
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Syed Khalid Mahfooz : 
"Justice Delayed Justice Denied"..... 
कोई जवाब नहीं है ... होंठो पर सिर्फ सवाल है .
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Chandrashekher Giri :
व्यवस्था पर सवाल तो बहुत से हैं …पर क्रान्तिकारी बदलाव लाये कौन…लकीर के फ़कीर बनना मज़बूरी सा बन गया है । 
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Ajeet Yadav :
Judicial system ke corruption ko rokane ke liye judicial accountability jaroori hai. Delay in judgement must be punished. If a higher court reverts any decision of a lower court there must be a system of punishing the lower court judge for bad/wrong decision. Power without accountability is the root cause of corruption in Judicial system.  Judge, imaandaar to tab maana jaata jab Dukhuram ke case me sunwaai puri kar usi din decision de deta. ek puraani kahaawat hai : 'aadami jab thaana-kachehari jaata hai to samjho usake bure din aa gaye haiN', aaz bhi yah satya hai.
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Govind Singh Parmar  :  
इस व्यवस्था के सामने इतने नंगेपन से ही काम चलेगा.
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Sangita Puri  :
बहुत बुरा हाल है व्‍यवस्‍था का .. आम आदमी करे भी तो क्‍या?  
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Raj Bhatia : 
जज को दिखाई नही देता कि यह छोटा सा मामला इतना लमबा केसे चल रहा हे ? मेरे विचार मे दुखु राम निर्दोष हे....
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स्वप्निल जैन :
300 रुपए कम हैं - जज को अपमान महसूस हुआ --- दुखुराम को फांसी दो 
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Ravindra Singh :
in the presence of judges their staff collect bribe and the judges closes their eyes because more than fifty precent of the total collection goes to the dining table of judges via kitchen... and it is very easy to shoot on cameras... 
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पवन कुमार जैन  :  
जज साहब ने अपनी खिसियाहट उतारी है .. वरना 98 प्रतिशत जज आज इस तरह से धन लेने में संलिप्त हैं .. उनके सामने ही उनका स्टाफ पैसे लेता है .. वह पीठ पीछे लेते हैं .. दुखुराम सीधा आदमी था उसे पीछे से देने के बारे में ज्ञान नहीं था ...
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राजीव तनेजा :
माना कि जज रिश्वतखोर होते हैं लेकिन ऐसे...सरेआम?....सबके सामने?....कतई नहीं...कदापि नहीं....और फिर क्या इतने बुरे दिन आ गए हैं हमारे यहाँ के न्याधीशों के कि तीन-तीन सौ रूपए पे अपना ईमान बेचते फिरे?....उसे कम से कम माननीय(?) जज साहब के रुतबे...उनकी हैसियत ...उनकी पोजीशन का ख्याल तो रखा ही चाहिए था.  
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सुनील अनुरागी : 
दुखुराम को किसी ने ये बात नहीं बताई रिश्वत छुपाकर या परदे के पीछे से दी जाती है.छुपाकर दोगे तो यहाँ पीएम भी रिश्वत लेने को तैयार है. काम भी हो जाएगा और मुकदमा भी नहीं चलेगा.
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Sambhu Singh  :
जज का जो चरित्र ऊसे गाव मे बताया गया था ऊसने वैसा किया, जज तो समझदार थे, उन्हे तो उसकी परेशानी समझ कर कारबाई पे ध्यान देना चाहिए था। 
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Ravi Gahlot :
Nahi wah gunehgar nhi balki voh to nadan or sidha saada insan hai. Us men agar thodi bhi chalaaki hoti to kya wo is tarah sab ke samney judge sahab ko paise dene ki gustakhi krta 'nahi' kabhi bhi nahi. usko to sirf insaf chahiye tha jo usko itney lambey arsey se nahi mila tha. Or ha asli gunehgar to wo log hain jo paise ki khatir apna dil imaan bech dete hain, or fir insaaf jaldi de dete hain. Arey jo log apna "dil,imaan" bech chukey hain aise log kya kisi ko insaaf de payengey or kya kisi ke huq main faisla dengey, jo paisa dega insaf to usi ko milega. 
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Vishvatosh Pandey :  
Agar Nyayadheesh hi vyakti ki manodasha samajhane me chook karenge to nyaay ki umeed bhi dhoomil hone ke kagar pe pahunch jayegi.
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कवि दीपक दीप :
ab Sach bolne pe bhi saja...  aur Jhooth bolne ki bhi saja...  hame sab saja de do... lakin... is anyaay ko hata do..  ya to le lo..  ya fir lena dena band karo..  ek aam admi ke jeevan ka sach....
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Dr.Anil Gupta : 
aaj ka samay jou desh ka chal raha hai yah iska marmik chitran hai.
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दिनेशराय द्विवेदी :
यह हमारी न्याय व्यवस्था की विडम्बना है। यह रिश्वत का मामला भी नहीं है। यह तो न्याय व्यवस्था में जो देरी की जा रही है उस का प्रतिरोध मात्र है लेकिन साथ ही वर्तमान सत्ता को चुनौती भी है। यह प्रदर्शित करता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक ढकोसला है। न्याय व्यवस्था पूरी तरह सत्ता के नियंत्रण में है। सत्ता कभी भी न्याय पालिका को इतनी सुविधा प्रदान नहीं करती कि वह पर्याप्त संख्या में इतने न्यायालय स्थापित कर सके जिस से लोगों को प्रत्येक मामले में एक दो वर्ष में न्याय प्रदान किया जा सके। अब जब सत्ता को चुनौती दी गई है तो सत्ता दंड तो देगी। उस का सामना भी करना पड़ेगा। सत्ता को चुनौती एक व्यक्ति जब भी देता है तो उस की यही स्थिति होती है। यदि इस व्यक्ति को दंड मिलता है तो यह सत्ता को एक व्यक्ति द्वारा दी गई चुनौती की सजा होगी।  

I think this type of Judges are not human beings. They born as human but the system changed them in mechanical devices.
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Mangleshwer Sharma :
ये सभी भ्रष्टाचारी बद हैं... बदनाम नहीं (क्योंकि आरोप साबित नहीं हुआ)... और बद को कोई सजा नहीं.. बदनाम को है. करोड़ों डकारने वाले शान से कहते हैं की हम इमानदार हैं, और कोर्ट उनका कुछ नहीं बिगाड्पाती.. पर केवल 10 पैसे की हेराफेरी में एक कोर्ट ने एक पोस्टमास्टर को 6 महीने की सजा और नोकरी से निकाला दे दिया... भाई ये तो अंधेर नगरी और चोपट राजा है... टेक सेर भाजी और टेक सेर खाजा है.... 
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Abhinav Pandey :  
एक तो भ्रष्टाचार, उस पर कोढ़ मेँ खाज ये न्याय व्यवस्था.... ये घटना निस्संदेह सोचने को बाध्य करती है. . . अगर बाप ने रिश्वत नहीँ दी और उसको फँसा दिया गया तो जीवन भर केस लड़ने के बाद भी अंत समय बाप की बेग़ुनाही साबित करने बेटे का 'पेशी' पर जाना क्या न्यायसंगत और तर्कसंगत है?? दुखराम की ग़लती तो है और वो ये कि वो भोला है और ग़रीब है। अगर तमाम तरह के हरे, पीले, लाल पत्तोँ वाले क़ानून जानता तो कब का निकल भागता अपने सच को साबित करके या अपने झूठ को ज़मानता दिलवाकर. . . . . . यहाँ इलाहाबाद मेँ, रोज़ाना सैकड़ोँ मुवक़्क़िल, वादी दिख जाएँगे जिनकी हालत मुवक़्क़िल जैसी कम और शादी के दिन लड़की के बाप जैसी ज़्यादा लगती है....
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Gopal Sharma :
प्रकाश जी, इस घटना के बारे में जानता हूँ क्योकि जहाँ मै (कोरबा) रहता हूँ उससे से कुछ ही दूरी पर जांजगीर है .जज साहब के सामने बैठ कर खुले आम बाबू पैसे लेते है, सच मे कानून अँधा है और छत्तीसगढ़ मै तो तरक्की बहुत हुए है पर न्याय पालिका घ्वस्त हो गयी है जग्गी हत्या कांड और बिनायक सेन प्रकरण सब को मालूम है  
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रमा शंकर शुक्ल : 
एक घटनाक्रम को लेकर समूची न्याय प्रणाली और भारतीय सिस्टम पर प्रकाश जी की चिंता को चलताऊ नहीं कहा जा सकता. दर-असल भारत का हर दफ्तर इसी मानसिकता में संचालित है. एक घटनाक्रम बता रहा हूँ - 

मेरे विद्यालय के प्रभारी प्रबंधक सिटी मजिस्ट्रेट दया शंकर पाण्डेय आवास विकास प्राधिकरण के बड़ें सचिव थे. मैंने अपने मकान का मैप दो माह बीत जाने के बाद भी जब पास होना नहीं पाया तो सीधे पाण्डेय जी के दफ्तर में घुस गया. यह जानते हुए भी कि ये महाशय मुझे सस्पेंड भी कर सकते हैं. मैंने उनसे अपना परिचय देने के बाद सीधा सवाल किया "जानने आया हूँ कि क्या 5000 रुपये न देने पर मेरे घर का नक्सा नहीं पास होगा?" उन्होंने पूछा कि यह किसने आपसे कहा? मैंने बिना किसी संकोच के बताया कि "आपका सिस्टम. आप हमें केवल यह बताएं कि मेरी फ़ाइल किस आधार पर दो माह से रोकी गई है. जब जे.एई. ने पोजिटिव रिपोर्ट लगा दी तो आपने उसे क्यों नहीं फाइनल किया. आपके नीचले अधिकारी कहते हैं कि साहब को 5000 देना होता है." पाण्डेय जी ने झेपते हुए कहा कि यह तो गलत कह रहे हैं लोग. अरे घर-मकान बनाते समय लोग अपनी ख़ुशी से दे देते हैं." मै चकित था. एक मजिस्ट्रेट का यह बयान हजम नहीं हो रहा था. मैंने फिर पूछा, मान्यवर एक बात पूछूं. "आप धोबी, नाऊ, पंडित, कोहार हैं क्या कि लोग आपको नहछू नहावन के नाम पर 5000 खुश होकर दे देंगे. इस सवाल का उत्तर उनके पास न था. उन्होंने तत्काल मेरी फ़ाइल मंगाकर हस्ताक्षर कर दिया." 

मै काफी कुछ कह चूका था. आगे विवाद बढ़ता, इसलिए चला आया, लेकिन सवाल तो जस का तस खड़ा हा कि जिसमे इतना साह्स न हो, उसके काम का क्या होगा? दूसरा यह कि सिस्टम के हिसाब से निचले स्टार से यदि फ़ाइल पूरी है तो उसे खुद-ब-खुद उच्चाधिकारी के पास पहुँच जाना चाहिए. पर किस व्यवस्था के तहत वे ही फाइलें उच्चाधिकारी के पास भेजी जाती हैं, जिसे सिर्फ तभी भेजा जायेगा, जब उच्चाधिकारी मंगाएगा. अंदरखाने से पता चला कि निचले स्तर के कर्मचारी से उच्चाधिकारी पूछते हैं कि कितनी फाइलों का पैसा मिला है. जिनका मिल गया हो, उनकी फाइलें लेकर आओ. 

अब यदि किसान ने भरी अदालत में जज को पैसा देना चाह तो क्या बुरा किया. यदि वह ऐसा न करता तो शायद हम और आप इस घटना से अवगत न होते. वह किसान बधाई का पात्र है. हमें भी इस तरह के कार्य करने होंगे. कम से कम वहां के सिस्टम पर चर्चा तो शुरू होगी. उन अधिकारियों को लज्जित तो होना पड़ेगा.
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Hari Shankar Pandey :
व्यवस्था में व्यापक रूप से कमी है? आम आदमी करे तो क्या करे ? 
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Avinash Bhardwaj :
कानून की धाराओं के अनुसार दुखुराम बेशक अपराधी है. क्योंकि कानून अँधा होता है और वो फैसला केवल सबूतों के आधार पर देता है. लेकिन दुखुराम की गैरआपराधिक मंशा और मासूमियत के मद्देनज़र उसे माफ़ किया जा सकता है. 
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Ranju Bhatia :  
sacche kisse aaj ke kisse .. har jagah prakashit hote hain . ham padhte hain aur fir wahi sab ..........andhe goonge aur bahre ho jaate hain ...
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Narendra Singh Tomar Nst :
दुखुराम दोषी नहीं है .... तारीख बढ़वाने के लिये भरी व खुली अदालत में ऐसी पेशकश पर रिश्वत देने का आरोप नहीं बनता .... दुखुराम को छुड़वाया जाना चाहिये .... अलबत्ता अदालत की अवमानना करने का यानि अपमान करने का केस बन सकता है ... वह भी तब जब दुखुराम का कोई दुराशय साबित हो ...  

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Aditi Chauhan : 
Dukhuram seedha sada aadmi tha...usko to jaisa logon ne bataya us bechare ne kiya. iski saza bas itni honi chahiye ki us se wahin kaan pakad ke uthak baithak karwa lete.
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Shail Agrawal :
aakhri tinke pe aas lagaye baitha tha, Use kya pata tha ki Yahi chubhega. 
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दिनेशराय द्विवेदी :
सजा मिलनी चाहिए उन राजनेताओँ को जो पर्याप्त अदालतों की व्यवस्था नहीं करते। लेकिन जज उन का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते। 
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Dinesh Aggarwal :  
सब जानते हैं कि न्याय बिकता है तथा जज राजनीति से प्रभावित होते हैं अन्यथा अब तक आधे से अधिक नेता जेलों में होते एवं राजाओं, कनिमोझियों, कलमाड़ियों की जमानत न होती। स्टाम्ट घोटाले में शरद जी जेल में होते। चारे में लालू जी, कोयले में आधे काँग्रेसी, बीजेपी के नैता जेल में होते। किस किस न नाम लूँ लगभग सभी बड़े एवं ऊँचे कद के नेता जेल में होते।
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2 टिप्‍पणियां:

  1. dukhi ram ne koi E JUDISIYRI KA CHEHRA DIKHAYA HAI apradh nahin kiya par vastvikta ye hai ki aaj judisiyri bhi corruption me poori tarah se lipt hai ,paisa or sifaris ab aam baat ho gai hai isi kaarn se garib dukhiraame or sharif k p jaison ko insaf nahin milta , SHARAFAT ME MARA GYA BECHARA DUKHIRAMA,VASTAV ME TO US BECHARE NE JANTA KO JUDI KA ASLI CHEHRA DIKHAYA HAI

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  2. DUKHURAM ka case bahut kuchh kah deta hai.
    sabhi ko maalum hai ki aaj adalaton men kya hota hai.
    to fir DUKHURAM apradhi kyun ?

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