एक होड़ सी मची है बिकने के वास्ते
साँसों को समेटे हैं मरने के वास्ते,
जिंदगी का ये तमाशा कितना अजीब है
क्या क्या जतन हैं करते जीने के वास्ते !
***************************************************
"रूह ने उसकी कहा मरघट से कल ये दोस्तों
उम्र ही हारी है मेरी ज़िन्दगी हारी नहीं" !!
***************************************************
कश्ती भी नहीं बदली, दरिया भी नहीं बदला,
हम डूबने वालों का, जज्बा भी नहीं बदला,
है शौक–ए-सफ़र ऐसा कि, एक उम्र हुयी हमने,
मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला …
****************************** ****************** ***
उनके पायलों की छनछनाहट
मेरे दिल को झनझनाती हैं !
वो एक दिन राह से गुजरी थीं
राहें आज तक गुनगुनाती हैं !
****************************** ****************** ***
******************************
उनके पायलों की छनछनाहट
मेरे दिल को झनझनाती हैं !
वो एक दिन राह से गुजरी थीं
राहें आज तक गुनगुनाती हैं !
******************************
------------------------
-- Prakash Govind
------------------------
सभी क्षणिकाएँ बहुत उम्दा और अर्थपूर्ण हैं.
जवाब देंहटाएंख़ास कर ज़िंदगी के वास्ते..पहली क्षणिका में दर्दीली सच्चाई है.
दूसरी क्षणिका 'कश्ती भी नहीं बदली'...गहन भाव-अभिव्यक्ति दर्शाती है
'रूह ने उसकी कहा'..चंद शब्दों में बहुत कुछ कह दिया है.
है शौक–ए-सफ़र ऐसा कि, एक उम्र हुयी हमने,
जवाब देंहटाएंमंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला …
bahut hi sundar
kya taareef karun
dil ko chhu gayi