मंगलवार, जुलाई 30, 2013

ज़िन्दगी हारी नहीं ... (क्षणिकाएं)

एक होड़ सी मची है बिकने के वास्ते 
साँसों को समेटे हैं मरने के वास्ते, 
जिंदगी का ये तमाशा कितना अजीब है 
क्या क्या जतन हैं करते जीने के वास्ते !
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"रूह ने उसकी कहा मरघट से कल ये दोस्तों

उम्र ही हारी है मेरी ज़िन्दगी हारी नहीं" !!

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कश्ती भी नहीं बदली, दरिया भी नहीं बदला,
हम डूबने वालों का, जज्बा भी नहीं बदला,
है शौक–ए-सफ़र ऐसा कि, एक उम्र हुयी हमने,
मंजिल भी नहीं पाई, और रास्ता भी नहीं बदला …
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उनके पायलों की छनछनाहट 
मेरे दिल को झनझनाती हैं !
वो एक दिन राह से गुजरी थीं
राहें आज तक गुनगुनाती हैं !

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-- Prakash Govind 
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सोमवार, जुलाई 29, 2013

काबिल हकीम और नवाब की बेगम


इतने सारे थोक में अब 'डे' होने लगे हैं कि कुछ पता ही नहीं चलता ! 
सुना है 'डाक्टर्स डे' भी मनाया जाता है ! सभी डाक्टरों को शुभ कामनाएं ! 

डाक्टर तो भगवान सरीखे माने गए हैं ... सही भी है ... दोनों ही पत्थरदिल ! 
अब पहले वाला ज़माना तो रहा नहीं कि 
किसी वैद्य जी की दस-बीस साल शागिर्दी कर ली और बन गए वैद्य ... 
या पिता जी से सीखकर पुत्र ने गद्दी संभाल ली ! 
अब तीस-चालीस लाख खर्च करने के बाद डाक्टर से समाज सेवा की उम्मीद करना बकलोलपना है ! 

डाक्टर भी सौ तरह के -- आँखों का अलग, कान का अलग, दिमाग का अलग, हड्डियों का अलग ! 
तौबा-तौबा .... पहले कितना अच्छा सिस्टम था ... 
एक ही दुकान पर चाहे जिस चीज का इलाज करा लो... 
पैसा भी श्रद्धा हो तो दे दो वरना जै जै कर के निकल लो ! 

खैर ! 

पुराने समय में एक हकीम थे ... बहुत दूर-दूर तक नाम था ! एक नवाब साहब की बेगम की तबीयत बिगड़ी तो हवेली में बुला लिया ! हकीम ने आते ही पूछा - "क्या हुआ नवाब साहब ?" 

नवाब साहब ने संजीदगी से कहा - "कल रात से ही बेगम साहिबा की तबीयत नासाज है...पेट में तकलीफ है" 

हकीम जी इत्मीनान से बोले - "बेगम साहिबा को बुलाईये .. नाड़ी देखूं तो दवा दूँ !"

नवाब साहब इन्कार करते हुए बोले - "ये तो कतई मुमकिन नहीं है ... बहुत पर्दा करती हैं ... पराये मर्द के सामने भी नहीं आ सकतीं और आप नाड़ी देखने की बात कर रहे हैं ?"

हकीम जी उसी इत्मीनान से बोले - "कोई बात नहीं नवाब साहब आप ऐसा करें कि अन्दर जाकर एक डोरी बेगम साहिब की कलाई में बाँध दें और दूसरा सिरा मुझे यहाँ दे दें ... मैं यूँ भी नाड़ी देख लूँगा !"

नवाब साहब को ये मशवरा पसंद आया ! उन्होंने खिदमतगार से एक डोरी मंगवाई .... एक सिरा हकीम जी के हाथ में दिया और दूसरा सिरा अन्दर बेगम साहिब के पास भिजवा दिया ये कहते हुए कि - "जाओ बेगम जी से कह दो कि इस डोरी को कलाई पर बाँध लें !" 

उधर बेगम साहिबा को तफरी सूझी .... सोचा .. बहुत बड़ा हकीम बना फिरता है .. आज इसकी हकीमी देखती हूँ .... बस बेगम साहिब ने वो डोरी अपनी पालतू बिल्ली के हाथ में बाँध दी ... और खिदमतगार से कहा - "जाओ हकीम जी से कह दो डोरी बाँध ली है !" 

जैसे ही हकीम जी के पास ये खबर आई वो डोरी के दुसरे सिरे को कान के पास ले गए ... हकीन जी के चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए ......... 
बोले - "नवाब साहब ~~ क्या आपकी बेगम चूहे खाती है ??" 

हाँ जी .... ऐसे काबिल हकीम और वैद्य होते थे ... कोई मजाक नहीं !

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The End 
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लेखक : प्रकाश गोविन्द

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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
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Narendra Tomar : 
खैर मनाइए कि कुछ डाक्‍टर अभी तक भगवान नहीं बने है। 
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Raj Bhatia :
आज कल तो डाक्टर की डिग्री भी बिकती हे, पहले डाक्टर मेहनत से बनते थे, ओर लोग भगवान समान समझते थे, एक डाक्टर का कलिनिक बर्षो वैसा ही रहता था, जैसा उस ने शुरुआत मे बनाया होता था, लेकिन आज पांच साल मे डाक्टर का कलिनिक फ़ाईव स्टार बन जाता हे..कैसे..?  
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Prakash Govind :
सबसे दुखदायी बात तो ये लगती है कि एक तो आजकल के डाक्टर्स फ़ालतू में टेस्ट पर टेस्ट कराते रहते हैं .... उस पर तुर्रा ये कि एक जगह के टेस्ट रिपोर्ट दूसरी जगह माने नहीं जाते ... जितनी जगह दिखाओ नए सिरे से टेस्ट कराते रहो .... अच्छा धंधा बना रखा है  
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संजना तिवारी  :  
क्या चौका मारा आपने , बहुत अच्छा लगा ।। 
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Shivendra Sinha :
maine suna hai ki pahle jamaane ke bahut se hakeem mareej ka kapda soongh kar bhi ilaaz kar dete the.   
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Vivek Dutt Mathuria : 
कभी शिक्षा और चिकित्सा सेवा के क्षेत्र हुआ करते थे, आज ये क्षेत्र मेवा के हो गए है... दोनों पेशों से जुडे लोगों ने जनता को काटने में कसाईयों का पीछे छोड दिया है ... यही है भारत निर्माण ... दोनों ही पेशों से जुडे लोग इस व्यवस्था की असली आजादी का भरपूर मजा ले रहे हैं ... इसी का एक नाम मनमोहनी शब्दों में उदारीकरण हैं .......... 
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Misir Arun :
सभी डाक्टरों को शुभकामनायें, लोग खूब बीमार हों, दवा एजेंट उन्हें खूब कमीशन दें , वे छोटी सी बीमारी को बड़ी बतायें और इलाज कई महीनों तक चलायें !  
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सुधांशु शेखर सिंह :
बिल्कुल सही ...... आज डॉक्टर के पास जाते ही 10 तरह के जांच लिखना दिये जाते है ......... मतलब साफ है कि डॉक्टर साहब सिर्फ दवाईयो का ही नाम जानते है मर्ज पकडना उनके वश के बात नही......  
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देवेन्द्र बेचैन आत्मा  :  
.... और जैसे ही यह खबर बेगम तक पहुँची कि वैद्य ने यह कहा और नवाब साहब पूछने आ रहे हैं उसने झट डोर अपनी कलाई में बांध ली। बिचारा वैद्य मारा गया। उसी दिन से अच्छे वैद्य गायब होने लगे। 
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Indu Puri Goswami :
ha ha ha masttttttt beshaq doctors kaise bhi ho chuke hain. zindagi bachana bhagwan ke baad unhi ke hath me hai. maine marijon ki jaan bchaane men aaj bhi unhe jaan jhonkte huye dekha hai.   
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Aditi Chauhan : 
Hakeem ji kamaal ke aur aapki post bhi sab kamaal ki hoti hain 
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Anil Pusadkar :
ji purane naadi vaidya kamaal ke hote the, mere bhi rishtedari me do teen vaidya hue hain, naadi chhoote hi rog bata dete the.  
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Bimal Chander :
Doctor bechara kare kya ... rogi theek ho jaye to kehte hain ki parmatma ne kirpa ki.. Mar jaye to kahte hai ki doctor nikamma tha.   
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Prakash Govind :  
मैंने भी एक बार अपने इलाज के लिए बहुत देख-भाल के सस्ता और खाली डाक्टर खोजा ! 
मैंने कहा - "डाक्टर साहब आजकल किसी काम में मन नहीं लगता" 
डाक्टर - "भूख भी कम लगती है न ?" 
मैंने कहा - "जी हाँ" 
डाक्टर - "कहीं आने-जाने का मन नहीं करता होगा ?" 
मैंने कहा - "हाँ जी" 
डाक्टर - "रात में नींद भी ठीक से नहीं आती होगी ?" 
मैंने हैरानी से कहा - "हाँ डाक्टर साहब" 
डाक्टर - "दिमाग में एक अजीब सी उलझन रहती होगी ?" 
मैं हतप्रभ सा बोला - "हाँ डाक्टर साहब हाँ बिलकुल सही" 
डाक्टर - "यार मुझे भी यही सब होता है ... क्यूँ होता है ऐसा ?   
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Ram Naresh Gupta :
Aaaj ke samay men aise doctoe aur vaidya nahi hain ... sab commission ke chakkar men lage huye hain.   
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सुनील अनुरागी :
आजकल डॉक्टर ट्रीटमेंट नहीं एक्सपेरिमेंट ही करते हैं. आज के चिकित्सक सिर्फ मशीनों के रिपोर्ट पर जी रहे हैं और मशीनें मरीज का खून चूस रही हैं. हर प्राइवेट डॉक्टर के सामने एक डिस्पेंसरी होती है. उसकी खाशियत ये है कि डॉक्टर की सुझाई दवाई उस डिस्पेंसरी के आलावा कहीं नहीं मिलती है.  
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DrRavindra Singh :  
प्रकाश गोविन्द जी -- ये भले मजाक लगे मगर आप को एक सच्ची घटना बताता हूँ की फैजाबाद जिले में एक वैद्य जी थे जो की मेरे ससुराल वालो के परिवार के थे और उन्होंने मेरी पत्नी के बाबा को बताया की आपके यूरिन में फॉस्फेट आ रहा है ये उन्होंने नाडी देख कर कहा था और मैं उन दिनों चिकित्सा का विद्यार्थी था तो बाबा ने मुझे रिपोर्ट दिखाई जिस में फॉस्फेट था --मैं चकित रह गया --मगर दुर्भाग्य ये की आयुर्वेद की इस विरासत को ये गुणी लोग अपनी कब्र में साथ ले गए और उन्होंने इसे किसी को सिखाया नहीं -----आज की मेडिकल विज्ञानं में नाडी का कोई ऐसा ज्ञान नहीं है जो ये बता सके की मरीज ने क्या खाया है या उसकी ब्लड या यूरिन में क्या है ? 
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Kuldip Kumar Kamboj :
प्रकाश गोविन्द जी, बहुत जरुरी बात पर आपने अपनी कलम चलाई है, सुंदर रचना है.   
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Govind Singh Parmar : 
हा हा हा हा बहुत सुन्दर, कहते तो ऐसा ही है लोग कि पहले नाडी देखकर पूरा हाल बता देते थे, लेकिन ऐसा संभव नहीं, कभी नहीं, कुछ बुनियादी बाते तो बताई जा सकती है ज्यादा नहीं, ये वैसा ही है जैसे आल्हा ऊदल के घोड़े उड़ते थे, 

मै अभी अपनी पत्नी को एक डाक्टर के यहाँ दिखाने ले गया उनका परामर्श शुल्क 500 रुपया है और दस दिन बाद दुबारा बुलाते है, परचा सात दिन तक मान्य है, मैंने अनुमान लगाया की कम से कम दो सौ लोगो को देखते होंगे रोज, एक लाख रुपया प्रतिदिन, तीन-चार करोड़ सालाना, कोई खर्च नहीं बस दो कर्मचारी पांच हजार वाले रखे है, सालाना एक लाख भी आयकर नहीं देते, लूट रहे है, आज एक प्रतिशत भी डाक्टर सेवा भावना वाला नहीं है, उनसे उम्मीद भी बेमानी है, जब हम ही अच्छे न रहे तो किसी से क्या गिला 
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पं.विजय त्रिपाठी 'विजय' :
satya hai lekin ab wo gyaan kahaan........  
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Dharmender Singh :
aisa ho to aaj bhi sakta ha.. par agar aisa ho gaya to fir itni badi badi or mahangi machine lagaye huye baithey hain ,, unka kya hoga?  
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DrRavindra Singh  :  
डॉक्टर भगवान् का बनाया कोई विशेष बंदा नहीं है बन्धुओ और समाज में जितना किसी भी पेशे में बेइमान है कमीशन खोर है उतने ही डॉक्टर भी बेइमान या कमीशन खोर है --सभी न बेइमान है और न ईमानदार --- जब धन पशुओं के बेटे डॉक्टर बन रहे है पैसे के बूते तो वो पैसे की मशीन न बनेगे तो क्या बनेगे ???????? जरा हाई स्कूल पास जेई साहब को देखे ????-----एक भाई साहब मार्केटिंग इंस्पेक्टर है मेरे पास आये और पूंछने लगे डॉ साहब आप ने कितने मकान बनाये ????? और बता गए की उन्होंने सात मकान बनाये --फिर बोले मेरे पास जमीन भी है न (मेरे पास उन महोदय से कम से कम दस गुना पैत्रिक जमीन है) मगर मैं तो कतई सात और नौ मकान की सोच भी नहीं सकता --------- 


दोस्तों ये बात भी सोचने की है की बेईमानी का ये संक्रमण फैलाने वाले भी घूम रहे है जिन्हें अपनी डकैती से कमाई दौलत पर नाज है ... वो कतई शर्मिंदा नहीं है -----बेईमानी किसी की हो ,समाज को नकारना और धिक्कारना चाहिए --जब समाज में इन चोरो को क़द्र की जाती रहेगी तब तक आप ये दुस्प्रवृत्ति बढती ही पायेगे ------फिर डॉ को भी अलग नहीं कर सकते ------ 
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Rajkumar Soni  :
इसलिए काबिल डाक्टरों को सलाम   
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झूठ-फरेब, खुशफहमी, झूठा सच, अहसास (क्षणिकाएं)


झूठ-फरेब 
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एक दिन में कई बार 

जता ही देते हैं हम 

कितना खराब हो गया है समय 

मजा यह है कि बगैर झूठ-फरेब के 

एक दिन भी नहीं काट पाते !

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खुशफहमी
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घर की रस्मों से डर रही होगी

भीगी पलकें छुपा के आँचल में

वो मुझे याद कर रही होगी !

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झूठा सच
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रात सूरज था मेरे हाथों में

सुबह को सोचता हूँ किससे कहूँ
कौन आएगा मेरी बातों में !
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अहसास
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जिंदगी कट रही है कुछ जैसे

इम्तहाँ का रिजल्ट आने पर
कोई बच्चा उदास हो जैसे !
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-- प्रकाश गोविन्द
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क्षमा / किस्मत (दो क्षणिकाएं)

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मृत्यु को जन्म देकर
ईश्वर अपराधी है
इतनी जोरों से जियें हम दोनों
कि इश्वर के अँधेरे को
क्षमा कर सकें !!! 

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उस अपंग बच्चे को 
गए हम फूल दे आये 
दरवाजे पर रूककर, पलटकर देखा 
मानो देहरी से निकल 
अपने देवता को
उसी की किस्मत पर
छोड़ आये !!! 

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---- प्रकाश गोविन्द 

यह फ़िल्म की कहानी नहीं हकीकत है



पिता डकैत, लेकिन बेटा पुलिस या सेना में, पिता कानून के खिलाफ काम करता है, लेकिन बेटा कानून की रक्षा की कसम खाता है ऐसे वाकये आपने अब तक फिल्मों में ही देखे होंगे। लेकिन ये कहानी हकीकत बनती दिखाई दी


मेरठ में एक ऐसे शख्स ने दरोगा की भर्ती परीक्षा पास की है, जिसके पिता को कुख्यात डकैत के रुप में जाना जाता था । 80 के दशक में चंबल के बीहड़ों में आतंक मचाने वाले डकैत छविराम सिंह को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। और इतने सालों बाद छवि राम सिंह के बेटे अजयपाल सिंह ने दरोगा के रूप में देशसेवा की कसम खाई। खास बात ये है कि अजय को शपथ दिलाने वाले अफसर उसी एनकाउंटर टीम का हिस्सा थे, जिसने डकैत छवि राम सिंह को ढेर किया था।


अजयपाल को ये सारी हकीकत मालूम है, उसका कहना है कि मुझे अपने पिता पर गर्व है, मेरे पिता ने कभी महिलाओं से या बच्चों से लूटपाट नहीं की न उन्हें तंग किया। महिलाओं से गहने भी नहीं उतरवाते थे, मैं टीचर या वकील बनना चाहता था, लेकिन मैनपुरी के एक एसएसपी ने मेरी लगन देखकर मुझे पुलिस में भर्ती कराया।

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The End 

फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ प्रतिक्रियाएं
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Praveen Chauhan : 
अनुकरणीय … युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए. 
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Prathvipal Singh :
परिस्थितियोँ को दिल से समझने वाले हमेशा जीत हासिल करते है ..परिस्थितियाँ इंसान को कब कहाँ कैसे मुकाम दे ...  
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Ajeet Yadav :
बस इसी तरह के बदलाव से भारत आधुनिक बन पायेगा, जहां किसी भी व्यक्ति को उसकी खुद की क्षमताओं एवं कर्मों से आंका जाएगा ना की उसके पूर्वजों के कर्मों से.  
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शिशिर जैन :  
बहुत अच्छे बदलाव के संकेत हैं ... 
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Firdaus Khan :
बदलाव की ये बयार हमेशा यूं ही बहती रहनी चाहिए...   
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Goldy Sadh : 
bahut sukhad anubhuti hui jaankar ki desh me aise yuwa aaj bhi hain.... 
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Arshad Iqbal :
Kaash ! Hamare Desh men Har Yuwa ki Soch aur Samajh is Tarah ki Ho jaaye...  
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कलीम अव्वल :
ये ख़बर पढी थी / फ़िल्मी कहानी जैसी ही है / लेकिन / एक सुखद सच्चाई / अजय पाल की हिम्मत की तारीफ़ की जानी चाहिए /कि/ एक पंकिल अतीत के साथ जीते हुए भी यहां तक पहुचे / बहुत-बहुत बधाई / और खूब आगे बढ़ें .  
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Jyoti Prakash Verma :  
bahut accha hai bhayi.....jaruri nahi ki apradhi ka beta apradhi hi bane.....inko to samman jarur milna chahiye jinhone apne pariwarik mahaul se oopar uthkar samaaj ke liye kuchh karne ka jajba man me rakh kar force me shaamil hote hain..... 
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Faqir Jay :
भारतीय समाज में ये बदलाव बड़ा खुशनुमा है   
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Ashutosh Pandey : 
गोविन्द जी यह समाचार मैंने भी पढ़ा अखबार में ...अजयपाल को बधाई ...उसके पिता छविराम सतयुग के डकैत थे जिन पर शायद आज की कलियुगी पुलिस की छवि तो दूर छाया भी नहीं रही हो सकती है ....ऊपरवाला चाहे सबको सतयुगी डकैत भले ही बना दे परन्तु कलियुगी पुलिस से जरूर बचाए जिसकी साख से पूरा देश वाकिफ है कहीं-कहीं तो साक्षात् यमराज ...... थोड़ा लिखा बहुत समझिएगा ... जय जय सतयुगी की 
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पवन कुमार जैन :
बहुत उम्दा शुरुआत ज़िंदगी की .... 1980 में छविराम से एक बार मेरी मुलाकात गुरसहायगंज में एक शादी के दौरान हुई थी .. जब वह लड़की को आशीर्वाद देने आए थे ...  
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रमा शंकर शुक्ल :
Waah Ajay Pal, tujhe salaam.  
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Krishna Pandey :  
Hats off... Yeah Badalate Jeevan Ki Tasveer hai Aur Ek Suruaat bhi....  
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Wasim Akram Tyagi :
सलाम इस मेरठी छोरे को ... 
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