शनिवार, जुलाई 27, 2013

ईश्वर / मनुष्य / प्रकृति (तीन कवितायें )

ईश्वर
उसकी आँखें खुली समझ
उसके लिए एक नारियल फोड़ दो
एक बकरा काट दो,
उसकी आँखें बंद समझ
डंडी मार लो, बलात्कार कर लो
या गला रेत दो आदमी का
एक बड़ी सुविधा है ईश्वर !
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मनुष्य
'जब बहुमत नहीं
बहुसंख्य प्रकट होगा
व्यक्ति ताकतवर नहीं
भीड़ होगा तो,
जिस भी विजय यात्रा की
सवारी निकलेगी उस पर
चाहे देवता बैठा दो या राक्षस
उस सवारी को पत्थर ही ढोएंगे
मनुष्य लापता हो चुका होगा' !
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प्रकृति  
जल से बना होता है बादल 
जल देता है, 
फल से बना होता है वृक्ष 
फल देता है, 
ऊर्जा से बना होता है सूर्य 
प्रकाश देता है, 
किस चीज से बना होता है आदमी 
यह तय होना अभी बाकी है !
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-- प्रकाश गोविन्द 
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6 टिप्‍पणियां:

  1. तीनों कवितायें बहुत सुन्दर हैं
    इनमें समझने के लिए बहुत कुछ है

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  2. आदरणीय आपकी यह प्रभावी प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' संकलन में शामिल की गई है।
    http://nirjhar-times.blogspot.com पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. लापता हो जाएगा मनुष्य' ...आज के इस सच को चंद पंक्तियों में समेट दिया है.बहुत खूब !

    तीनो कविताएँ अच्छी लगीं.

    जवाब देंहटाएं

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