सोमवार, जुलाई 29, 2013

यह फ़िल्म की कहानी नहीं हकीकत है



पिता डकैत, लेकिन बेटा पुलिस या सेना में, पिता कानून के खिलाफ काम करता है, लेकिन बेटा कानून की रक्षा की कसम खाता है ऐसे वाकये आपने अब तक फिल्मों में ही देखे होंगे। लेकिन ये कहानी हकीकत बनती दिखाई दी


मेरठ में एक ऐसे शख्स ने दरोगा की भर्ती परीक्षा पास की है, जिसके पिता को कुख्यात डकैत के रुप में जाना जाता था । 80 के दशक में चंबल के बीहड़ों में आतंक मचाने वाले डकैत छविराम सिंह को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। और इतने सालों बाद छवि राम सिंह के बेटे अजयपाल सिंह ने दरोगा के रूप में देशसेवा की कसम खाई। खास बात ये है कि अजय को शपथ दिलाने वाले अफसर उसी एनकाउंटर टीम का हिस्सा थे, जिसने डकैत छवि राम सिंह को ढेर किया था।


अजयपाल को ये सारी हकीकत मालूम है, उसका कहना है कि मुझे अपने पिता पर गर्व है, मेरे पिता ने कभी महिलाओं से या बच्चों से लूटपाट नहीं की न उन्हें तंग किया। महिलाओं से गहने भी नहीं उतरवाते थे, मैं टीचर या वकील बनना चाहता था, लेकिन मैनपुरी के एक एसएसपी ने मेरी लगन देखकर मुझे पुलिस में भर्ती कराया।

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The End 

फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ प्रतिक्रियाएं
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Praveen Chauhan : 
अनुकरणीय … युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए. 
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Prathvipal Singh :
परिस्थितियोँ को दिल से समझने वाले हमेशा जीत हासिल करते है ..परिस्थितियाँ इंसान को कब कहाँ कैसे मुकाम दे ...  
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Ajeet Yadav :
बस इसी तरह के बदलाव से भारत आधुनिक बन पायेगा, जहां किसी भी व्यक्ति को उसकी खुद की क्षमताओं एवं कर्मों से आंका जाएगा ना की उसके पूर्वजों के कर्मों से.  
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शिशिर जैन :  
बहुत अच्छे बदलाव के संकेत हैं ... 
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Firdaus Khan :
बदलाव की ये बयार हमेशा यूं ही बहती रहनी चाहिए...   
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Goldy Sadh : 
bahut sukhad anubhuti hui jaankar ki desh me aise yuwa aaj bhi hain.... 
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Arshad Iqbal :
Kaash ! Hamare Desh men Har Yuwa ki Soch aur Samajh is Tarah ki Ho jaaye...  
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कलीम अव्वल :
ये ख़बर पढी थी / फ़िल्मी कहानी जैसी ही है / लेकिन / एक सुखद सच्चाई / अजय पाल की हिम्मत की तारीफ़ की जानी चाहिए /कि/ एक पंकिल अतीत के साथ जीते हुए भी यहां तक पहुचे / बहुत-बहुत बधाई / और खूब आगे बढ़ें .  
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Jyoti Prakash Verma :  
bahut accha hai bhayi.....jaruri nahi ki apradhi ka beta apradhi hi bane.....inko to samman jarur milna chahiye jinhone apne pariwarik mahaul se oopar uthkar samaaj ke liye kuchh karne ka jajba man me rakh kar force me shaamil hote hain..... 
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Faqir Jay :
भारतीय समाज में ये बदलाव बड़ा खुशनुमा है   
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Ashutosh Pandey : 
गोविन्द जी यह समाचार मैंने भी पढ़ा अखबार में ...अजयपाल को बधाई ...उसके पिता छविराम सतयुग के डकैत थे जिन पर शायद आज की कलियुगी पुलिस की छवि तो दूर छाया भी नहीं रही हो सकती है ....ऊपरवाला चाहे सबको सतयुगी डकैत भले ही बना दे परन्तु कलियुगी पुलिस से जरूर बचाए जिसकी साख से पूरा देश वाकिफ है कहीं-कहीं तो साक्षात् यमराज ...... थोड़ा लिखा बहुत समझिएगा ... जय जय सतयुगी की 
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पवन कुमार जैन :
बहुत उम्दा शुरुआत ज़िंदगी की .... 1980 में छविराम से एक बार मेरी मुलाकात गुरसहायगंज में एक शादी के दौरान हुई थी .. जब वह लड़की को आशीर्वाद देने आए थे ...  
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रमा शंकर शुक्ल :
Waah Ajay Pal, tujhe salaam.  
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Krishna Pandey :  
Hats off... Yeah Badalate Jeevan Ki Tasveer hai Aur Ek Suruaat bhi....  
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Wasim Akram Tyagi :
सलाम इस मेरठी छोरे को ... 
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पांच पतियों वाली कलयुग की द्रोपदी

पुरुष मानसिकता वाले समाज में आप यह खबर पढ़कर चौंक जाएंगे कि एक महिला के पांच पति और सभी के सभी आपस में सगे भाई हैं। यह परिवार आपस में काफी खुश है और मिल-जुलकर रहता है।

राजो और उसके पहले पति गुड्डू की शादी चार साल पूर्व हिंदू रीति-रिवाजों के साथ हुई थी। इसके बाद राजो ने अन्य भाइयों बैजू [32 साल], संत राम [28 साल], गोपाल [26 साल] और दिनेश [19 साल] के साथ विवाह किया। दिनेश के 18 साल के होने पर उसने अपना पांचवां ब्याह रचाया। 21 साल की राजो वर्मा को यह नहीं मालूम कि 18 महीने के उसके बेटे का बाप पांच पतियों में से कौन हैं।

सदियों पहले प्राचीन भारत में कई जगहों पर बहुपति प्रथा कायम थी लेकिन आज केवल एक अल्पसंख्यक समाज में ही यह परंपरा है। इस परंपरा के पीछे यह माना जाता है कि इससे परिवार में जमीनों का बंटवारा नहीं होगा और परिवार आपस में एकजुट बने रहेंगे।

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The End 
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
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Manish Gupta : 
वैसे भी अगर ये समाज बेटियों का दुश्मन बना रहा तो एक दिन हर जगह ये आम बात होगी।
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Markandey Pandey :
पोलीगेमी का समय आ रहा है जिसप्रकार से सेक्‍स रेशियों कम हो रहा है। 
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Neeraj Jat :
किन्नौर, जौनसार और तिब्बत में यह प्रथा पहले बडे पैमाने पर थी... अब खत्म होने लगी है।
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Pooja Jaiswar :  
kuchh scheduled tribes me abhi bhi hota hai. 
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Preetam Thakur :
ऐसे रिवाज किनौर हिमाचल में भी है   
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नैनी ग्रोवर : 
हाँ ऐसे गाँव आज भी हैं .. हिमाचल में भी जहाँ यह प्रथा अब भी है पिछले दिनों डिस्कवरी पर 1 घंटे की स्टोरी दी थी 
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Gyasu Shaikh :
is purush maansikta mein bhugatna stree ko hi padta hai ! yahan uska sir aur sirf istemaal hi hota hai...  
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Shiv Shambhu Sharma :
महाभारत के बाद यह प्रथा यदा कदा पंजाब व राजस्थान के कुछ ग्रामीण अंचलों के हिस्सों में यह प्रथा कमोवेश आज भी सुनने को मिलता है इसका प्रधान कारण खेतो का बंट्वारा होने पर की असुरक्षा की भावना और लडकियो की संख्या पुरूषों के बनिस्पत कम होना और संयुक्त परिवार के स्थायित्व की भावना का होना है बहरहाल यह एक कुप्रथा है एक स्त्री की मानसिक और शारीरिक उपभोक्तावाद की शर्मनाक स्थिति है ।  
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Deepak Sharma :  
so sad. kisi stree ka paanch paanch log milkar soshan kare toh yeh pratha kaisi ? yeh sab dekh kar lagta hai ki hum ab bhi sabse peechhe hain. na koi kaanun, na koi vyvastha. lagta hain ki bharat ki sarkar hi illiterate hai jo public ko apne hisaab se haankti hai. 
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Shiv Shambhu Sharma :
यह प्रथा इसलिये कहा गया है क्योकि इसे वह गांव समाज परिवार ही स्वीकार नही करता अपितु वह स्त्री (अनपढ) जो यह सहन करती है उसकी भी सहमति होती है ।
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Deepak Sharma : 
Shiv Shambhu bhayi agar koi stree 'love marriage' karna chahe toh yeh samaj usko pata nahi kya kya gaali deta hai. jabki wahan wo ek insaan ko apna jeevan saathi banana chahti hai aur yaha samaaj kya kar raha hai ?
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Shiv Shambhu Sharma :
@Deepak Sharma jee भाइ यह हमारे समाज की विभिन्नताओं से भरी जातिगत जटिल रूढिगत सामाजिक सोच को पालने और पुरोहितवाद के कारण है वैसे शास्त्रो मे गंधर्व विवाह आदि का प्रावधान है लेकिन वे तब के पुरोहित थे ये अब के।  
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Avdhesh Nigam :
कुन्ती अगर अपने पाँच पुत्रों के लिए पाँच औरतें लातीं तो वे पाँचों उन्हें नोच नोच कर खा जातीं | पाँचों पुत्रों को बांधकर रखने का नायब तरीका खोजा था कुन्ती ने|  और इसे "कुन्ती विवाह " का नाम दिया जाना चाहिए| अगर यह व्यवस्था कुन्ती ने न की होती तो पांडव कभी खोया हुआ राज्य एवं वैभव पुनः प्राप्त नहीं कर पाते| 
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Ashutosh Pandey :  
इस प्रकार की व्यवस्था का इतिहास जिस भी कारणवश व जैसी भी स्थितिवश रहा हो परन्तु आज नई सदी में विकासशील भारत सरकार को मंथन कर इस जैसी स्तिथि का भविष्य निर्धारण अवश्य ही करना चाहिए 
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Chandrashekher Giri :
तीन तस्वीरें हैं, तीनो मे जितने भी सदस्य हैं खुश दिखाई दे रहे हैं ……… फ़िर क्या समस्या है। ओवर थिंकर परेशान रहते हैं और दूसरो को भी परेशान करते हैं।   
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Ahmad Kamal Siddiqui : 
अगर प्यार मुहब्बत बना रहे और घर ना टूटे तो क्या बुरा है ..... 
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Danda Lakhnavi :
भारत में बहु-पत्नीवाद और बहु-पतिवाद दोनों व्यवस्थाएं रही हैं| शास्त्रों में इसे जायज ठहराया गया है| प्राय: राजतंत्र में चल-अचल सभी प्रकार की सम्पत्तियों का स्वामी राजा होता था| उसका स्वामित्व स्त्री-पुरुषों की देह पर भी रहा करता था| वह विवेकानुसार अपने अधीन संपत्तियों का भोग करता था| कई-कई क्षेत्र में ऐसी परंपरा देखने में आई है कि प्रजावर्ग के किसी पुरुष की शादी होने पर वर के घर जाने के पूर्व वधू को ..... एक रात राजा के घर पर बिताना होता था| इस प्रथा के भय से प्राय: माता-पिता ... अपने पाल्यों का बालविवाह कर दिया करते थे| हिंदू-कोड बिल में डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने नारियों से संबंधित इस प्रकार की अनेक समस्याओं का समाधान सुझाया था.... जो उनके जीवन काल में पारित नहीं हो सका| बाद में टुकडों-टुकडों में उसे अबतक पारित करने की कवायद चल रही है 
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Archna Upadhyay :
स्त्री को सम्पति मानने वाली किसी भी परम्परा का हम समर्थन नहीं कर सकते !  
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Puneet Bisaria :  
हिमाचल प्रदेश के के कुछ इलाकों, उत्तराखंड और पंजाब में ये परंपरा है। आदिवासी और पिछड़ा समाज की संपत्ति न बंटे, इसलिए ऐसा करता है। 
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Danda Lakhnavi  :
@ Archna Upadhyay जी! हमारे धार्मिक ग्रंथ स्त्रियों को संपत्ति मानते हैं... उनमें संशोधन नहीं हुआ है ... भारतीय संविधान आपको मौलिक अधिकार देता है ...   
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Archna Upadhyay : 
ऐसे धार्मिक ग्रन्थों को हम नहीं मानते, और स्त्रीयों के नौ रूप इन्ही ग्रन्थों में हैं, माँ का रूप सर्वोपरी है. 
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Reetesh Khare :
पर चलिए यह समाचार बहुत ही सुखद है ... और आम समाज के हिसाब से बहुत ही ख़ास :-)   यहाँ मौजूद तमाम विचारों को पढ़ के विचारों के चक्षु कुछ और खुले...काफी जनों ने बाकायदा रोष और विरोध प्रकट किया है इस अनेक पतित्व के उदाहरण के प्रति. चूंकि बहुतायत में नारियों का शोषण तो निः संदेह हुआ होगा और आज भी हो रहा है... इसलिए आम फहम तो इसे कुरीति का दर्जा ही मिलेगा. पर इस परिवार विशेष के उदाहरण के अंतर्गत मैं पुनः इसे सुखद समाचार ही मानना चाहूँगा. 
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Pramod Kumar :
जहाँ निश्छल प्यार हो वहां कुछ भी संभव है। जहाँ प्यार में स्वार्थ और अपेक्षाएं छुपी हों वहां परिवार का कोई रिश्ता सफल नहीं हो सकता।  
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Danda Lakhnavi  :  
@ Pramod Kumar जी! समस्या प्यार-मोहब्बत तक नहीं है ... यह बाद में होने वाली संतानों के भरण-पोषण की है| माता पिता के न रहने पर उत्तरदायित्व के निर्वाह की है 
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Pramod Kumar :
Dear Danda Lakhnavi Ji. लोग तो आज कुत्तों बिल्लियों को पाल लेते हैं शायद इंसान में उन्हें सच्चा प्यार नहीं दिखता .........। ऐसा कैसे हो सकता है की पाँचों माँ बाप न रहें । यहाँ तो माँ बाप के ज्यादा options हैं । मैं किसी परंपरा या रीती की पैरवी या वकालत नहीं कर रहा बल्कि निश्चल स्नेह की ओर इशारा कर रहा हूँ ।   
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Satish Diwan : 
Aisi parampara ko jaayaz thahrana aaj ke samaaj me kahin bhi uchit nahi lagta, jis aarthik aur ek jut-ta ko uddeshy bana kar aap ise pyar mohabbat ki misaal bata rahe hain, ye to agyanta aur mahabharat ke yug ki baaten hain, abhi 21wi sadi men aisi parampara nazayaj hai... 
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Aradhana Chaturvedi :
ये आश्चर्य की बात नहीं है. मुझे बहुत पहले से पता है कि हिमाचल के कुछ अंचलों में 'बहुपति' प्रथा आज भी कायम है.  
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योगेन्द्र राणा :
है ये प्रथा अब भी कुछ एरिया में है अगर कहा जाये तो ये यहाँ पर शिक्षा के अभाव के कारण है ... अधिकतर पहाड़ो के एरिया में ये प्रथा आप को मेलेगी.   
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Vishesh Jain :  
ye har lihaaz se bahut hi ghatiya parampara thi, hai aur rahegi. Aurat ko iss tarah paanch pusrushon mein, prasaad ki tarah baant dena, naa sirf aurat ke vyaktitva apitu uske sampoorna jeevan par ek gehra prahaar hai. Aurat ko itna nirarthak aur shoonya-astitava ka jaama, shayad aisi hi vikrut paurush-maansikta ka nateeja hai. 
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Avnish Pandey :
कन्या हत्या इसी तरह होती रही तो यह मजबूरी हो जायेगी.  
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Vishal Shah : 
Save Girl child or be ready for similar future!!! 
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रमा शंकर शुक्ल :
arey gajab bhaiya. us mahila ke sath sabhi purushon ko badhayi, jinhone samaaj ki visangatiyon ko kinare kar prem aur soojh-boojh ki anupam misaal di. ham unke sath hain.  
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Rekha Srivastava :
koyi bhi samaaj ho aisi pratha na naari ke liye uchit hai aur na hi usake aane waali santaan ke liye. us stree ke bare men koyi doosara nahin soch sakata hai. phir jo hamari manasikata ladakiyon ke prati chal rahi hai (han abhi bhi badali nahin hai) us se bhavishya men sab mil-jul kar nahin rahenge balki ek ladaki ke liye hatyaayen hongi aur tab bhi kisi kee patni surakshit na rahegi.  
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Prakash Govind :  
रेखा जी आपसे सहमत हूँ ... आगे चलकर ढेरों समस्याएं उत्पन्न होंगी ... इनमें आपस में ही संघर्ष होगा .. मार-काट होगी ...ऐसे परिवार से उत्पन्न संतानों को समाज कभी सम्मान नहीं देगा ... वे कुंठाओं में जियेंगे .. ! सरकार को तत्काल इस कुप्रथा पे रोक लगानी चाहिए ! 
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Tarif Daral :
यह प्रथा उत्तरकाशी क्षेत्र के गावों में प्रचलित है।   
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Joshu Nishant :  
Bahupati pratha Himachal Pradesh ke kuchh ilakon mein dekhne ko milti hai.. 
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Govind Singh Parmar :
अटपटा जरूर लगा, लेकिन लडको और लडकियों का अनुपात 1000:900 हो गया है कुछ सालो बाद ये 1000 पर 200 भी पहुचेगा, तब यही विकल्प होगा, मै इसे बहुत बुरा नहीं मानता, मेरी समझ में इसमें महिला उपभोग की वस्तु न होकर पुरुष है और ऐसी स्थितिओ में महिला कभी दबकर नहीं रह सकती, मुझे तो ये सुखद लगा   
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Sunil Mishra Journalist :  
samajik asuraksha ke chalte...ku-pratha janm leti hai....ladkiyon ka ghat-ta anupaat bhi wajah aur isake pichhe bhi samaj hai.....U.P, West aur Hariyana men pratha jinda hai...aapne achchhi reporting ki hai... 
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Rosey Insan :
what the hell is this ????? aaj-kal ke time men aisa bhi hota hai. its strange   
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Ratan Singh Bhagatpura :  
यदि कन्या भ्रूण हत्याएं रुकी नहीं और बढती रही तो ऐसे दृश्य अल्पसंख्यक समाज में ही नहीं सभी समाजों की जरुरत बन जायेंगे !! 
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Mohammed Tarique Azmi :
kisi ek samaaj ko alpasankhyak ka darja kaise de sakte hain ? ye pratha galat thi hai aur rahegi. jahan tak kunti ki baat hai bhagwaan jane kya sahee kya galat bin byaahe karn ko janm de diya aur fenk diya .. aarop bechare soorya par laga diya ki aakar bachcha dekar chale gaye......   
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Malik Rajkumar :  
Dehradoon ke paas 'Lahkaa Mandal' men yah prathaa aaj bhi hai bhayi. 
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Mukesh Kain :
कमाल है गोविन्द जी, जब आज के जमाने में एक आदमी अनेक की तरफ भागता है, ये अनेक एक से संतुष्ट है ... धन्य है ये सच्चे पत्नी व्रता है !   
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रामकिशोर पवार बैतूल :  
शर्मसार कर देने वाली घटना है। समझ के बाहर की बात है कि यह स्वेच्छीक है या बलपूर्वक लेकिन इस कार्य की निंदा की जाए या फिर उस नारी का सम्मान समझ के बाहर की बात है। अगर हम इसकी निंदा करते है तो फिर हमें द्रोप्रदी की भी निंदा करनी चाहिए ..! 
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Jogeshwar Garg  :
देश में कन्या भ्रूण हत्या जारी रही और कन्याओं की संख्या ऐसे ही घटती रही तो ...........   
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Vandana Awasthi Dubey :  
ये प्रथा राजस्थान के एक इलाके में अभी भी प्रचलित है, जहां एक भाई की शादी होने पर बहू बाकी भाइयों की पत्नी स्वत: ही हो जाती है वो भाई पांच साल का ही क्यों न हो. हमारे देश के तमाम प्रांत आदिवासी बहुल हैं. ये हिस्से इतने अन्दर हैं, कि वहां पहुंच रास्ते तक अभी ठीक से निर्मित नहीं हुए हैं. इन हिस्सों में ये परम्पराएं अपने मूल रूप में विद्यमान हैं. मसलन बस्तर, अबूझमाड़, छोटा नागपुर विदर्भ और राजस्थान के कई हिस्से. 
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Brajesh Rana :
ladke aur ladki ka anupaat 1000:814 hai. ye hi halaat rahe to ye sthiti kaheen bhee ho saktee hai. Haryana is importing girls from other poor states or Bengal and Odesha.   
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Prakash Govind  :  
अगर 1000 लड़कों की तुलना में 814 लड़कियां हैं तो दस करोड़ लड़कों पर आठ करोड़ चौदह लाख लड़कियां हुयीं .... इस तरह एक करोड़ छियासी लाख लड़कों का क्या होगा ???? बहुत डराने वाला आंकड़ा है. एक करोड़ छियासी लाख तो सिर्फ दस करोड़ पर है .... देश की आबादी तो एक सौ पच्चीस करोड़ है ..... बारह करोड़ से ज्यादा युवकों का सोचिये
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क्या सचमुच दुखुराम अपराधी है ?

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समाचार-पत्र में छपी एक खबर पर 
नज़र पड़ी तो मैं सोच में पड़ गया !!
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जाँजगीर ( छतीसगढ़ ) चांपा जिले के बिर्रा गाँव में रहने वाले दुखुराम का अपने भाइयों के साथ ज़मीन जायदाद सम्बंधित एक मुकदमा लगभग छः साल से चल रहा है | मुक़दमे की पेशियों से परेशान दुखुराम को उम्मीद थी कि इस बार उसके मामले में सुनवाई हो जाएगी | मुक़दमे की पेशी पर अदालत में पहुंचे दुखुराम यादव को जब लगा कि इस बार भी सुनवाई नहीं होगी और अगली तारीख मिलेगी तो उसने अपनी जेब से सौ सौ रुपये के तीन नोट निकाल कर जज की ओर बढ़ा दिये | उसने जज से अनुरोध किया कि वे पैसे ले लें और सुनवाई कर दें | 


भरी अदालत में रिश्वत की इस पेशकश से जज और दुखुराम यादव के वकील सहित सभी लोग भौंचक रह गये | जज के निर्देश पर फ़ौरन पुलिस को बुलाया गया और रिश्वत देने के मामले पर दुखुराम यादव को गिरफ्तार कर लिया गया | मामला रिश्वत की पेशकश का था इसलिए जज की शिकायत पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 8 और 12 के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया | 

पत्रकारों से बातचीत में दुखुराम ने सरलता से जवाब दिया "मुझे गाँव में बताया गया था कि पेशी पर पैसे देने पड़ते है तभी सुनवाई होती है | बहुत उम्मीद के साथ मैंने जज साहब को पैसे दिये थे, लेकिन उन्होंने नहीं लिये' 

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कोई मुझे बताए कि :-
क्या सचमुच दुखुराम अपराधी और सजा पाने के योग्य है ?
क्या उसने जो कुछ अदालत में कहा और किया वह असत्य था ?
क्या वादी ज़िंदगी भर मुक़दमे की पड़ती तारीखों पर अदालत का
चक्कर लगाते रहने के लिये बाध्य और अभिशप्त है ?
किसके पास है उत्तर इन प्रश्नों का ?
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ चुनिन्दा टिप्पणियां
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Syed Khalid Mahfooz : 
"Justice Delayed Justice Denied"..... 
कोई जवाब नहीं है ... होंठो पर सिर्फ सवाल है .
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Chandrashekher Giri :
व्यवस्था पर सवाल तो बहुत से हैं …पर क्रान्तिकारी बदलाव लाये कौन…लकीर के फ़कीर बनना मज़बूरी सा बन गया है । 
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Ajeet Yadav :
Judicial system ke corruption ko rokane ke liye judicial accountability jaroori hai. Delay in judgement must be punished. If a higher court reverts any decision of a lower court there must be a system of punishing the lower court judge for bad/wrong decision. Power without accountability is the root cause of corruption in Judicial system.  Judge, imaandaar to tab maana jaata jab Dukhuram ke case me sunwaai puri kar usi din decision de deta. ek puraani kahaawat hai : 'aadami jab thaana-kachehari jaata hai to samjho usake bure din aa gaye haiN', aaz bhi yah satya hai.
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Govind Singh Parmar  :  
इस व्यवस्था के सामने इतने नंगेपन से ही काम चलेगा.
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Sangita Puri  :
बहुत बुरा हाल है व्‍यवस्‍था का .. आम आदमी करे भी तो क्‍या?  
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Raj Bhatia : 
जज को दिखाई नही देता कि यह छोटा सा मामला इतना लमबा केसे चल रहा हे ? मेरे विचार मे दुखु राम निर्दोष हे....
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स्वप्निल जैन :
300 रुपए कम हैं - जज को अपमान महसूस हुआ --- दुखुराम को फांसी दो 
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Ravindra Singh :
in the presence of judges their staff collect bribe and the judges closes their eyes because more than fifty precent of the total collection goes to the dining table of judges via kitchen... and it is very easy to shoot on cameras... 
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पवन कुमार जैन  :  
जज साहब ने अपनी खिसियाहट उतारी है .. वरना 98 प्रतिशत जज आज इस तरह से धन लेने में संलिप्त हैं .. उनके सामने ही उनका स्टाफ पैसे लेता है .. वह पीठ पीछे लेते हैं .. दुखुराम सीधा आदमी था उसे पीछे से देने के बारे में ज्ञान नहीं था ...
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राजीव तनेजा :
माना कि जज रिश्वतखोर होते हैं लेकिन ऐसे...सरेआम?....सबके सामने?....कतई नहीं...कदापि नहीं....और फिर क्या इतने बुरे दिन आ गए हैं हमारे यहाँ के न्याधीशों के कि तीन-तीन सौ रूपए पे अपना ईमान बेचते फिरे?....उसे कम से कम माननीय(?) जज साहब के रुतबे...उनकी हैसियत ...उनकी पोजीशन का ख्याल तो रखा ही चाहिए था.  
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सुनील अनुरागी : 
दुखुराम को किसी ने ये बात नहीं बताई रिश्वत छुपाकर या परदे के पीछे से दी जाती है.छुपाकर दोगे तो यहाँ पीएम भी रिश्वत लेने को तैयार है. काम भी हो जाएगा और मुकदमा भी नहीं चलेगा.
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Sambhu Singh  :
जज का जो चरित्र ऊसे गाव मे बताया गया था ऊसने वैसा किया, जज तो समझदार थे, उन्हे तो उसकी परेशानी समझ कर कारबाई पे ध्यान देना चाहिए था। 
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Ravi Gahlot :
Nahi wah gunehgar nhi balki voh to nadan or sidha saada insan hai. Us men agar thodi bhi chalaaki hoti to kya wo is tarah sab ke samney judge sahab ko paise dene ki gustakhi krta 'nahi' kabhi bhi nahi. usko to sirf insaf chahiye tha jo usko itney lambey arsey se nahi mila tha. Or ha asli gunehgar to wo log hain jo paise ki khatir apna dil imaan bech dete hain, or fir insaaf jaldi de dete hain. Arey jo log apna "dil,imaan" bech chukey hain aise log kya kisi ko insaaf de payengey or kya kisi ke huq main faisla dengey, jo paisa dega insaf to usi ko milega. 
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Vishvatosh Pandey :  
Agar Nyayadheesh hi vyakti ki manodasha samajhane me chook karenge to nyaay ki umeed bhi dhoomil hone ke kagar pe pahunch jayegi.
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कवि दीपक दीप :
ab Sach bolne pe bhi saja...  aur Jhooth bolne ki bhi saja...  hame sab saja de do... lakin... is anyaay ko hata do..  ya to le lo..  ya fir lena dena band karo..  ek aam admi ke jeevan ka sach....
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Dr.Anil Gupta : 
aaj ka samay jou desh ka chal raha hai yah iska marmik chitran hai.
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दिनेशराय द्विवेदी :
यह हमारी न्याय व्यवस्था की विडम्बना है। यह रिश्वत का मामला भी नहीं है। यह तो न्याय व्यवस्था में जो देरी की जा रही है उस का प्रतिरोध मात्र है लेकिन साथ ही वर्तमान सत्ता को चुनौती भी है। यह प्रदर्शित करता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक ढकोसला है। न्याय व्यवस्था पूरी तरह सत्ता के नियंत्रण में है। सत्ता कभी भी न्याय पालिका को इतनी सुविधा प्रदान नहीं करती कि वह पर्याप्त संख्या में इतने न्यायालय स्थापित कर सके जिस से लोगों को प्रत्येक मामले में एक दो वर्ष में न्याय प्रदान किया जा सके। अब जब सत्ता को चुनौती दी गई है तो सत्ता दंड तो देगी। उस का सामना भी करना पड़ेगा। सत्ता को चुनौती एक व्यक्ति जब भी देता है तो उस की यही स्थिति होती है। यदि इस व्यक्ति को दंड मिलता है तो यह सत्ता को एक व्यक्ति द्वारा दी गई चुनौती की सजा होगी।  

I think this type of Judges are not human beings. They born as human but the system changed them in mechanical devices.
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Mangleshwer Sharma :
ये सभी भ्रष्टाचारी बद हैं... बदनाम नहीं (क्योंकि आरोप साबित नहीं हुआ)... और बद को कोई सजा नहीं.. बदनाम को है. करोड़ों डकारने वाले शान से कहते हैं की हम इमानदार हैं, और कोर्ट उनका कुछ नहीं बिगाड्पाती.. पर केवल 10 पैसे की हेराफेरी में एक कोर्ट ने एक पोस्टमास्टर को 6 महीने की सजा और नोकरी से निकाला दे दिया... भाई ये तो अंधेर नगरी और चोपट राजा है... टेक सेर भाजी और टेक सेर खाजा है.... 
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Abhinav Pandey :  
एक तो भ्रष्टाचार, उस पर कोढ़ मेँ खाज ये न्याय व्यवस्था.... ये घटना निस्संदेह सोचने को बाध्य करती है. . . अगर बाप ने रिश्वत नहीँ दी और उसको फँसा दिया गया तो जीवन भर केस लड़ने के बाद भी अंत समय बाप की बेग़ुनाही साबित करने बेटे का 'पेशी' पर जाना क्या न्यायसंगत और तर्कसंगत है?? दुखराम की ग़लती तो है और वो ये कि वो भोला है और ग़रीब है। अगर तमाम तरह के हरे, पीले, लाल पत्तोँ वाले क़ानून जानता तो कब का निकल भागता अपने सच को साबित करके या अपने झूठ को ज़मानता दिलवाकर. . . . . . यहाँ इलाहाबाद मेँ, रोज़ाना सैकड़ोँ मुवक़्क़िल, वादी दिख जाएँगे जिनकी हालत मुवक़्क़िल जैसी कम और शादी के दिन लड़की के बाप जैसी ज़्यादा लगती है....
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Gopal Sharma :
प्रकाश जी, इस घटना के बारे में जानता हूँ क्योकि जहाँ मै (कोरबा) रहता हूँ उससे से कुछ ही दूरी पर जांजगीर है .जज साहब के सामने बैठ कर खुले आम बाबू पैसे लेते है, सच मे कानून अँधा है और छत्तीसगढ़ मै तो तरक्की बहुत हुए है पर न्याय पालिका घ्वस्त हो गयी है जग्गी हत्या कांड और बिनायक सेन प्रकरण सब को मालूम है  
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रमा शंकर शुक्ल : 
एक घटनाक्रम को लेकर समूची न्याय प्रणाली और भारतीय सिस्टम पर प्रकाश जी की चिंता को चलताऊ नहीं कहा जा सकता. दर-असल भारत का हर दफ्तर इसी मानसिकता में संचालित है. एक घटनाक्रम बता रहा हूँ - 

मेरे विद्यालय के प्रभारी प्रबंधक सिटी मजिस्ट्रेट दया शंकर पाण्डेय आवास विकास प्राधिकरण के बड़ें सचिव थे. मैंने अपने मकान का मैप दो माह बीत जाने के बाद भी जब पास होना नहीं पाया तो सीधे पाण्डेय जी के दफ्तर में घुस गया. यह जानते हुए भी कि ये महाशय मुझे सस्पेंड भी कर सकते हैं. मैंने उनसे अपना परिचय देने के बाद सीधा सवाल किया "जानने आया हूँ कि क्या 5000 रुपये न देने पर मेरे घर का नक्सा नहीं पास होगा?" उन्होंने पूछा कि यह किसने आपसे कहा? मैंने बिना किसी संकोच के बताया कि "आपका सिस्टम. आप हमें केवल यह बताएं कि मेरी फ़ाइल किस आधार पर दो माह से रोकी गई है. जब जे.एई. ने पोजिटिव रिपोर्ट लगा दी तो आपने उसे क्यों नहीं फाइनल किया. आपके नीचले अधिकारी कहते हैं कि साहब को 5000 देना होता है." पाण्डेय जी ने झेपते हुए कहा कि यह तो गलत कह रहे हैं लोग. अरे घर-मकान बनाते समय लोग अपनी ख़ुशी से दे देते हैं." मै चकित था. एक मजिस्ट्रेट का यह बयान हजम नहीं हो रहा था. मैंने फिर पूछा, मान्यवर एक बात पूछूं. "आप धोबी, नाऊ, पंडित, कोहार हैं क्या कि लोग आपको नहछू नहावन के नाम पर 5000 खुश होकर दे देंगे. इस सवाल का उत्तर उनके पास न था. उन्होंने तत्काल मेरी फ़ाइल मंगाकर हस्ताक्षर कर दिया." 

मै काफी कुछ कह चूका था. आगे विवाद बढ़ता, इसलिए चला आया, लेकिन सवाल तो जस का तस खड़ा हा कि जिसमे इतना साह्स न हो, उसके काम का क्या होगा? दूसरा यह कि सिस्टम के हिसाब से निचले स्टार से यदि फ़ाइल पूरी है तो उसे खुद-ब-खुद उच्चाधिकारी के पास पहुँच जाना चाहिए. पर किस व्यवस्था के तहत वे ही फाइलें उच्चाधिकारी के पास भेजी जाती हैं, जिसे सिर्फ तभी भेजा जायेगा, जब उच्चाधिकारी मंगाएगा. अंदरखाने से पता चला कि निचले स्तर के कर्मचारी से उच्चाधिकारी पूछते हैं कि कितनी फाइलों का पैसा मिला है. जिनका मिल गया हो, उनकी फाइलें लेकर आओ. 

अब यदि किसान ने भरी अदालत में जज को पैसा देना चाह तो क्या बुरा किया. यदि वह ऐसा न करता तो शायद हम और आप इस घटना से अवगत न होते. वह किसान बधाई का पात्र है. हमें भी इस तरह के कार्य करने होंगे. कम से कम वहां के सिस्टम पर चर्चा तो शुरू होगी. उन अधिकारियों को लज्जित तो होना पड़ेगा.
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Hari Shankar Pandey :
व्यवस्था में व्यापक रूप से कमी है? आम आदमी करे तो क्या करे ? 
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Avinash Bhardwaj :
कानून की धाराओं के अनुसार दुखुराम बेशक अपराधी है. क्योंकि कानून अँधा होता है और वो फैसला केवल सबूतों के आधार पर देता है. लेकिन दुखुराम की गैरआपराधिक मंशा और मासूमियत के मद्देनज़र उसे माफ़ किया जा सकता है. 
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Ranju Bhatia :  
sacche kisse aaj ke kisse .. har jagah prakashit hote hain . ham padhte hain aur fir wahi sab ..........andhe goonge aur bahre ho jaate hain ...
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Narendra Singh Tomar Nst :
दुखुराम दोषी नहीं है .... तारीख बढ़वाने के लिये भरी व खुली अदालत में ऐसी पेशकश पर रिश्वत देने का आरोप नहीं बनता .... दुखुराम को छुड़वाया जाना चाहिये .... अलबत्ता अदालत की अवमानना करने का यानि अपमान करने का केस बन सकता है ... वह भी तब जब दुखुराम का कोई दुराशय साबित हो ...  

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Aditi Chauhan : 
Dukhuram seedha sada aadmi tha...usko to jaisa logon ne bataya us bechare ne kiya. iski saza bas itni honi chahiye ki us se wahin kaan pakad ke uthak baithak karwa lete.
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Shail Agrawal :
aakhri tinke pe aas lagaye baitha tha, Use kya pata tha ki Yahi chubhega. 
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दिनेशराय द्विवेदी :
सजा मिलनी चाहिए उन राजनेताओँ को जो पर्याप्त अदालतों की व्यवस्था नहीं करते। लेकिन जज उन का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते। 
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Dinesh Aggarwal :  
सब जानते हैं कि न्याय बिकता है तथा जज राजनीति से प्रभावित होते हैं अन्यथा अब तक आधे से अधिक नेता जेलों में होते एवं राजाओं, कनिमोझियों, कलमाड़ियों की जमानत न होती। स्टाम्ट घोटाले में शरद जी जेल में होते। चारे में लालू जी, कोयले में आधे काँग्रेसी, बीजेपी के नैता जेल में होते। किस किस न नाम लूँ लगभग सभी बड़े एवं ऊँचे कद के नेता जेल में होते।
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