नवीनतम से नवीनतम विज्ञान का अविष्कार भी धर्म की हजारों वर्ष पुरानी किताब में पहले से दर्ज है !
आगे भविष्य में भी जितने अविष्कार होंगे वो सब भी इन्ही धार्मिक ग्रंथों के हवाले से होंगे !
मुझे तो लगता है हमारे धर्म ग्रंथों का सबसे ज्यादा अध्ययन अमेरिका, जापान, फ्रांस वालों ने ही किया है ....
उन्होंने वहीँ से सब चोरी कर लिया !
परमाणु बम क्या कद्दू .... हमारे यहाँ तो ब्रह्मास्त्र था
विमान और राकेट गए तेल लेने ...हमारे यहाँ तो पुष्पक था
फोन..मोबाईल तो कुछ नहीं ...हम तो परकाया प्रवेश में भी माहिर थे
अमेरिका वाले मंगल जा रहे हैं ...हुंह ..
हमारे ऋषि-मुनि तो मंगल की मिटटी का रंग तक बता चुके हैं
एलोपेथिक बकवास है ..... आयुर्वेद का लोहा तो दुनिया मान चुकी है
आत्म मुग्धता के नशे से कब बाहर निकलेंगे ?
कभी भारत विश्व गुरु रहा होगा ...
सवाल है कि -
"आज भारत क्या है ?"
आगे भविष्य में भी जितने अविष्कार होंगे वो सब भी इन्ही धार्मिक ग्रंथों के हवाले से होंगे !
मुझे तो लगता है हमारे धर्म ग्रंथों का सबसे ज्यादा अध्ययन अमेरिका, जापान, फ्रांस वालों ने ही किया है ....
उन्होंने वहीँ से सब चोरी कर लिया !
परमाणु बम क्या कद्दू .... हमारे यहाँ तो ब्रह्मास्त्र था
विमान और राकेट गए तेल लेने ...हमारे यहाँ तो पुष्पक था
फोन..मोबाईल तो कुछ नहीं ...हम तो परकाया प्रवेश में भी माहिर थे
अमेरिका वाले मंगल जा रहे हैं ...हुंह ..
हमारे ऋषि-मुनि तो मंगल की मिटटी का रंग तक बता चुके हैं
एलोपेथिक बकवास है ..... आयुर्वेद का लोहा तो दुनिया मान चुकी है
आत्म मुग्धता के नशे से कब बाहर निकलेंगे ?
कभी भारत विश्व गुरु रहा होगा ...
सवाल है कि -
"आज भारत क्या है ?"
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-- प्रकाश गोविन्द
फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
Pankaj Mohan Sharma :
Ab to duniya hamara GHOTALASHSTRA padh rahi hai.
Ranjan Yadav :--------------------------------------------------------------------------------------------------
नीचे की पंक्ति अति सुन्दर- 'भारत विश्व गुरु रहा होगा ...आज भारत क्या है?'
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pracheen samay men Swiss Bank nahin tha isliye desh ki pragati desh mein samavisht thi. ab kuchh logon ki pragati aur desh ka vinaash hai
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हमें वो इतिहास पढ़ाया जाता है जो हमें शर्मसार करे. और हम अपने अतित पर गर्व करना चाहते है. हम वर्तमान को बनानें में असफल रहे तो अपने अतित को वर्तमान से ज्यादा अच्छा बताते हैं. इसकी जड़ में यही है.
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Aaj bharat corruption men sab se aage hai.
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Shah Nawaz :
आप इसे आत्म मुग्धता कह सकते हैं मगर यह सत्य है, हालाँकि ज़रूरत अब और भी आगे देखने की है। मगर क्या अपने गौरवशाली इतिहास को भुला देना चाहिए ?
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Prakash Govind :
Shah Nawaz Bhayi हमें अपने अतीत पर ... अपने पूर्वजों पर निश्चित ही गर्व होना चाहिए ... लेकिन उनके इतिहास का ताबीज गले में लटकाने का बजाय उससे प्रेरणा लेनी चाहिए ... उससे सबक लेना चाहिए ... उसे आधार बनाकर आगे बढना चाहिए ... अतीत का ढोल बजाने से क्या होगा ?
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Sandeep Gupta :
shah nawaz ji itihas nahi bhulana hai yaad rakhna hai. aur bhavishya ki traf dekhna hai.
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Suryakumar Pandey :
maithili sharan gupt ne bharat bharti me iska vistar se varnan kiya hai.
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Danda Lakhnavi :
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पाखंडों से दोस्ती, सदाचर से........हेट। चार ग्राम युग-धर्म का, कई कुंतलों पेट॥ ============= --------------------------------------------------------------------------------------------------
Brajesh Rana :
हिन्दुस्तान में वेद तो हैं ही नहीं. अँगरेज़ चुरा कर ले गए नहीं तो हम नंबर एक होते. 1197 से 1757 तक क्या कर रहे थे?
पूरे भारत वर्ष में गुरुकुल थे और शिक्षा की अपूर्व व्यवस्था थी. सब अंग्रेजों ने बर्बाद कर दी. Macauley की औलादों ने.
गांधारी अफगनिस्तान से, बाली और सुग्रीव और हनुमान इंडोनेशिया से, हिडिम्बा मणिपुर से. अपनी तो सिर्फ द्रौपदी हे.
1197 से 1757 तक कुछ नहीं कर पाए और दोष देते हैं अंग्रेजों को. ये तो औरंगजेब में ही खुश रह सकते हैं.
कोई दीक्षित साहिब हैं कहते थे की दातुन करनी चाहिए नीम के पेड़ की. अगर हिन्दुस्तानियों ने बात मान ली तो एक नीम का पेड़ नहीं बचेगा. पूरे सवा सौ करोड़ हैं अब तो.
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Shivendra Sinha :
अभी खोज चल रही है / जिस दिन भी पारस पत्थर मिल गया हम अमेरिका, जापान और फ्रांस को जेब में रख के घूमेंगे.
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Syed Khalid Mahfooz :
भविष्य को भूल कर, वर्तमान की चिंता छोड़, अतीत पर गर्व ... हमें कुएं का मेंढक बना देता है...
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Prabhu Heda :
ये तो कुछ भी नहीं साहब विश्व की प्रथम फायर प्रूफ लेडी भारत से थी जिसका नाम होलिका था, पहले पत्रकार नारद तो विश्व ही क्या समस्त ग्रहों की सनसनीखेज न्यूज़ टेलीकास्ट कर सकते थे, "संजय" के पास तो ऐसा सैटलाइट था की वो महाभारत का आँखों देखा हाल 3डी में देख और दिखा सकते थे, यही नहीं मेडिकल साइंस तो इससे भी आगे था अब गणपति का ही उधाहरण ले लो! दादागिरी भी हमसे ही सीखी है सबने. शनिदेव का आतंक आज भी हर शनिवार को उसके चेले दिखा जाते है !
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Anupam Parihar :
अच्छी बहस है .... वर्तमान जब पीड़ित होता है तो अतीत की सांसें लेता है ....कुछ दिन तो चलेगा.
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Shiv Shambhu Sharma :
आत्म मुग्ध हो तब तो बाहर निकले मुदा हम आत्मुग्ध भी नही है और आज का भारत क्या है यह बता पाना सहज नही रहा ... वैसे यह सच है जब दुनियां के और लोग आदिमानव थे तब यहां यज्ञ की समिधा दी जाती थी। ’ब्रम्ह सत्य जगतमिथ्या’ के सिद्धांत से न माया मिली न राम और हम नकलची आलसी बन कर रह गये जबकि आज जो नये आविष्कार परक सुविधाए हम भोग रहे है वह भी उन लोगो के परिश्रम का फ़ल है जो हमारे यज्ञ समिधा के समय आदिमानव थे।
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Govind Singh Parmar :
भाई, आपकी बात अपनी जगह सही है, लेकिन जापान अमेरिका के लोग तब कुछ नहीं जानते थे जब हम नालंदा विश्वविद्यालय जैसा संस्थान चलाते थे, चीन, ईरान, भारत सबसे महत्वपूर्ण देश हुआ करते थे, आज विश्व व्यापार में हमारा हिस्सा केवल एक प्रतिशत है जो 1000 में 30 और 1500 सन में 25 प्रतिशत था, हां हम पिछले चार सौ सालो में बहुत पिछड़े है !
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Nitish K Singh :
Bade bade bhavishya apne me khone ki wajah se itihas men vileen ho gye... Intezar kijiye ek aur itihas ka.
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Diwakar Mishra :
Ham bhi bahut haisiyat rakhte the, keval dharm aur darshan men hi nahi, duniyavi cheezon men bhi... hazzaron saalon ki gulami ne bahut pichhaad diya hai.. jaisa ki uupar govind ji ne bataya.. us gulami ke jamane me bhi duniya ka ek chauthai vyapar hamare kabje me tha... Macauley ne hamare confidence ko khatam karne ka jo safal prayas kiya hai, us se yah aatma-mugdhata ka nasha hi bahar nikal kar la sakta hai... jarurat hai ki ise nashe ke roop men nahi, balki davayi ke roop me prayog kiya jaaye.
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Huma Kanpuri :
हम क्या थे, आचार्य चतुरसेन का 'सोना और ख़ून' पढ़कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अपना उपहास न किया जाए, ताकि औरों को भी बोलने का अवसर मिले।
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Prakash Govind :
Huma Kanpuri Ji आचार्य चतुरसेन जी को खूब पढ़ा है ... ऐतिहासिक कहानियों को लिखने में उनका कोई मुकाबला नहीं !
सवाल ये है कि मान लीजिये हमारे परदादा नामी-गरामी पहलवान थे ... तो उनकी क्रेडिट पर हम दूसरों पर कब तक जलवा गांठते रहेंगे ? उपहास तो हम स्वयं अपना बना रहे हैं !
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राजीव तनेजा :
वर्तमान में जीने के बजाय हम भूतकाल में जीते हैं....हर नई तकनीक चाहे वो मोबाईल हो या फिर कंप्यूटर ... हम दुसरे देशों की तरफ ताकते हैं लेकिन फिर भी पुरानी बातों को याद कर ... इण्डिया इज बैस्ट का नारा लगाते रहेंगे !
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Sunil Mishra Journalist :
Bharat aaj bhi Bharat hai....log jaisa bana rahe hain...waisa ban raha hai.....
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दिनेशराय द्विवेदी :
हमें नशे में जीने की आदत है।
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Alok Khare :
Khush hote raho ! is par tax nahi lagta ! kehte raho hamaare chacha Jameedaar--Soobedaar the ! usse kya ? tum to saale driver ho ! usko jaano bas ! kaun kya tha usme kya rakha hai ? aur kab talk dhol peet-te rahoge wo bhi aisa jiski khaal na jaane kab ki fat chuki hai ! sahi kaha bhai ji! are theek he ham rahe honge vishva guru ! to kya uski pension aaj tak khaate rahoge khaali-peeli.
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Prakash Govind :
आलोक भाई ... दहशत तो तब होती है जब कोई प्रकांड पंडित अपनी बात मनवाने के लिए भारी भरकम संस्कृत के श्लोक बोलने लगता है ... तब मुंडी ऊपर-नीचे हिलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता :-)
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Ssd Agrawal :
आपकी बात सही है परन्तु हमारी तकनीकी लिपिबद्ध न होने की वजह से कहानी किस्से बन कर रह गयी है । बहुत पीछे न जा कर मुगल शासन काल की ही बात करे उस समय जो तकनीकी थी वो विश्व मे प्रख्यात थी परन्तु आज विलुप्त हो गयी क्यूँ की हम सब अपनी विरासत को आगली पीढ़ी तक नहीं बढ़ा पाये ।
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Diwakar Mishra :
इस पोस्ट पर बहुत कमेंट आए, और बहस चली । पर इतने सारे विमर्श से क्या किसी का मत बदला? यहाँ दो पक्षों के कमेंट आते रहे हैं । और जब उनके कमेंट दुबारा आते हैं तो लगता है कि उनका मत अब भी उसी ओर ही नहीं बल्कि उसी जगह पर है । आखिर क्यों लम्बी चर्चा के बाद भी किसी के मत में (अक्सर) विकास या परिवर्तन नहीं होता । कारण कि अधिकतर की प्रवृत्ति सुनने की नहीं सुनाने की होती है, सीखने की नहीं सिखाने की होती है, सीखने को चेला बनना और सिखाने को गुरु बनने के रूप में देखते हैं और गुरु बनना चाहते हैं । क्या कोई ऐसा है जिसका मत ऊपर की चर्चा पढ़कर बदला हो? यदि हो तो कृपया बताएँ ।
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Prakash Govind :
Diwakar Mishra Ji आपकी प्रतिक्रया अच्छी लगी ! आभार !! .......
फेसबुक सहज अभिव्यक्ति का एक माध्यम है ! यहाँ गुरु-चेला बनाने जैसी कोई बात नहीं ! हम सभी यहाँ एक-दुसरे से ही काफी कुछ सीखते हैं ! जहाँ तक मत या विचार बदलने की बात है तो वो एक ऐसी प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे ही होती है ! मन के भीतर जमी परतों को खुरच के अलग करना इतना आसान नहीं होता ! अभी तो सिर्फ इतना ही बहुत है कि हम एक-दूसरे को सुनें ... समझें और अभिव्यक्ति का सम्मान करें ! --------------------------------------------------------------------------------------------------
आनंद शर्मा :
Vivek Shrivastava Aap se poorn sahmati .. puraani uplabdhiyaa prerak ho sakti hain ... par unke bharose vartmaan men sirf deenge haanknaa katayi theek nahi.
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Prakash Govind :
हम विकास का अंतर इस बात से लगा सकते हैं कि जब यहाँ तुलसीदास जी रामायण की चौपाईयां रच रहे थे तब यूरोप में कैमरे का आविष्कार अंतिम पड़ाव पर था !
आप इतिहास उठा के देखिये हमने हर प्रगति और परिवर्तन का जमकर विरोध किया ! लेकिन हुआ क्या ? सारे परिवर्तन होकर ही रहे बस विरोधों और उदासीनता के कारण गति धीमी रही ! जब रेलगाड़ी आई तो तहलका मच गया ... लोग छाती पीटने लगे कि इससे तो हिन्दुस्तान बर्बाद हो जाएगा ... देश के सारे पशु - गाय-बैल-बकरी कट के मर जायेंगे ! आस-पास के मकान गिर जायेंगे ! गर्भवती महिलाओं पर बहुत घातक असर पड़ेगा ... जाने-जाने क्या-क्या बातें और विरोध ! कैमरा आया तो लोगों ने अफवाह फैला दी कि इससे तस्वीर मत उतारने देना ...शरीर की ताकत ख़त्म हो जायेगी ! घरों में नल लगने शुरू हुए तो लोगों ने भगा दिया ..... ये पानी कौन पिएगा ... जाने कितने कितने दिन का बासी पानी ...सब अशुद्ध हो जायेंगे ! ... इसी तरह चाय का विरोध ...चीनी का विरोध ...अंग्रेजी दवाईयों का विरोध ... टीवी का विरोध ... हर चीज का विरोध किया ! विरोध, नकारात्मकता और परिवर्तन से घबराना हमारा मूल स्वभाव ही है ! आपको याद है न ? जब कंप्यूटर आया था तो पूरे देश ने कैसा विरोध किया था ... सब बेरोजगार हो जायेंगे .. हाय दादा अब क्या होगा ! आज क्या स्थिति है बताईये ? कंप्यूटर के बिना हम स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहते ! --------------------------------------------------------------------------------------------------
शैलेश गुप्ता :
लेकिन आज के इस विकसित साइंस और सनातन विज्ञान में एक मूल भूत फर्क था और वो की हमारे यहाँ जो कुछ भी तकनीक विकसित की गई थी वो पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखती थी परन्तु आधुनिक विज्ञानं में वो बात नहीं .....
और पूर्ण सहमत हु आप की इस बात से भी की समय पूर्वजो के विकास से आत्म मुग्ध होने का नहीं बल्कि उन से सीख और प्रेरणा ले कर आगे बढ़ने का है !
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Mumtaz Aziz Naza :
wo chidiya, jis ko sone ke lalach ne noch noch kar itna zakhmi kar diya hai ke wo tadap tadap kar cheekh rahi hai, phir bhi us par kisi ko taras nahi aa raha
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जितेन्द्र जौहर :
यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है, इसे हवा में नहीं उड़ाया जा सकता...!
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