माँ का वजूद
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मैं माँ की बरसी पर
फूलों को कैसे उठाऊंगा
हाथों में फूल नहीं
माँ का वजूद होगा !!
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कोई नहीं
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दोस्त तो बहुत हैं पर
बुखार में तपते जिस्म के
सिरहाने बैठ कर
"मैं हूँ न"
कहने वाला कोई नहीं !
एक समोसे पे दिन गुजारते देख कर
हेल्थ पर लेक्चर देने वाले बहुत हैं पर
टिफिन में मेरी खातिर
एक एक्स्ट्रा पराठा और आचार
लाने वाला कोई नहीं !
सुबह-शाम
देश, समाज, धर्म, संस्कृति,
की दुहाई देने वाले तो तमाम हैं
पर स्नेह भरी आँखों से
"मेरी खातिर" कहने वाला कोई नहीं !
जीवन दर्शन-आस्था-आस्तिकता पर
घंटों ज्ञान पिलाने वाले बहुत हैं
पर जीने की एक वाजिब वजह
दे देने वाला कोई नहीं !
हाँ....
बुखार में तपते जिस्म के
सिरहाने बैठ कर
"मैं हूँ न"
कहने वाला कोई नहीं !
एक समोसे पे दिन गुजारते देख कर
हेल्थ पर लेक्चर देने वाले बहुत हैं पर
टिफिन में मेरी खातिर
एक एक्स्ट्रा पराठा और आचार
लाने वाला कोई नहीं !
सुबह-शाम
देश, समाज, धर्म, संस्कृति,
की दुहाई देने वाले तो तमाम हैं
पर स्नेह भरी आँखों से
"मेरी खातिर" कहने वाला कोई नहीं !
जीवन दर्शन-आस्था-आस्तिकता पर
घंटों ज्ञान पिलाने वाले बहुत हैं
पर जीने की एक वाजिब वजह
दे देने वाला कोई नहीं !
हाँ....
मेरे पास दोस्त तो बहुत हैं
पर .......
पर .......
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-- प्रकाश गोविन्द
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https://www.facebook.com/photo.php?fbid=403662799644024&l=4805943d07
बेहद मर्मस्पर्शी !
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ
जवाब देंहटाएंइतना सुन्दर लिखा है आपने की दिल से छू गयीं कवितायें