रविवार, जुलाई 28, 2013

बाजार/रिश्तेदारी/उम्मीद (तीन कवितायें )

बाजार
बाजार ही बाजार
हर शहर में
सामान से भरे हुए
चीजें ही चीजें दुकानों में
सारी ही चीजें
उस आदमी के वास्ते
जो नंगा-नंगा पैदा हुआ था !
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रिश्तेदारी
रिश्तेदारी भी टेलीफोन है आज 
सिक्के डालो तो बात होती है !!
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उम्मीद
 यहाँ रोटी नहीं, उम्मीद सबको जिन्दा रखती है
जो सड़कों पर भी सोते हैं सरहाने ख्वाब रखते हैं !
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-- प्रकाश गोविन्द 
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शनिवार, जुलाई 27, 2013

ईश्वर / मनुष्य / प्रकृति (तीन कवितायें )

ईश्वर
उसकी आँखें खुली समझ
उसके लिए एक नारियल फोड़ दो
एक बकरा काट दो,
उसकी आँखें बंद समझ
डंडी मार लो, बलात्कार कर लो
या गला रेत दो आदमी का
एक बड़ी सुविधा है ईश्वर !
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मनुष्य
'जब बहुमत नहीं
बहुसंख्य प्रकट होगा
व्यक्ति ताकतवर नहीं
भीड़ होगा तो,
जिस भी विजय यात्रा की
सवारी निकलेगी उस पर
चाहे देवता बैठा दो या राक्षस
उस सवारी को पत्थर ही ढोएंगे
मनुष्य लापता हो चुका होगा' !
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प्रकृति  
जल से बना होता है बादल 
जल देता है, 
फल से बना होता है वृक्ष 
फल देता है, 
ऊर्जा से बना होता है सूर्य 
प्रकाश देता है, 
किस चीज से बना होता है आदमी 
यह तय होना अभी बाकी है !
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-- प्रकाश गोविन्द 
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शुक्रवार, जुलाई 26, 2013

जाकिर नाइक की जाहिलाना बातें


"आपने कितना भी बड़ा गुनाह किया हो ... चोरी की, डाका डाला, बलात्कार किया है और आप खुदा पर ईमान ले आते हैं और इस्लाम कबूल करते हैं तो आपके सारे गुनाह माफ़ ! ज़न्नत सिर्फ एक कलमा पढ़कर जाया जा सकता है" 
---- जाकिर नाइक 
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एक अरसे से इस जाकिर नाइक की उल जुलूल बातें सुनता रहता हूँ … 
कम से कम मैं तो इस बन्दे को निहायत जाहिल मानता हूँ … 
हमेशा बे-सिर-पैर की तर्कहीन बातें करने वाले जाकिर नाइक को कैसे लाखों मुसलमान झेलते हैं … 
मेरे लिए ये बहुत ही ताज्जुब की बात है ! 

मेरे एक मित्र हैं जो जाकिर नाइक को विद्वान मानते हैं … 
आप लोग भी कभी इसको सुनिए और बताईये कि 
ये नफरत और ज़हालत की बात करने वाला कौन सी विद्वता की बात कहता है ?

जिस तरह की ये बातें करता है वो खुद इस्लाम के लिए ही घातक हैं ! 
आतंकवाद का असली कारखाना ऐसे ही जाहिल धर्म गुरु हैं !

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The End
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--प्रकाश गोविन्द 
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तरक्की / लड़कपन / माहौल (क्षणिकाएं)

तरक्की 
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बाबा रखते थे कदम
ड्योढ़ी के भीतर खांसकर
चाचियाँ बाहर निकलतीं
सर पे पल्लू ढांपकर
देखिये इस बार पीढ़ी
क्या तरक्की कर गई
अब चुने जाते हैं शौहर
कुछ दिनों तक जांचकर !

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लड़कपन
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लड़कपन में तुझे छूकर 
कुछ ऐसा मुस्कराया था 
कि जैसे जमाने भर के 
मैं कंचे जीत लाया था !!
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माहौल 
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कुछ ऐसी शै मिलाइए 
नफरत के खेल में 
इंसान प्यार करने लगे 
'होल-सेल' में !!!
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-- प्रकाश गोविन्द 
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गुरुवार, जुलाई 25, 2013

माँ का वजूद / कोई नहीं (कवितायें)

माँ का वजूद
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मैं माँ की बरसी पर 
फूलों को कैसे उठाऊंगा 
हाथों में फूल नहीं 
माँ का वजूद होगा !!
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कोई नहीं 
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दोस्त तो बहुत हैं पर
बुखार में तपते जिस्म के 
सिरहाने बैठ कर 
"मैं हूँ न"
कहने वाला कोई नहीं !

एक समोसे पे दिन गुजारते देख कर
हेल्थ पर लेक्चर देने वाले बहुत हैं पर
टिफिन में मेरी खातिर
एक एक्स्ट्रा पराठा और आचार
लाने वाला कोई नहीं !

सुबह-शाम
देश, समाज, धर्म, संस्कृति,
की दुहाई देने वाले तो तमाम हैं
पर स्नेह भरी आँखों से
"मेरी खातिर" कहने वाला कोई नहीं !

जीवन दर्शन-आस्था-आस्तिकता पर
घंटों ज्ञान पिलाने वाले बहुत हैं
पर जीने की एक वाजिब वजह
दे देने वाला कोई नहीं !

हाँ.... 
मेरे पास दोस्त तो बहुत हैं
पर .......
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-- प्रकाश गोविन्द 
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