सोमवार, अगस्त 11, 2014

आदमी और बाजार


वह जब माळ के भीतर दूकान में घुसा तो दूकान वाले ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया !
ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पता नहीं उसके चेहरे में ऐसा क्या है कि वो दूकानदार में अपनी दिलचस्पी नहीं जगा पाता !
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दुकानदार मानकर चलता है कि ये कुछ नहीं खरीदने वाला, लेकिन वो कहना चाहता है कि मैं नमक, हल्दी, चावल और साबुन तो खरीदता ही हूँ ,,, और भी तमाम चीजें ! मैंने कंप्यूटर भी खरीदा है और चश्मा तो हर साल खरीदता हूँ !
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बहरहाल दूकान वालों को देखकर यह लगता है कि वे पहले से ही जानते हैं कि वो कुछ खरीदने वाला नहीं है ! इस वजह से वो दूकान में उड़ा-उड़ा सा रहता है और कई बार तो भूल भी जाता है कि वो दूकान में आया तो किसलिए !
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दुकानदार लोग शायद उसे इस तरह के आदमी के तौर पर देखते हैं जिसका काम बिना खरीदे ही चल सकता है ! वे नहीं चाहते कि उस जैसा आदमी दूकान में दाखिल हो ! वे नहीं चाहते कि ऐसा आदमी बाजार में दिखे, जिसका काम बिना खरीदे ही चल जाता हो !
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The End
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