शुक्रवार, जुलाई 26, 2013

तरक्की / लड़कपन / माहौल (क्षणिकाएं)

तरक्की 
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बाबा रखते थे कदम
ड्योढ़ी के भीतर खांसकर
चाचियाँ बाहर निकलतीं
सर पे पल्लू ढांपकर
देखिये इस बार पीढ़ी
क्या तरक्की कर गई
अब चुने जाते हैं शौहर
कुछ दिनों तक जांचकर !

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लड़कपन
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लड़कपन में तुझे छूकर 
कुछ ऐसा मुस्कराया था 
कि जैसे जमाने भर के 
मैं कंचे जीत लाया था !!
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माहौल 
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कुछ ऐसी शै मिलाइए 
नफरत के खेल में 
इंसान प्यार करने लगे 
'होल-सेल' में !!!
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-- प्रकाश गोविन्द 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. सभी क्षणिकाएँ एक से बढ़कर एक हैं.खासकर' लड़कपन 'लाजवाब है.
    बहुत अच्छा लिखते हैं .

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  2. अब चुने जाते हैं शौहर/कुछ दिनों तक जांचकर !
    वाह … एडवांस जमाने की बहुत सच्चाई है

    जैसे जमाने भर के/मैं कंचे जीत लाया था !!
    वाह … बहुत गजब । क्या दिन थे वो

    जवाब देंहटाएं

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