सोमवार, जुलाई 29, 2013

झूठ-फरेब, खुशफहमी, झूठा सच, अहसास (क्षणिकाएं)


झूठ-फरेब 
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एक दिन में कई बार 

जता ही देते हैं हम 

कितना खराब हो गया है समय 

मजा यह है कि बगैर झूठ-फरेब के 

एक दिन भी नहीं काट पाते !

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खुशफहमी
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घर की रस्मों से डर रही होगी

भीगी पलकें छुपा के आँचल में

वो मुझे याद कर रही होगी !

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झूठा सच
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रात सूरज था मेरे हाथों में

सुबह को सोचता हूँ किससे कहूँ
कौन आएगा मेरी बातों में !
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अहसास
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जिंदगी कट रही है कुछ जैसे

इम्तहाँ का रिजल्ट आने पर
कोई बच्चा उदास हो जैसे !
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-- प्रकाश गोविन्द
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3 टिप्‍पणियां:

'आप की आमद हमारी खुशनसीबी
आप की टिप्पणी हमारा हौसला' !!

संवाद से दीवारें हटती हैं, ये ख़ामोशी तोडिये !!
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