बुधवार, दिसंबर 24, 2014

डबल स्टैण्डर्ड

वो स्कर्ट पहनती है । वो चालू है 
वो नाईट शिफ्ट में काम करती है । वो चालू है 
- वो लड़कों से बात करती है । वो चालू है 
और 
वो शॉर्ट्स पहनता है । वो कूल है 
वो नाईट शिफ्ट में काम करता है । वो मेहनती है 
वो लड़कियों से बात करता है । वो पॉपुलर है 
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OK SOCIETY, TO HELL WITH YOU 

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औरतों को जींस नहीं पहनना चाहिए 
औरतों को तेज आवाज में बात नहीं करना चाहिए 
औरतों को रात में बाहर नहीं निकलना चाहिए 
औरतों को खुलकर हंसना नहीं चाहिए 
--- 
--- 
--- 
और 
औरतों को ऐसे बकलोल भी नहीं पैदा करने चाहिए 
जो ऊपर लिखी ऐसी बातों का समर्थन करते है !
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The End
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गजोधर की पत्नी गायब होने की रिपोर्ट :-)

गजोधर अपनी पत्नी के गायब होने की रिपोर्ट लिखवाने पुलिस स्टेशन गया 
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गजोधर :- मेरी वाईफ का कल से कुछ पता नहीं चल रहा है ... कल वो शापिंग के लिए गयी थी,,, 
उसके बाद से घर नहीं आयी ! 
--- 
इन्स्पेक्टर :- अपनी पत्नी के बारे में कृपया डिटेल बताएं ... उनकी हाईट क्या है ? 
--- 
गजोधर :- ओह ~~ शायद 5 फीट 
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इन्स्पेक्टर :- देखने में कैसी हैं ...उनकी हेल्थ ? 
--- 
गजोधर :- दुबली ,,,,हेल्दी ,, आई मीन ज्यादा मोटी नहीं ,, 
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इन्स्पेक्टर :- आँखों का रंग ? 
--- 
गजोधर :- हम्म ... कभी ध्यान नहीं दिया 
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इन्स्पेक्टर :- बालों का रंग ? 
--- 
गजोधर :- समय-समय पर बालों का रंग चेंज करती रहती है 
--- 
इन्स्पेक्टर :- क्या पहने हुयी थीं ... उनकी ड्रेस ? 
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गजोधर :- ड्रेस ?? हम्म...सलवार सूट ... ब्ल्यू जींस ,,,साड़ी ,, मुझे ठीक से याद नहीं 
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इन्स्पेक्टर :- क्या वो कार से गयी थीं ? 
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गजोधर :- जी हाँ 
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इन्स्पेक्टर :- कौन सी कार थी ? 
--- 
गजोधर :- जर्मन मेड मर्सिडीज बेंज ए क्लास, 1.6 लीटर टर्बो पेट्रोल इंजन, 155ps और 250nm टोर्क, टू व्हील ड्राइव, 7 स्पीड आटोमेटिक गियर, ग्राउंड क्लियरेंस 183mm, रंग नीला.... आगे के दायें शीशे पर एक खरोंच का निशान भी है 
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इन्स्पेक्टर :- डोंट वरी सर ......... हम कार को खोज निकालेंगे 

:-)  :-)  :-)


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The End
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गजोधर की होशियारी :-)

एक रात को पुलिस वालों ने शराब पी कर गाडी चलाने वालों को पकड़ने के लिए 
 एक बार के बाहर अपनी गाडी खड़ी कर ली। 
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थोड़ी देर बाद जब बार बंद होने वाला था तो गजोधर बार से बाहर निकला और लड़खड़ाता हुआ अपनी गाडी की तरफ बढ़ने लगा। चलते-चलते गजोधर एक दम से गिर गया। फिर उठा और थोड़ा संभला और आगे बढ़ा। 
--- 
उसके बाद गजोधर ने अपनी जेब में से चाबी निकाली ... 3-4 गाड़ियों को चाभी लगाने के बाद उसे अपनी गाडी मिल गयी। गजोधर गाडी में बैठा और बड़ी मुश्किल से गाडी स्टार्ट की और चल पड़ा। 
--- 
जैसे ही गजोधर चला, पुलिस वालों ने उसके पीछे अपनी गाडी लगा ली और उसे रोक लिया। 
--- 
पुलिस वाले ने गजोधर को Breath Analyzer टैस्ट के लिए बाहर निकलने के लिए कहा। गजोधर झट से बाहर निकला। पुलिस वाले ने उसका टैस्ट किया लेकिन टैस्ट में शराब की मात्रा आई ही नहीं। पुलिस वाले हैरान हो गए और पूछा कि इसका क्या राज़ है ? 
--- 
--- 
गजोधर ने पुलिस को बताया कि उसने तो शराब पी ही नहीं है। 
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पुलिस वाले : "फिर तुम ऐसे क्यों नाटक कर रहे थे?" 
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--- 
गजोधर : "ताकि आप मेरे पीछे आ सको और पीछे से बार में बैठे सारे शराबी आसानी से निकल सकें।" 

:-)  :-)  :-)
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The End
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गजोधर की अंग्रेजी स्पेलिंग प्राब्लम

गजोधर :- (फोन पर) ... जल्दी से यहाँ एक एम्बुलेंस भेज दीजिये, 
 मेरे दोस्त को एक गाडी ने टक्कर मार दी है। उसके नाक से खून बह रहा है। 
शायद उसकी टांग भी टूट गयी है। 
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ऑपरेटर :- आप किस जगह पर हैं कृपया वो बता दीजिये। 
--- 
गजोधर :- Connaght Place में। 
--- 
ऑपरेटर :- आप मुझे कृपया स्पेलिंग बता दीजिये ? 
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आगे से कोई आवाज़ नहीं आई। 
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ऑपरेटर :- सर क्या आपको मेरी आवाज़ आ रही है ? 
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दूसरी तरफ से अभी भी कोई आवाज़ नहीं आई। 
--- 
ऑपरेटर :- सर प्लीज, जवाब दीजिये, क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं ? 
--- 
--- 
गजोधर :- (हाँफते हुए)... हाँ- हाँ माफ़ करना भैया ,,,,  मुझे Connaght Place की स्पेलिंग नहीं आती थी ,,, इसलिए मैं उसे घसीट कर Minto Road पर ले आया हूँ ,,, आप Minto Road की स्पेलिंग लिखो। 
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The End
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जाट और अंग्रेज वार्तालाप :-)

एक बार एक जाट प्लेन से लन्दन जा रहा था, 
बगल में एक अंग्रेज बैठा हुआ था ! 
-- 
जाट ने अंग्रेज से पूछा - "आप क्या करते हो ?" 
अंग्रेज - "मैं एक साईंटिस्ट हूँ... और आप ?" 
जाट - "मैं इंजीनियर हूँ !" 
-- 
अंग्रेज - "वाव~~ इंजीनियर ... क्या हम किसी टॉपिक पर बात कर सकते हैं ?" 
जाट - "बिलकुल ,, " 
-- 
अंग्रेज - "अच्छा, तुम मुझे न्यूक्लियर पावर के बारे में कुछ बताओ" 
-- 
जाट ये सुनकर चुप रह गया ! 
-- 
अंग्रेज - (व्यंग से) "ओह ~~ तो तुम नहीं जानते ?" 
जाट - "जानता तो हूँ लेकिन तुम पहले मेरे एक क्वेश्चन का एन्सर दो" 
अंग्रेज - "हम्म ~~ पूछो .. " 
-- 
जाट - "मंदिर में भी घंटा होता है और चर्च में भी घंटा होता है, तो फिर चर्च का घंटा मंदिर के घंटे से बड़ा क्यों होता है ..?" 
-- 
अंग्रेज कुछ देर सोचता रहा फिर बोला - "मैं नहीं जानता" 
-- 
जाट - "अबे साले .. पता तुझे घंटे का भी नहीं है और बातें न्यूक्लियर पावर की करे है ???" 
           
 :-)   :-)   :-)
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The End
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कुछ एक असमी सिक्यूरिटी गार्ड भी होते हैं :-)

घर ढूंढते ढूंढते एक नयी बनी इमारत के पास पहुंचा 
और सिक्यूरिटी गार्ड से पूछा, 
"यहाँ फ्लैट खाली है क्या रेंट के लिए?" 
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गार्ड बोला - "जी सर" 
--- 
मैंने पूछा - "तुम दिखाओगे" 
गार्ड - "मैनेजड़ है साब" 
--- 
मैंने नंबर माँगा और फ़ोन डायल किया, 
इस बीच मैंने गार्ड से मेनेजर का नाम पूछा ! 
गार्ड - "सड़ीप सर" 
--- 
मैंने फ़ोन काटा और कन्फर्म किया, "संदीप?" 
गार्ड, "नहीं ,, सड़ीप सर" 
--- 
मैं सोच में पड़ा, अजीब-अजीब से नाम रखते हैं लोग आजकल। ऐसे ही विस्मित होते हुए मैंने कॉल लगाई लेकिन लाइन व्यस्त मिली। 
 --- 
फिर ढूंढते हुए बिल्डिंग के अन्दर पहुँच गए। 
 मेनेजर साहब मिले, मैंने हाथ मिलाया और कहा, "हेल्लो" 
 मेनेजर - "हेल्लो ,,, आय ऍम शरीफ।" 
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सीख :- सारे सिक्यूरिटी गार्ड नेपाली नहीं होते कुछ एक असमी भी होते हैं।  :-)
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The End
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सीनियर सिटिजन और पुलिस इंस्पेक्टर

एक सीनियर सिटिजन अपनी नई कार 90 की स्पीड में चला रहे थे। 
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रियर व्यु मिरर में उन्होंने देखा कि पुलिस की एक गाडी उनके पीछे लगी हुई है। उन्होंने कार की स्पीड और बढ़ा दी। 110 फिर 130 और फिर 150.......... 
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अचानक उन्हें याद आया कि इन हरकतों के लिहाज से वे बहुत बूढ़े हो चुके हैं और ऐंसी हरकतें उन्हें शोभा नहीं देतीं। उन्होंने सड़क के किनारे कार रोक दी और पुलिस का इन्तजार करने लगे। 
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पुलिस की गाडी करीब आकर रुकी और उसमे से इंस्पेक्टर निकलकर बुजुर्ग महाशय के पास आया। उसने अपनी घडी में समय देखा और बुजुर्ग से बोला --
.
"सर, मेरी शिफ्ट ख़त्म होने में मात्र 10 मिनिट बाकी हैं। आज शुक्रवार है और शनिवार, रविवार मेरा अवकाश है। इतनी स्पीड से कार चलाने का अगर आप मूझे कोइ ऐंसा कारण बता सके जो मैंने आज तक नहीं सुना हो तो मैं आप को छोड़ दूंगा।" 
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बुजुर्ग ने बहुत गंभीर होकर इन्स्पेक्टर की तरफ देखा और कहा---

"बहुत साल पहले मेरी बीवी एक पुलिसवाले के साथ भाग गयी थी। मैंने सोचा कि तुम उसे लौटाने आ रहे हो इसलिए..................." 
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इन्स्पेक्टर वहाँ से जाते हुए बोला---" हेव ए गुड डे, सर ... बाय।" 
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The End
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इंटेलिजेंस ब्यूरो भर्ती में महिला उम्मीदवार

इंटेलिजेंस ब्यूरो में एक उच्च पद हेतु भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी। 
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अंतिम तौर पर केवल तीन उम्मीदवार बचे थे जिनमें से किसी एक का चयन किया जाना था। इनमें दो पुरुष थे और एक महिला। फाइनल परीक्षा के रूप में कर्तव्य के प्रति उनकी निष्ठा की जांच की जानी थी। 
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पहले आदमी को एक कमरे में ले जाकर परीक्षक ने कहा –”हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तुम हर हाल में हमारे निर्देशों का पालन करोगे चाहे कोई भी परिस्थिति क्यों न हो।” फिर उसने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।” 
---
”मैं अपनी पत्नी को किसी भी हालत में गोली नहीं मार सकता”- आदमी ने कहा।” 
---
तो फिर तुम हमारे किसी काम के नहीं हो। तुम जा सकते हो।” – परीक्षक ने कहा। 
---
अब दूसरे आदमी को बुलाया गया। ” .. 
---
परीक्षक ने उसके हाथ में एक बंदूक पकड़ाई और दूसरे कमरे की ओर इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारी पत्नी बैठी है। जाओ और उसे गोली मार दो।” 
---
आदमी उस कमरे में गया और पांच मिनट बाद आंखों में आंसू लिये वापस आ गया - ”मैं अपनी प्यारी पत्नी को गोली नहीं मार सका। मुझे माफ कर दीजिये। मैं इस पद के योग्य नहीं हूं।” 
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अब अंतिम उम्मीदवार के रूप में केवल महिला बची थी। उन्होंने उसे भी बंदूक पकड़ाई और उसी कमरे की तरफ इशारा करते हुये कहा – ”उस कमरे में तुम्हारा पति बैठा है। जाओ और जाकर उसे गोली से उड़ा दो।” 
---
महिला ने बंदूक ली और कमरे के अंदर चली गई। कमरे के अंदर घुसते ही फायरिंग की आवाजें आने लगीं । लगभग 11 राउंड फायर के बाद कमरे से चीख पुकार, उठा पटक की आवाजें आनी शुरू हो गईं। यह क्रम लगभग पन्द्रह मिनटों तक चला ,उसके बाद खामोशी छा गई। 
---
लगभग पांच मिनट बाद कमरे का दरवाजा खुला और माथे से पसीना पोंछते हुये महिला बाहर आई। बोली – ”तुम लोगों ने मुझे बताया नहीं था कि बंदूक में कारतूस नकली हैं। मजबूरन मुझे उसे पीट-पीट कर मारना पड़ा..!!! 
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The End 
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मंगलवार, दिसंबर 23, 2014

इंटेलिजेंट एंसर इन इंटरव्यू

साक्षात्कार चल रहा था ! नौकरी बड़ी अच्छी और अच्छे वेतन वाली थी ! साक्षात्कार में कई युवक आये हुए थे ! सभी युवक अच्छे पढ़े लिखे एवं सुसंस्कृत थे ! चपरासी ने आकर पहले युवक को आवाज लगाई ! 
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युवक अपनी फ़ाइल ले कर चेम्बर में घुसा और बोला - 'में आई कमिंग सर ?' साक्षात्कार लेने वाले ने कहा "यस कम इन " थैंक यू कहकर युवक अंदर चला गया और सामने वाली कुर्सी पर बेठ गया ! 
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साक्षात्कार लेने वाले उसकी फ़ाइल देखीं वैरी गुड कहकर वापस दे दी ,,, और पुछा :- 
"एक बात बताइये आप कही जा रहे है आपकी कार टू सीटर है। आगे चलने पर एक बस स्टैंड पर आपने देखा कि तीन व्यक्ति बस के इंतजार में खड़े है। उन में से एक वृद्धा जो कि करीब 90 वर्ष की है तथा बीमार है अगर उसे अस्पताल नहीं पहुचाया गया तो इलाज न मिल सकने के कारण मर भी सकती है। दूसरा आपका एक बहुत ही पक्का मित्र है जिसने आपकी एक समय बहुत मदद कि थी जिसके कारण आप आज का दिन देख रहे है। तीसरा इंसान एक बहुत ही खूबसूरत युवती है जिसे आप बेहद प्रेम करते है जो आपकी ड्रीम गर्ल है अब आप उन तीनो में से किसे लिफ्ट देंगे ? आपकी कार में केवल एक ही व्यक्ति आ सकता है।"" 
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युवक ने एक पल सोचा फिर जवाब दिया" सर में अपनी ड्रीम गर्ल को लिफ्ट दूंगा " 
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साक्षात्कार लेने वाले पुछा - क्या ये ना इंसाफी नहीं है ? 
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युवक बोला नो सर वृद्धा तो आज नहीं तो कल मर जायेगी ,,दोस्त को में फिर भी मिल सकता हूँ पर अगर मेरी ड्रीम गर्ल एक बार चली गई तो फिर में उससे दुबारा कभी नहीं मिल सकूंगा ! 
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साक्षात्कार लेने वाले ने मुस्कुरा कर कहा वेरी गुड में तुम्हारी साफ साफ बात सुन कर प्रभावित हुआ अब आप जा सकते है ! थैंक यू कहकर युवक बाहर निकल गया ! 
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साक्षात्कार लेने वाले ने दूसरे प्रत्याशी को बुलाने के लिए चपरासी को कहा ! साक्षात्कार लेने वाले ने सभी प्रत्याशिओं से उपरोक्त प्रश्न को पुछा विभिन्न प्रत्याशियों ने विभिन्न उत्तर दिए ! किसी ने वृद्धा को लिफ्ट देने किसी ने दोस्त को लिफ्ट देने कि बात कही ! 
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जब एक प्रत्याशी से ये ही प्रश्न पुछा तो उसने उत्तर दिया -"सर में अपनी कार की चाबी अपने दोस्त को दूंगा और उससे कहूंगा कि वो मेरी कार में वृद्धा को लेकर उसे अस्पताल छोड़ता हुआ अपने घर चला जाये ! मैं उससे अपनी कार बाद में ले लूंगा और स्वयं अपनी ड्रीम गर्ल के साथ बस में बेठा क़र चला जाऊँगा ! 
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साक्षत्कार करने वाले ने उठ क़र उस से हाथ मिलाया और कहा यू आर सलेक्टेड ! 
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थैंक यू सर कह क़र युवक मुस्कुराता हुआ बाहर आ गया ! 
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 साक्षत्कार समाप्त हो चुका था !
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The End
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लाल बहादुर शास्त्री से जुड़ा एक सच्चा प्रसंग

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श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। मगर उनमें वो बात थी कि ज़माना आज भी उनको याद करता है - वो था उनका आदर्श, उनके मूल्य, संस्कार के प्रति उनका समर्पित जीवन। ===================================================================

अनिल शास्त्री ,दिल्ली के किसी कालेज में admission के लिए फ़ार्म भर रहे थे। उस समय उनके पिता श्री प्रधानमंत्री बन चुके थे। मगर अनिल जी ने एक सामान्य विद्यार्थी की हैसियत से लाईन में खड़े हो कर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होने अपना नाम और पहचान छुपाने की गरज से और उन्हें पिता की हैसियत का कोई अनावश्यक [undue] लाभ न मिले बल्कि ’प्रतिभा ’के बल पर admission मिले इस लिये नाम के पीछे ’शास्त्री’ नहीं लिखा। 
 --- 
पिता के occupation वाले column में Government servant लिखा था जब उनका नम्बर आया और वह counter पर पहुंचे तो फ़ार्म check कर रहे व्यक्ति [शायद कोई robert साहब थे] ने फ़ार्म देखा, पता देखा 10-जनपथ न्यू दिल्ली तो चौंक गया ! सोचा, यह तो ’प्रधान मंत्री’ निवास का पता है .. तो फिर इस लड़के के पिता वहाँ क्या काम करते है - PA है कि PS है कि security officer है कि peon है कि कौन सा Govt servant है। Robert महोदय दुविधा में पड़ गये और पुचकारते हुए पूछा -’बेटा, papa वहां क्या करते हैं- कौन सा Govt servant है? 
--- 
अनिल जी से यह बात अब छुपाये न छुपे और बड़े ही संकोचवश धीरे से बोले- पापा भारत के प्रधानमंत्री हैं 
--- 
इतना सुनते ही राबर्ट महोदय एकायक खड़े हो गये ..आनन फ़ानन में फ़ार्म लिया कार्रवाई पूरी की ,फिए अनिल को लेकर principal साहब के कमरे में ले गया और बड़े ही सीना तान कर और जैसे कि कोई तोप चीज़ हाथ में लग गई, कहा- "सर, देखिए, हमारे कालेज में कौन आया है, सर प्रधानमंत्री का बेटा ..अपने प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी का..." अनिल जी झेंप गये .. यह था उनका संस्कार ... 
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ख़ैर.. 
घर लौटने पर अनिल जी ने यह बात अपने पिता जी को बताया तब श्री लाल बहादुर जी ने बस दो बात कही - "पहली बात तो ठीक है कि पूछने पर तुमने अपने पिता का नाम बताया ,,, दूसरी बात ग़लत है कि राबर्ट तुम्हारा परिचय कराने प्रिन्सिपल के कमरे में ले गए। वह क्या और बच्चों को भी प्रिन्सिपल से परिचय कराने ले गए थे। नहीं तो यह बात ग़लत है" 
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यह था एक पिता का पुत्र को दिया हुआ संस्कार .. मूल्यों के प्रति समर्पण और आज??? 
आज तो सरपंच का लड़्का भी अपने को प्रधानमंत्री से बड़ा समझता है
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The End 
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शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2014

मंत्री जी का साला

पूलिस विभाग मे भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी,
भर्ती प्रक्रिया मे मंत्री जी का साला भी भाग ले रहा था,
---
स्वभाविक था कि
सब अपनी ओर से जो चापलूसी कर सकते थे, करने का प्रयास कर रहे थे
---
500 मीटर की रेस पूरी हुईं,
मंत्री जी के साले साहब ने 4 मिनट 30 सेकेण्ड मे रेस पूरी की !
---
उपनिरीक्षक ने लिस्ट बनाते समय 4 मिनट कर दिया
---
लिस्ट जब आफिस पहुँची, तो अधिकारी ने सोचा 4 मिनट मे रेस पूरी की है,
उसने उसे 3 मिनट 30 सेकेण्ड कर दिया !
---
इसी प्रकार लिस्ट डी.एस.पी , एस.पी और डी.आई.जी से होती हुई
आई.जी के पास पहुँची तब समय 1 मिनट 35 सेकेण्ड तक हो गया था
---
आई जी ने जैसे ही लिस्ट को देखा चौक पड़े ....
उन्होंने अपने पी ए से पूछा -
"ये कौन है जिसने 1 मिनट 35 सेकेण्ड मे रेस पूरी की ?"
--
पी ए ने बताया - "सर मंत्री जी का साला है"
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आई.जी बोले :-
"अबे भूतनी के वो सब तो ठीक है,
लेकिन विश्व रिकार्ड का तो ध्यान रखते"

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 The End
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रविवार, सितंबर 14, 2014

जन धन योजना वाया भेजा फ्राई

ग्राहक - जन धन योजना में खाता खुलवाना है ।
बैंकर - खुलवा लीजिये ।
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ग्राहक - क्या जीरो बैलेंस में खाता खुल रहा है ?
बैंकर - (मन ही मन में - साले पता नहीं है क्या तुझे) हाँ जी फ्री में खुलवाओ ।
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ग्राहक - इसमें सरकार कितना पैसा डालेगी ?
बैंकर - जी अभी तो कुछ पता नहीं ।
---
ग्राहक - तो मैं ये खाता क्यूँ खुलवाऊं ?
बैंकर - जी मत खुलवाइये ।
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ग्राहक - फिर भी सरकार कुछ तो देगी ।
बैंकर - आपको फ्री में ATM मिल जाएगा ।
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ग्राहक - जब उसमे पैसे ही नहीं होंगे मैं ATM का क्या करूँगा ।
बैंकर - पैसा डलवाओ भईया ! तुम्हारा खाता है ।
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ग्राहक - मेरे पास पैसे होते तो मैं पहले ही खाता नहीं खुलवा लेता । 
तुम खाता खोल रहे हो तो तुम डालो न पैसे ।
बैंकर - अरे भाई सरकार खुलवा रही है
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ग्राहक - तो क्या ये सरकारी बैंक नहीं है ?
बैंकर - अरे भाई सरकार तुम्हारा इंश्योरेंस फ्री में कर रही है पूरे 1 लाख रूपए का ।
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ग्राहक - खुश होते हुए , अच्छा तो ये 1 लाख मुझे कब मिलेंगे ?
बैंकर - (गुस्से में) , जब आप मर जाओगे तब आपकी बीवी को मिलेंगे ।
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ग्राहक - चौंक कर , तो तुम लोग मुझे मारना चाहते हो और मेरी बीवी से तुम्हारा क्या मतलब है ?
बैंकर - अरे भईया, ये हम नहीं सरकार चाहती है कि...........
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ग्राहक - (बीच में बात काटते हुए) .. तुम्हारा मतलब सरकार मुझे मारना चाहती है ?
बैंकर - अरे यार मुझे नहीं पता ! तुम्हे खाता खुलवाना है क्या ?
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ग्राहक - नहीं पता का क्या मतलब । मुझे पूरी बात बताओ ।
बैंकर - अरे अभी तो मुझे भी पूरी बात का नहीं पता .......
मोदी ने कहा है खाता खोलने को तो हम खोल रहे हैं ।
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ग्राहक - अरे जब पता ही नहीं तो यहाँ क्यूँ बैठे हो ?
(जन धन का पोस्टर दिखाते हुए ) अच्छा ये 5000 का ओवर ड्राफ्ट क्या है ?
बैंकर - मतलब तुम अपने खाते से 5000 निकाल सकते हो ।
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ग्राहक - (बीच में बात काटते हुए}, ये हुई ना बात । 
यह लो आधार कार्ड, 2 फोटो और निकालो 5000 रुपये ।
बैंकर - अरे भई , ये पैसे 6 महीने बाद मिलेंगे ।
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ग्राहक - तो क्या 6 महीने तक तुम मेरे पैसों को अपने काम में इस्तेमाल करोगे ?
बैंकर - भईया ये रूपए ही 6 महीने बाद आयेंगे ।
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ग्राहक - झूठ मत बोलो.......पहले बोले कुछ नहीं मिलेगा ....फिर कहा ATM मिलेगा ....फिर बोले इंश्योरेंस मिलेगा .....फिर बोलते हो 5000 रुपया मिलेगा ....फिर कहते हो कि नहीं मिलेगा .....तुम्हे कुछ पता भी है या नहीं ?
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बैंकर बेचारा - अय्यो अम्मा, कानून की कसम, भारत माता की कसम..सच कहता हूँ मोदी जी ने अभी कुछ नहीं बताया .....तुम चले जाओ । खुदा की कसम , तुम जाओ । मेरी सैलरी इतनी नहीं है कि मैं एक साथ "ब्रेन हेमरेज और हार्ट अटैक" का इलाज करवा सकूँ ।

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The End
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रविवार, अगस्त 24, 2014

बिल्ली के गले में घटी ...

प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी चूहों का चिंतन शिविर चल रहा था ! चर्चा भी वही ,,,,घोषणाएं भी वही,,,समस्याएं भी वही ... कहीं कुछ भी नया नहीं !
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अचानक ही एक सुशिक्षित युवा चूहा खड़ा हुआ और बोला -
'सभापति महोदय मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ'
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सभापति ने माईक संभाला और गला खखारकर बोले - 'हाँ कहो'
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युवा चूहा बोला :- बिल्ली के गले में घंटी बाँधने का विचार हमारे दादा-परदादा के समय व्यक्त किया गया था ... मैं जानना चाहता हूँ कि उस सम्बन्ध में क्या प्रगति हुयी ?
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उत्साहित युवा चूहे की बात सुनकर सभा में उपस्थित सभी गणमान्य चूहे हंसने लगे ! एक बुजुर्ग चूहा खड़ा हुआ :- हमें बिल्ली से खतरा हमेशा बना रहेगा ,,, इस बारे में सभी पुराने उपाय सोचे जा चुके हैं ...पुरानी से पुरानी किताबों का अध्ययन कर लिया गया है ... इस बारे में चर्चा करके शिविर का कीमती समय नष्ट करने से कोई फायदा नहीं है
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युवा चूहे ने एक बार पुनः अपनी बात रखी :- सभापति महोदय मुझे एक कोशिश की अनुमति प्रदान करें !
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शिविर में उपस्थित सभी चूहों के चेहरों पर तंज उभर आया ! सभापति ने चर्चा को विराम देने के उद्देश्य से कहा :- ठीक है ... ठीक है .. आप करें कोशिश !
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चिंतन शिविर के अगले दिन युवा चूहा उत्साहित मुद्रा में बोला :- सभापति महोदय मैंने महल की सबसे खतरनाक बिल्ली के गले में घंटी बाँध दी है !
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सभापति महोदय और समस्त उपस्थित चूहों को यकीन नहीं हुआ ... दो-तीन चूहों को तत्काल जांच के लिए भेजा गया !
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थोड़ी देर बात ही जांच करने गए चूहे वापस आये और हर्षमिश्रित आवाज़ में बोले - हाँ महोदय ...बात सही है .. बिल्ली के घंटे में घंटी बंधी हुयी है ,,,बिल्ली जैसे ही चलती है घंटी की आवाज आने लगती है !
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सभापति महोदय ने युवा चूहे से जिज्ञाषा प्रकट की :- सभी लोग इस बात को जानना चाहते हैं कि तुमने ये काम किया कैसे ?
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युवा चूहा खड़ा हुआ और बोला :- दरअसल आप लोग हर समस्या का समाधान पुराने तरीकों से खोजते रहे हैं ... हमारे दादा-परदादा ने क्या किया ....हमारी पुरानी किताबों में क्या लिखा है .. बस उसी का अध्ययन करते रहे .. हम क्यों नहीं नयी तरह से सोचते ... क्यों नहीं समाधान के लिए नए प्रयास करते ?
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सभापति महोदय उबासी लेते हुए बोले :- भाषण की जरुरत नहीं ...सिर्फ ये बताओ कि घंटी बाँधी कैसे ?
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युवा चूहा बोला :- मैंने गंभीरता से सोचा तो एक आसान तरीका सूझा ... मैं केमिस्ट के यहाँ से 3-4 नींद की दवा ले आया ... उस नींद की दवा को दूध में मिला दिया और एक कटोरी में दूध रखकर बिल्ली के घर के पास रख दिया ..... कुछ समय बाद बिल्ली वहां आई, उसने दूध पिया ... मैं छुपकर इन्तजार करता रहा ... जैसे ही बिल्ली गहरी नींद में हुयी .. बस मैंने जाकर अच्छी तरह से बिल्ली के गले में घंटी बाँध दी !!
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सभापति महोदय बोले :- हमारे पूर्वज वाकई बहुत महान थे .. उनका ही उपाय काम आया !
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शनिवार, अगस्त 23, 2014

बिल गेट्स और बिहारी

बिल गेट्स ने अपने माइक्रोसॉफ्ट के कनाडा के बिज़नेस के लिए चेयरमैन की जॉब के लिए एक इंटरव्यू रखा... इंटरव्यू के लिए 5000 लोग एक बड़े होल में इकट्ठा हुए...

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इन सब में एक कैंडिडेट पटना, बिहार से भी थे... नाम था ‘रघुवीर यादव’
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बिल गेट्स :- इंटरव्यू में आने के लिए आप सबका शुक्रिया...
जो लोग java नहीं जानते हैं, वो जा सकते हैं
(ये सुन कर 2000 लोग रूम छोड़ कर चले गए)
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‘रघुवीर यादव’ ने मन में सोचा, “मुझे कौन-सा ससुरी java आती है... लेकिन रुकने में ही क्या नुकसान है... देखते हैं आगे-आगे क्या होता है”
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बिल गेट्स :- जिन लोगों को 100 लोगों से बड़ी टीम को मैनेज करने का तजुर्बा नहीं हैं, वो जा सकते हैं...
(ये सुन कर 2000 लोग रूम छोड़ कर चले गए)
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‘रघुवीर यादव’ ने मन में सोचा, “मैंने तो ससुरी भैंस भी एक साथ 3 से ज्यादा नहीं चराई... ये 100 लोगों की टीम मैनेज करने की बात कर रहा है... लेकिन रुकने में ही क्या नुकसान है... देखते हैं आगे-आगे क्या होता है”
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बिल गेट्स :- जिन लोगों के पास मैनेजमेंट का डिप्लोमा नहीं है, वो जा सकते हैं...
(ये सुन कर 500 लोग रूम छोड़ कर चले गए)
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‘रघुवीर यादव’ ने मन में सोचा, “मैंने तो 8वी क्लास में ही स्कूल छोड़ दिया था... ये ससुरा डिप्लोमा की बात कर रहा है... ... लेकिन रुकने में ही क्या नुकसान है... देखते हैं आगे-आगे क्या होता है...”
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सबसे आखिर में बिल गेट्स ने कहा :- जो लोग जापानी भाषा में बात नहीं कर सकते, वो जा सकते हैं...
(ये सुन कर 498 लोग रूम छोड़ कर चले गए)
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‘रघुवीर यादव’ ने मन में सोचा, “मुझे तो जापानी भाषा का एक शब्द भी नहीं आता... लेकिन रुकने में ही क्या नुकसान है... देखते हैं आगे-आगे क्या होता है...”
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अब ‘रघुवीर यादव’ ने पाया की वो खुद और सिर्फ़ एक ही और candidate इंटरव्यू के लिए बचे हैं... बाकी सब जा चुके थे...
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बिल गेट्स उन दोनों के पास आया और उनसे कहा, “जैसा की आप देख सकते हैं कि अब सिर्फ़ आप दोनों ही हैं candidate बचे हैं जो जापानी भाषा जानते हैं... में चाहूँगा कि आप दोनों आपस में जापानी में बात करके दिखाएँ”
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‘रघुवीर यादव’ ने धीरे से दूसरे candidate से पूछा :- “कौन जिला घर पड़ी हो..??”
दूसरे ने जवाब दिया, “छपरा... ...और तोहार ?”

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सोमवार, अगस्त 11, 2014

आदमी और बाजार


वह जब माळ के भीतर दूकान में घुसा तो दूकान वाले ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया !
ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पता नहीं उसके चेहरे में ऐसा क्या है कि वो दूकानदार में अपनी दिलचस्पी नहीं जगा पाता !
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दुकानदार मानकर चलता है कि ये कुछ नहीं खरीदने वाला, लेकिन वो कहना चाहता है कि मैं नमक, हल्दी, चावल और साबुन तो खरीदता ही हूँ ,,, और भी तमाम चीजें ! मैंने कंप्यूटर भी खरीदा है और चश्मा तो हर साल खरीदता हूँ !
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बहरहाल दूकान वालों को देखकर यह लगता है कि वे पहले से ही जानते हैं कि वो कुछ खरीदने वाला नहीं है ! इस वजह से वो दूकान में उड़ा-उड़ा सा रहता है और कई बार तो भूल भी जाता है कि वो दूकान में आया तो किसलिए !
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दुकानदार लोग शायद उसे इस तरह के आदमी के तौर पर देखते हैं जिसका काम बिना खरीदे ही चल सकता है ! वे नहीं चाहते कि उस जैसा आदमी दूकान में दाखिल हो ! वे नहीं चाहते कि ऐसा आदमी बाजार में दिखे, जिसका काम बिना खरीदे ही चल जाता हो !
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शनिवार, अगस्त 09, 2014

भाई-चारा संवाद

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भूमिका :
ये एक आँखों देखा, कानों सुना संवाद है ... मैं कैसरबाग में एक मामूली से होटल में चाय पीने रुका था तो आगे की टेबल पर दो लोग बातें कर रहे थे ! उनकी आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी, उधारी का मामला था ... ख़ास बात ये थी कि लेनदार रिरिया रहा था और देनदार गरज रहा था !  आप भी जरा भाई-चारा संवाद सुनिए -
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-- भाई जी बहुत जरुरत थी रुपयों की
-- अबे तो ले लेना ,,, रुपये कहीं भागे जा रहे हैं

-- भाई जी आपने दस दिन के लिए रुपये लिए थे, छह महीने हो गए
-- तुम तो साले को बहुत चिरइन्धे आदमी हो, पैसा क्या लिया ,, तुमने तो ## में चरस बो दिया ,, हद्द है 

-- नहीं भाई जी ऐसी बात नहीं है, घर की छत पर एक कमरा बनवा रहे हैं, इसलिए बहुत सख्त जरुरत थी रुपयों की
-- अबे तो ठीक है न, परसों पेमेंट आने वाला है, ले लेना, अब साले तुम मेरे दिमाग का दही न करो .. चाय-समोसा मंगवाओ 

(2 चाय, 2 प्लेट समोसे का आर्डर देने के बाद)
-- भाई जी आप हमेशा ऐसे ही टाल देते हो, हर बार कल-परसों करते-करते छह महीने निकल गए
-- अबे भों## के तुमसे तो साला रुपया लेना गुनाह हो गया, पहले मालुम होता कि तुम इतने बड़े घिस्सू हो तो किसी दुसरे से रुपया ले लेते 

-- भाई जी आपने तीस हजार दस दिन के लिए कहे थे, साथ में ब्याज देने को भी बोला था, मुझे ब्याज नहीं चाहिए, आप आधा-आधा करके ही दे दो
-- कउनो टटपुन्जिया समझे हो का बे ? भों## के ऐसे हजारों रुपये मूत देता हूँ ... मेरा खुद लाखों रुपया फंसा हुआ है

-- भाई जी आप मेरी मज़बूरी समझो, आप अभी 5-10 हजार ही दे दो
-- अबे आदमी हो कि पैजामा ... कहा न पेमेंट आने वाला है, ले लेना
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पता नहीं कब तक ये भाई-चारा संवाद चलता रहा !
मुझे देर हो रही थी ,,,,
मैंने चाय के पैसे दिए और लेनदार की ओर हमदर्दी भरी नजर डालकर निकल आया !
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शुक्रवार, अगस्त 08, 2014

बोरिंग कथा ऑफ कम्बल


साल का अंत होने वाला था। बेइंतिहा सर्दी थी। इस सर्दी की वजह से एक आदमी नींद से उठकर दुकानों के बरामदे की सीढ़ियों पर बैठ गया। फिर वह चलने लगा, लेकिन इस तरह सर्दी और लगने लगी। वह दौड़ने लगा - पुराना नुस्खा था कि दौड़ने पर पसीना निकलता है। शहर के एक बड़े हिस्से में वह दौड़ता रहा। उसे पसीना आने लगा। सर्दी कम लगने लगी। लेकिन वह कब तक दौड़ता। वह थककर बैठ गया। धीरे-धीरे पसीने की वजह से सर्दी और तेज लगने लगी !
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उसने देखा कि एक आदमी कम्बल ओढ़कर सो रहा है ! उसने उसका कम्बल खींचा और उसे लेकर भागने लगा ! जिसका कम्बल लेकर वह भागा था, वह उसके पीछे भागने लगा ! बीच-बीच में वह उसे गालियाँ भी दे रहा था ! जो कबल लेकर भाग रहा था, उसके हाथ से कम्बल गिर गया और एक नाले में चला गया !
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अब दोनों एक दुसरे के सामने थे ! दोनों भिड गए और एक दुसरे को मारते रहे ! इस बीच एक तीसरा आदमी आ गया ! वह भी सर्दी की वजह से सो नहीं पा रहा था ! जब उसने देखा कि कम्बल नाले में गिरा है तो वह नाले में उतर गया ! इधर दोनों एक-दुसरे को ईंट-पत्थरों से मारते रहे, जिनमें एक पहले और दूसरा बाद में मर गया ! तीसरा गहरे नाले की कीचड में डूब गया !
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सुबह न तो पुलिस और न अखबार वाले कम्बल के साथ इन तीनों की मौत का सबंध जोड़ पाए ! अलबत्ता और कोई कपडा आस-पास न होने की वजह से पुलिस ने तीनों के शवों को फिलहाल तो उस कम्बल पर लिटाया, जो नाले के बगल में पुलिस वालों को मिल गया था !
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तीन दिन बाद एक कूड़ा बीनने वाला लड़का बहुत डरते-सहमते हुए थाने में यह पूछने आया कि जो कम्बल नाले के पास पुलिस वालों को मिला था, वह उसका था ! पुलिस ने उसको थाने में बैठा लिया और पूछ-ताछ शुरू हुयी कि वह उसे मिला कहाँ था ! पता ये लगा कि उसने वह कम्बल एक घर से चुराया था - किसी का कम्बल घर के सामने धुप में सूख रहा था, उसने उठा लिया और चलता बना ! पुलिस ने कूड़ा बीनने वाले लड़के को हवालात में बंद करके इतना मारा कि लड़का मर गया ! पुलिस ने अपनी जान बचाने के लिए रात में उस मरे हुए लड़के की लाश को फुटपाथ पर छोड़ दिया और उसे उसके कम्बल से ढक दिया
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एक आदमी जो सर्दी से ठिठुर रहा था, उसने मरे हुए लड़के के शव के ऊपर से कम्बल उठाया और आगे निकल गया, फिर वह भागने लगा यह सोचकर कि कोई उसका पीछा कर रहा है ! भागते हुए वह रेल की पटरियां पार कर रहा था कि वह रेलगाड़ी की चपेट में आ गया और मर गया ! एक लड़का जो वहां कूड़ा बीना करता था, उसने वह कम्बल उठा लिया और यह देखते हुए कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है, वह पटरियां पार करके घर आ गया !
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माँ ने कम्बल देखकर बेटे से कहा - तुझे यह क्यों नहीं दिखा कि ये कम्बल उसके भाई का है, जो दो दिनों से लापता है ! माँ और बेटा अपने बेटे और भाई की तलाश में कम्बल लेकर निकल पड़े, यह सोचकर कि अगर वो मिल गया तो कम्बल ओढ़ाकर उसे घर ले आयेंगे ! मा-बेटे रात के बियाबान में खोजते रहे ....खोजते रहे ...
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इस बीच पता नहीं कम्बल कब कहाँ कंधे से खिसककर गिर गया .....
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The End
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स्वर्ग, हैवन या ज़न्नत का फैसला कैसे होगा ?

मैं एक बात को लेकर बहुत कन्फ्यूज हूँ
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मान लीजिये एक आदमी हिन्दू धर्म में पैदा हुआ ! जब 24-25 वर्ष का युवा हुआ तो क्रिस्चियन लड़की से प्यार कर बैठा, लेकिन लड़की ने शर्त रख दी कि पहले ईसाई धर्म अपनाओ तब शादी करुँगी ! लड़के ने धर्म परिवर्तन कर लिया ... बन गया क्रिस्चियन !
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छह-सात वर्ष बीते उसके बाद डायवोर्स हो गया !

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फिर एक लड़की पर दिल आया ,,, इस बार लड़की मुस्लिम थी ! मुस्लिम लड़की ने भी वही शर्त रख दी कि पहले इस्लाम अपनाओ ! लड़के ने एक बार
फिर धर्म परिवर्तन किया और बन गया मुसलमान !
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कुछ साल बाद उसकी मौत हो जाती है
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अब सवाल ये उठता है कि हिन्दू मान्यता के अनुसार तो मरने के बाद ऊपर भगवान् चित्रगुप्त जी कर्मों के हिसाब से पाप-पुण्य और स्वर्ग-नरक का फैसला करते हैं, लेकिन मरने वाले ने तो पहले ही हिन्दू धर्म से एकाउंट क्लोज कर लिया था .... ईसाई धर्म से भी एकाउंट क्लोज कर लिया था!
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तो भैया ऊपर फैसला कैसे होगा ?
क्या अल्लाह मियां मरने वाले की फाईल जीसस और चित्रगुप्त से मंगवाएंगे ?
या फिर ऐसा तो नहीं कि
मरने वाला पहले स्वर्ग , उसके बाद हैवन और आखिर में ज़न्नत जाएगा ?

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बुधवार, जुलाई 30, 2014

लतेहड़पंती


शतरंजी लतेहड़पंती पर एक किस्सा याद आया .. 
आप भी सुनिए -
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पुरानी बात है
शोर-शराबे से दूर ,, खंडहर हो चुकी एक इमारत के बरामदे में मिर्ज़ा साहब रोजाना अपने दोस्त अनवर मियां के साथ शतरंज की बिसात जमाए रहते ! आज मिर्ज़ा साहब बहुत ताव खाए हुए थे ,,, लगातार दो बाजियों में करारी शिकस्त खाने के बाद तीसरी बाजी बिछी हुयी थी !
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तभी मिर्ज़ा साहब का छोटा बेटा दौड़ता हुआ आया - 
"अब्बू घर चलिए अम्मी की तबियत खराब हो गयी है"
मिर्ज़ा साहब का दिमाग अपने ऊँट को बचाने में लगा हुआ था, बिसात पर नजरें गडाए हुए बोले - 
"जाकर जल्दी से हकीम साहब को बुला लाओ ... मैं आता हूँ"
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थोड़ी देर बाद मिर्ज़ा साहब का मंझला बेटा भागता-हांफता हुआ आया - 
"अब्बू हकीम जी ने जवाब दे दिया, कह रहे हैं अब कोई दवा असर नहीं कर रही"
मिर्ज़ा साहब अगली चाल सोचते हुए बोले - 
"हम्म ,,,, ऐसा करो तुम सब अम्मी के पास ही रहो, देखभाल करो ... मैं आ रहा हूँ"  
अनवर मियां ने टोका - "मिर्ज़ा साहब जाईये घर हो आईये"
मिर्ज़ा साहब दो शिकस्त के बाद हिसाब बराबर करने पे उतारू थे, अनसुना कर बोले  - 
"आप घोड़े की शह बचिए"    
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आधे घंटे बाद बड़ा बेटा बदहवास सा दौड़ता हुआ आया और ग़मगीन स्वर में बोला - 
"अम्मी का इंतकाल हो गया, अब्बू घर चलिए"
मिर्ज़ा साहब तीसरी बाजी भी हारने के बाद तिलमिलाए हुए थे ,,, 
बिसात पर जल्दी-जल्दी मोहरे सजाते हुए बोले - 
"मैं तुरंत पहुँच रहा हूँ ,,, तुम ऐसा करो तब तक मस्जिद से मौलवी साहब को बुला लो,,,, आकर दुआ पढ़ें"
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चौथी बाजी में मिर्ज़ा एक-एक चाल संभल-संभल के चल रहे थे, अनवर मियां के दो प्यादे मारने के बाद बहुत उत्साहित थे और अब वजीर को घेरने के लिए चाल सोचने में लगे थे ,,, तभी बड़ा बेटा फिर भागता हुआ आया -
"अब्बू ज़नाज़े की रुखसती का वक़्त आ गया ,,, जल्दी घर चलिए"
मिर्ज़ा साहब शतरंज की बिसात पर हाथी को किनारे खींचते हुए बोले - 
"अनवर मियां अपना वजीर बचाईये" ,,,, 
फिर बड़े बेटे से मुखातिब हुए - "ज़नाज़ा जाएगा तो इसी रास्ते से न .... तुम लोग ज़नाजा उठाओ, मैं यहीं से शामिल हो जाऊँगा"
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मिर्ज़ा साहब और अनवर मियां शतरंज की बिसात पर सिर झुकाए इस कदर दांव-पेंच में खोये रहे कि कब ज़नाज़ा सड़क से निकल गया, उन्हें खबर ही न हुयी ! 

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बुधवार, जुलाई 02, 2014

जिन्होंने जन्म दिया

75 साल की उस बुढ़िया माँ का वजन लगभग 40 किलो होगा !
आज जब तबियत बिगड़ने पर वो डॉक्टर को दिखाने गयी ! 


डॉक्टर ने कहा ' माताजी आप हेल्थ का ख्याल रखिये ! आप का वजन जरूरत से ज्यादा कम है !! आप खाने में जूस, सलाद, दूध, फल, घी, हेल्थी फ़ूड लिजियें ! नहीं तो आपकी सेहत दिनों दिन गिरती जायेगी और हालत नाजुक हो जायेंगी ! '

उसने भारी मन से डॉक्टर की बात को सुना और बाहर निकल कर सोचने लगी, इतनी महंगाई में ये सब कहाँ से आएगा..? और पिछले पचास सालों में, फ्रूट, घी , मेवा घर में लाया कौन है..?

बहुत ही मामूली पेंसन से जो थोडा बहुत पैसा मिलता है उससे घर के जरुरी सामान तो पति ले आतें है, लेकिन फल, जूस, हरी सब्जी, ये सब पति ने कभी ला कर नहीं दिया, ....और खुद भी कभी ये सब खरीदने की हिम्मत नहीं कर सकी....क्यूंकि जब भी मन करता कुछ खाने का, खाली पर्स हमेशा मुंह चिढाने लगता....

नागपुर (विदर्भ) जैसे शहर में ... मामूली सी नौकरी में और जिंदगी की गहमागहमी में सारी जमा पूंजी, पति का PF, घर की सारी अमानत, संपदा, गहने जेवर सब एक बेटे और दो बेटियों की परवरिश, पढाई लिखाई शादी में में सब कुछ खत्म हो गया...

दूर दिल्ली में रह रहा एक बहुत बड़ी कंपनी में मैनेजर और मोटी तनख्वाह उठा रहा बेटा भी तो खर्चे के नाम पर सिर्फ पांच सौ रुपये देता है...वो भी महीने के..... बेटियों से अपने दुःख माँ ने सदा छुपाये है...उन्हें कभी अपने गमो में शामिल नहीं किया...आखिर ससुराल वाले क्या सोचेंगे.....???

अब बेटे के भेजे इन पांच सौं रुपये में बूढ़े माँ बाप तन ढके या मन की करें ?????

उसने सोचा चलो एक बार बेटे को डॉक्टर की रिपोर्ट बता दी जाए.. उसने बेटे को फ़ोन किया और कहा - बेटा डॉक्टर ने बताया है की विटामिन, खून की की कमी, कमजोरी से से चक्कर आये थे .... इसी लिए खाने में सलाद, जूस, फ्रूट, दूध, फल , घी , मेवा लेना शुरू करो !!

बेटा - "माँ आप को जो खाना है खाओ , डॉक्टर की बात ना मानों.... !!"

माँ ने कहा – बेटा, थोड़े पैसे अगर भेज देता तो ठीक रहता..... !!

बेटा - " माँ इस माह मेरा बहुत खर्चा हो रहा है, कल ही तेरी पोती को मैंने फिटनेस जिम जोईन कराया है, तुझे तो पता ही है, वो कितनी मोटी हो रही है, इसी लिए जिम ज्वॉइन कराया है... ...उसके महीने के सात हजार रुपये लगेंगे...जिसमे उसका वजन चार किलो हर माह कम कराया जाएगा..... और कम से कम पांच माह तो उसे भेजना ही होगा.......पैंतीस हजार का ये खर्चा बैठे बिठाये आ गया....अब जरुरी भी तो है ये खर्चा...!! आखिर दो तीन साल में इसकी शादी करनी है और आज कल मोटी लड़कियां, पसंद कोई करता नहीं.....!! "

माँ ने कहा - " हाँ बेटा ये तो जरुरी था.....कोई बात नहीं वैसे भी डॉक्टर लोग तो ऐसे ही कुछ भी कहतें रहते है.....चक्कर तो गर्मी की वजह से आ गयें होंगे, वरना इतने सालों में तो कभी ऐसा नहीं हुआ ..... खाना तो हमेशा से यही खा रही हूँ मैं...!!!"

बेटा - "हाँ माँ.....अच्छा माँ अभी मैं फोन रखता हूँ ....बेटी के लिए डाइट चार्ट ले जाना है और कुछ जूस, फ्रूट और डायट फ़ूड भी ....आप अपना ख्याल रखना !!"

फोन कट गया....माँ ने एक ग्लास पानी पिया...और साडी पर फॉल लगाने मे लग गयी .... साड़ी में फॉल लगाने के माँ को पन्द्रह रुपये मिलेंगे....इन रुपयों से माँ आज गणेश पूजा के लिए बाजार से लड्डू खरीदेंगी....आज गणेश चतुर्थी जो है !!
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मंगलवार, जुलाई 01, 2014

राजवैद्य की जादुई पुडिया

एक राजवैद्य थे, सिर्फ राज-परिवार से सम्बंधित लोगों का ही उपचार करते थे ! समय बीता,,,, राजा-जमीदार कहने भर को रह गए ! ठाठ-बाट में पल रहे राजवैद्य जी को महसूस हुआ कि अब एक खूंटे से बंधे रहकर कुछ नहीं हो सकता !

राजवैद्य जी ने आगामी योजना सोच ली ! 


उनके तमाम चेले-चपाटों ने नगर भर में बैनर-पोस्टर टांग दिए ! गाड़ियों से घूम-घूमकर एनाउंस करवा दिया गया कि नगरवासियों के हर तरह का रोग दूर करने के लिए राजवैद्य जी ने फैसला किया है ! बारह वर्षों तक राजपरिवार में जादू दिखाने वाला जादूगर अब नगरवासियों की सेवा करेगा !


निश्चित तारीख को राजवैद्य पधारे ! पूरा नगर उमड़ पड़ा ,,, ऐसा लगा मानो जनसैलाब बह रहा हो ! राजवैद्य और उनके चेले सभी रोगियों को पांच सौ रुपये की एक खुराक पुडिया दे रहे थे, लोग अपनी जरुरत और हैसियत के मुताबिक़ पुडिया ले रहे थे ,,कोई दो, कोई चार ,,,, कोई दस ! दवा महंगी जरुर थी लेकिन सबको रोग मुक्त होना था तो दिल पे पत्थर रख के दवा ले रहे थे ! सभी रोगियों को एक बात कायदे से समझा दी गयी थी कि दवा किस विधि से खानी है ये बात राजवैद्य जी शिविर समापन पर बताएँगे !
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खैर तीन दिन तक सुबह से रात तक जमकर दवा वितरण का कार्यक्रम चला !


जब लगभग सारे रोगी निपट गए तो राजवैद्य बाहर आये और जनता को संबोधित किया : 


"बहुत प्रसन्नता की बात है कि आप सब ने मिलकर इस रोगमुक्त शिविर कार्यक्रम को सफल बनाया ! मेरे लिए ये मिटटी मेरी माँ है, इसकी सेवा करना ही मेरा कर्तव्य है ! मेरा अब दुसरे नगर के प्रस्थान का समय हो गया है ,,, जाते-जाते आपको दी गयी औषधि के विषय में बता दूँ ,,, ये दवा काफी कडवी है लेकिन रोगमुक्त होने के लिए इतना तो आपको सहन करना ही होगा ! एक और विशेष बात इस दवा को प्रातः चार बजे खाली पेट "स्वर्ण भस्म" के साथ खाना है ! अब हमें आज्ञा दीजिये ,,, नमस्कार !;
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राजवैद्य जी की घोडा गाड़ी तैयार खडी थी ,,, चेलों को लेकर उड़ गए !
जनता अभी भी मुंह बाए ताक रही थी !
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डिस्क्लेमर : 
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इस कथा का सम्बन्ध किसी भी घटना अथवा व्यक्ति से नहीं है , अगर किसी को ऐसा आभास होता है तो वो बाबा रामदेव के शिविर में जाकर अपना इलाज कराये !

रविवार, अप्रैल 20, 2014

एक रहेन मिश्रीलाल : चुनावी चकल्लस

पहले की बात है ! लखीमपुर में एक ठो रहे मिश्रीलाल ! विधायकी के चुनाव के लिए दुई-चार चेले-चपाटों ने उकसा दिया तो मिश्रीलाल भी खड़े हो गए ! जीतना भला किसे था लेकिन ठसक बनी रहे, ये भी जरुरी था !

खैर, बैलेट बॉक्स खुलने का दिन भी आया,
पता चला मिश्रीलाल को टोटल 74 वोट मिले हैं !

अगले रोज जब रोज की तरह दो-चार चेले-चपाटों के साथ टहलने निकले तो जिधर जाएँ, वहीँ से आवाज़ आये - "दद्दा आपै का भोट दिए रहेन !" मिश्रीलाल यही बात सुनत-सुनत अघाय गए, माइंड फ्रेश करने के लिए सिगरेट पीने दूकान पे गए तो पनवाड़ी भी चहक उठा - "दद्दा हमहू आपै का भोट दिया रहा"

इतना सुनना था कि तपे हुए मिश्रीलाल बमक पड़े - "भूतनी के कउनो सिर्री-विर्री समझे हो का ? 80-82 भोट तो हमरे घरे-बिरादरी केरे हैं ,, ओहू पूरै न मिले ,, वोहू मा पनौती ,,, यहाँ सरऊ जिहका देखौ कहि रहा है - हमउ दियै,, हमउ दिये,, अतने भोट कहाँ घुसि गए ?"

मिश्रीलाल का बमकना आगे भी जारी रहा -
",,,, खडन्जा बिछवाएन खातिर रात-दिन किहेन हम, नहरिया से पानी काटै बदि के कुलाबा लगवायेन हम, कउनो काम हो तो दद्दा दद्दा ,,, अऊर जब चुनाव आवा तो आपन-आपन जाति-बिरादरी माँ भोट खोंस दिहिन ,,, आवौ अब कौनो काम खातिर बताएब हमहूँ ,,,,,"

दद्दा का मूड गरम देख चेले-चपाटे दायें-बाएं खिसक लिए !


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End
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सोमवार, फ़रवरी 10, 2014

एक दिलचस्प और सच्चा किस्सा


मूक सिनेमा के दौर का यह एकदम सच्चा वाकया है ! मशहूर निर्देशक होमी मास्टर और उनकी फ़िल्म के हीरो के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया ! झगड़ा इतना ज्यादा बढ़ गया कि बीच-बचाव की नौबत आ गयी ! क्रोध में हीरो ने होमी मास्टर के साथ काम न करने का एलान कर दिया और शूटिंग छोड़कर चल दिया ! 

सेट पर सन्नाटा छा गया कि अब क्या होगा ? होमी मास्टर भी हार मानने को तैयार नहीं थे ! थोड़ी देर सोचते रहे, उसके बाद फरमाया कि एक कुत्ते को शूटिंग के लिए लाया जाए ! उन्होंने बैठे-बैठे फ़िल्म की स्टोरी स्क्रिप्ट में फेर-बदल कर डाला - अब एक नया दृश्य जोड़ा गया, जिसमें एक जादूगर अपने जादू की ताकत से हीरो को कुत्ता बना देता है ! 

कुत्ता लाया गया ! शूटिंग शुरू हुयी ! अब बेचारी हिरोइन के लिए हीरो की जगह कुत्ता था, जिसे वह प्रेमी की तरह गले लगाती और प्यार करती ! इधर शूटिंग चलती रही और चटखारेदार ख़बरें बनती रहीं और उधर बेचारा हीरो अपनी जगह कुत्ते को लिए जाने की खबर से इतना अधिक विचलित हो गया कि उसने सुलह-सफाई कर ली ! 

हीरो शूटिंग पर लौट आया ! होमी मास्टर ने एक नया दृश्य तैयार किया, जिसमें जादूगर कुत्ते को वापस उसके असली रूप में ले आता है और हिरोईन से उसका मिलन हो जाता है ! फ़िल्म की रिलीज पर इस कुत्ते वाले 'सीक्वेंस' को पब्लिक से जबर्दस्त तालियां और दाद मिली ! 

अब बताईये क्या कहा जाए ? 
हिंदुस्तान की पब्लिक का कोई जवाब नहीं  :-)

मुझे लगता रहता है कि होमी मास्टर आज भी ज़िंदा है ! वो फ़िल्म से टीवी में भले ही कई रूपों में आ गया हो, उसका नाम भले ही एकता कपूर या कुछ और हो गया हो ! मगर मुझे लगता है कि होमी मास्टर आज भी ज़िंदा है ! है कि नहीं जी ?
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The End 
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गुरुवार, दिसंबर 19, 2013

घर सा घर ... अब कहाँ है घर

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'घर' एक वास्तु मात्र न होकर भावसूचक संज्ञा भी है ! घर से अधिक सजीव एवं घर से अधिक निर्जीव भला क्या हो सकता है ! अनगिनत भावनाओं और प्रतीकों का मिला-जुला रूप है घर !

"कमरा नंबर एक / जहाँ दो-दो सड़कों के दुःशासनी हाथ / उसकी दीवारें उतार लेने को / लपके ही रहते हैं / / कमरा नंबर दो / जहाँ खिड़की से आसमान दिखता है / धुप भी आती है / कमरा नंबर तीन जो आँगन में खुलता है / जिसका दरवाजा पूरे घर को / रौशनी की बाढ़ में तैरा सकता है !! मगर अफसोस कि / रौशनी के साथ-साथ / पडोसी घरों का धुआं भी / भीतर भर आता है "

उपरोक्त पंक्तियों में घर का बिम्ब उभरता है ! यह बिम्ब भारतीय घर का ही है ! यह घर प्राचीन भी है, मध्कालीन भी और समकालीन भी ! यह बिम्ब बहुत सुखद नहीं है ! साहित्य में 'घर' वह भी होता है जो घर की स्मृति से, घरेलु रिश्तों द्वारा निर्मित और परिभाषित होता है :
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"घर/ हैं कहाँ जिनकी हम बात करते हैं/ घर की बातें/ सबकी अपनी हैं/ घर की बातें/ कोई किसी से नहीं करता/ जिनकी बातें होती हैं/ वे घर नहीं होते"
[अज्ञेय]

जैसा कि पहले ही कहा कि घर से अधिक सजीव और घर से अधिक निर्जीव क्या हो सकता है ? ईंट-गारे के बने चाहर- दीवारों को घर नहीं माना जा सकता ! घर के साथ जुड़े रहते हैं अनेकों रिश्ते - माँ, पिताजी, भाई, बहन, भाभी, चाचा, चाची ...... ! घर के साथ जुड़े रहते हैं अनेकों शब्द ..... प्रतीक्षा, प्रेम, सुरक्षा, नींद, भूख, भोजन, सुख-दुःख .............. :

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"कहाँ भाग गया घर / साथ-साथ चलते हुए / इस शहर के फुटपाथों पर / हमने सपना देखा था / एक छोटे से घर का, / और जब सपना / घर बन गया, // हम अलग-अलग कमरों में बंट गए" !

जैसे घरों में हम सचमुच (अथवा स्मृति में) रहते हैं, वैसा ही घर साहित्य में भी रचते हैं ! साहित्य में हमारी स्म्रतियां, अनुभूतियाँ अपना घर ही तो खोजती हैं - बनाती हैं ! यदि हम अब एक साथ रहने वाले केवल एक उपभोक्ता समुदाय बन गए हैं - सीमेंट-कंक्रीट के जंगलों में अपने चेहरे की तलाश में भटकते आकार मात्र - तो साहित्य इसे प्रतिबिंबित करेगा ही :

"ये दीवारें / मेरा घर हैं / वह घर / जिसके सपने देखती मैं / विक्षिप्तता की सुरंग में भटक गयी थी / इसकी छत के नीचे खड़ी / सोचती हूँ / यह तो मेरा सपना नहीं है / न ही भाव बोध / न ही कलात्मक रुचियों की अभिव्यक्ति" - (कुसुम अंसल)

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यदि सचमुच हमारा अपना विश्वास खंडित हो चुका है, पारंपरिक जीवन मूल्य भूल चुके हैं, स्वयं अपने 'आत्म' से निर्वासित हो चुके हैं तो यह आत्मनिर्वासन हमारे साहित्य को प्रभावित किये बिना कैसे रहेगा ? मुझे 'इंदिरा राठौर जी" की कविता याद आ रही है :

वही घर, वही लोग / लेकिन घर अब बासी लगता है / वैचारिक प्रगतिशीलता के आवरण में / सब दकियानूसी लगता है / बच्चे जनता है, भटकता है रोजगार के लिए / रोते शिकायत करते / आखिर ख़त्म हो जाता है घर /// हर कोने-अंतरे टंगे रहते हैं प्रश्न / मकडी के जालों से / घर चाहता है 'बड़े लोगों में' आयें नजर हम / समाज को दिखाएँ रूआब अपना / पैसा, ताकत, प्रतिष्ठा .... / घर अगर संकुचित है यहीं तक / तो यह मेरा घर नहीं है ..... यह मेरा घर नहीं है "

जिस आधुनिक सभ्यता के घिराव में हम आ गए हैं, उसमें भारतीय आदर्शवादी घर की गुंजाईश ही कहाँ बची है ! इस आधुनिक सभ्यता का जो कठोरतम वज्रपात हुआ है, वह तो इस घर की गृहिणी पर ही हुआ है ! निर्मल वर्मा जी की एक कहानी में यह मानसिक द्वंद स्पष्ट दिखाई देता है :

'घर कहीं नहीं था ! दुःख था ... बाँझ दुःख, जिसका कोई फल नहीं था, जो एक-दुसरे से टकराकर ख़त्म हो जाता है और हम उसे नहीं देख पाते जब तक आधा रिश्ता पानी में नहीं डूब जाता !'

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आधुनिक साहित्य में 'भारतीय घर' तेजी से हिचकोले खा रहा है ! कारण साफ है : समाज को स्त्री ने जन्म दिया ! दलबद्ध भाव से रहने के प्रति निष्ठां होने के कारण वह उसी समाज की अनुचरी हो गयी ! पुरुष समाज से भागना चाहता था ! स्त्री ने अपना हक़ त्यागकर उसे समाज में रखा - उसके हाथ में समाज की नकेल दे दी ! .... आज वह देखती है कि उसी के बुने हुए जाल ने उसे बुरी तरह जकड डाला है, जिससे निकलने के लिए उसकी छटपटाहट निरंतर जारी है !

गुजरे कई वर्षों के दौरान हमारे यहाँ जीवन का काफी तिरस्कार सा रहा, जिसका परिणाम हमें भौतिक दासता के रूप में ही नहीं बल्कि स्वयं अपने विचार, दर्शन और संवेदन की भी पंगुता के रूप में भुगतना पड़ रहा है ! घर की याद भी तभी है जब घर नहीं होता अथवा घर, घर जैसा नहीं होता ! श्रीकांत जी की कविता की पंक्ति याद आ रही हैं :
मैं महुए के वन में एक कंडे सा /सुलगना, धुन्धुवाना चाहता हूँ /मैं घर जाना चाहता हूँ..

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की 'यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी' शीर्षक कविता भी याद आ रही है, जिसमें एक खोये हुए घर का विषाद है और उसे तलाश करने की छटपटाहट भी ! रवींद्र नाथ ठाकुर जी की लिखी एक कहानी है - 'होमकमिंग' ! कहानी का मुख्य पात्र 'जतिन चक्रवर्ती' दिन भर घर से बाहर भटकता और शैतानियाँ करता रहता है ! उसे सुधारने के लिए उसके माँ-बाप उसे कलकत्ता भेज देते हैं, जहाँ उसका बिलकुल मन नहीं लगता ! वह अपने घर के लिए तड़पता हुआ एक-एक दिन गिनता रहता है कि कब छुटियाँ मिलें और कब वह घर पहुंचे ! आखिर एक दिन उसे छुट्टी मिल जाती है किन्तु म्रत्यु शय्या पर ! बेहोशी की सी बीमारावस्था में घर-घर बड- बडाता हुआ वह चल बसता है !
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ऐसा लगता है कि जतिन चक्रवर्ती की इस विडम्बनापूर्ण नियति को हमारे अधिकाँश लेखकों ने स्वीकार कर लिया है ! किन्तु वे घर का दुखडा भी नहीं रोते, न ही उसकी नुमाईश करते हैं ! वे स्थिति का सामना करते हैं और पुनर्वास का भी ! अज्ञेय जी का काव्य संग्रह 'ऐसा कोई घर आपने देखा है' में ऐसा ही कुछ है :

"घर मेरा कोई है नहीं / घर मुझे चाहिए / घर के भीतर प्रकाश हो / इसकी भी मुझे चिंता नहीं / प्रकाश के घेरे के भीतर मेरा घर हो / इसी की मुझे तलाश है / ऐसा कोई घर आपने देखा है ? / न देखा हो / तो भी हम / बेघरों की परस्पर हमदर्दी के / घेरे में तो रह ही सकते हैं "

'बेघरों की परस्पर हमदर्दी का घेरा' अपने आप में प्रकाश का घेरा चाहे न भी हो, किन्तु वह वह उसकी अनिवार्य भूमिका निश्चय ही है ! कम से कम वह उस अँधेरे के घेरे को तोड़ने का पहला उपक्रम तो है ही ! उस अँधेरे के घेरे को तोड़ने का - जो प्राकृतिक नहीं, मानव निर्मित सांस्कृतिक अँधेरा :

"मैंने अपने घर का नंबर मिटाया है / और गली के सिरे पर लगा गली का नाम हटाया है / और हर सड़क की दिशा का नाम पोंछ दिया है / पर अगर तुम्हे मुझसे जरूर मिलना है / तो हर देश के शहर की हर गली का हर दरवाजा खटखटाओ ..... / यह एक शाप है, एक वरदान है / जहाँ भी स्वतंत्र रूह की झलक मिले / समझ जाना वह मेरा घर है !"

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मंगलवार, दिसंबर 10, 2013

खुरपेंची लाल महान

क कालोनी टाईप मोहल्ला था ! वहीँ के लोगों ने स्थानीय रख-रखाव व अन्य कार्यक्रमों के लिए एक मोहल्ला समिति बनायी और बुजुर्ग रईस अहमद को सर्व सम्मति से अध्यक्ष बना दिया था ! जैसा कि अन्य अच्छे मोहल्लों में होता है वैसा ही वहाँ भी माहौल था - जमादार सड़कें साफ़ करता, कूड़े वाला कूड़ा ले जाता, माली पार्क का रख-रखाव करता, रात में एक चौकीदार डंडा लेके सीटी बजाता घूमता, साल में एक-दो बार खेल-कूद के आयोजन संपन्न होते !

सी मोहल्ले में खुरपेंची लाल भी थे, गजब के नुकतेबाज...हर बात में कमियां गिनाते, सबकी हरामखोरी और मक्कारी का रोना रोते, मोहल्ला समिति के फंड में गड़बड़ी की बात करते ! लोग खुरपेंची लाल की क्रांतिकारी बातों से बहुत प्रभावित होते ! तमाम 'बिजी विदआउट वर्क' वाले छुटभैय्ये खुरपेंची लाल के प्रभाव में आते चले गए !

क दिन अचानक ही मोहल्ला समिति की मीटिंग बुलायी गयी और बुजुर्ग रईस अहमद की जगह खुरपेंची लाल को अध्यक्ष चुन लिया गया ! रईस अहमद ने भी मन ही मन राहत की सांस ली कि इस 'थैंकलेस जॉब' से छुट्टी मिली !

मोहल्ले वालों ने खुरपेंची लाल के अध्यक्ष बनने पर खूब ढोल-नगाड़े बजे और जिंदाबाद के नारों के साथ जुलूस निकाला ! हफ्ता-दस दिन तो जश्न और बधाई में गुजर गए ! उसके बाद क्रांतिकारी परिवर्तन का दौर शुरू हुआ !

खुरपेंची लाल ने पार्क के माली को हरामखोरी से मुक्त करते हुए कहा कि मेरे कई दोस्त एग्रीकल्चर, और फारेस्ट डिपार्टमेंट में हैं, उनसे कहूंगा तो दो-तीन माली आकर पार्क की काया पलट कर देंगे, आप लोग देखना ये पार्क फूलों से भर जाएगा !

फिर निकम्मे चौकीदार को जिम्मेदारी से मुक्त करते हुए कहा - "सिक्योरिटी सर्विस से बात करके मोहल्ले में वर्दीधारी सिक्योरिटी गार्ड नियुक्त करवाऊंगा, चोर-बदमाश तो सात फुटे सिक्योरिटी गार्ड को देखते ही भाग जायेंगे !"

सके उपरान्त जमादार और कूड़े वाले को बुलाकर उनकी काहिली गिनाई गयी, दोनों को जब उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराया गया तो दोनों एक साथ बोले - "बाबू जी आप किसी और को देख लो !" खुरपेंची लाल ने तमक के कहा - "भागो ~  यहाँ तुम जैसे काहिलों की कोई जरुरत नहीं, कल ही नगर निगम जाऊँगा और सब इंतजाम हो जाएगा !"
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खैर !!!
इस तरह के तमाम क्रांतिकारी कदम खुरपेंची लाल द्वारा उठाये गए !
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दिन पर दिन बीतते गए !
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मोहल्ले का पार्क उजाड़ हो गया !
गलियों में गंदगी और कूड़ा जमा रहता है !
जब-तब छोटी-मोटी चोरियों की खबर भी सुनायी देती हैं !
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खुरपेंची लाल आज भी पनवाड़ी और चाय की दूकान पे सबकी हरामखोरी और निकम्मेपन को गालियां देते दिख जाते हैं
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