तरक्की
*******
बाबा रखते थे कदम
ड्योढ़ी के भीतर खांसकर
चाचियाँ बाहर निकलतीं
सर पे पल्लू ढांपकर
देखिये इस बार पीढ़ी
क्या तरक्की कर गई
अब चुने जाते हैं शौहर
कुछ दिनों तक जांचकर !
================================
लड़कपन
********
लड़कपन में तुझे छूकर
कुछ ऐसा मुस्कराया था
कि जैसे जमाने भर के
मैं कंचे जीत लाया था !!
================================
माहौल
******
कुछ ऐसी शै मिलाइए
नफरत के खेल में
इंसान प्यार करने लगे
'होल-सेल' में !!!
================================
--------------
-- प्रकाश गोविन्द
---------------