एक बार बांग्लादेश का शातिर डाकू महमूद-उर-रहमान अपने देश की पुलिस से बचता-बचाता हुए बॉर्डर तक आया और उसके बाद आराम से टहलता हुआ भारत की सीमा में घुस गया ! यहाँ भी रोज कहीं न कहीं लूट-पाट, राहजनी, चोरी ! जनता में आक्रोश फैल गया …जगह-जगह कैंडल मार्च होने लगे … फेसबुक में आन्दोलन छिड़ गया तब कहीं जाकर सरकार और पुलिस सक्रीय हुई !
आखिरकार एक दिन एक दरोगा लल्लू सिंह ने डाकू महमूद-उर-रहमान को धर दबोचा … लेकिन समस्या ये हुयी कि डाकू को हिंदी नहीं आती थी और दरोगा लल्लू सिंह को बंगलादेशी नहीं आती थी ! दुभाषिया खोजा जाने लगा …. गजोधर भैय्या उधर से गुजर रहे थे … उनको मामला पता लगा तो बोले कि उन्हें बंगलादेशी भाषा आती है …. एक बार बांग्लादेश घूमने गए थे तो मतलब भर की सीख गए थे !
दरोगा लल्लू सिंह ने कहा - "इस डाकू से पूछताछ करनी है … क़ानून की मदद करो"
गजोधर - "हुजूर क़ानून की मदद के लिए तो हम चौबीस घंटा तैयार रहते हैं"
दरोगा लल्लू सिंह - "अच्छा … इससे पूछो कि इसका नाम क्या है ?"
गजोधर ने डाकू से पूछा कि नाम क्या है ?
डाकू : मेरा नाम सलाउद्दीन काजी है !
गजोधर ने दरोगा जी को बताया की ये नाम सलाउद्दीन काजी बता रहा है !
दरोगा जी ने आँखें तरेरीं - "इस से कह दो सीधे-सीधे नाम बता दे वरना डंडा-परेड करूँगा !"
गजोधर ने डाकू को समझाया कि दरोगा जी क्या कह रहे हैं … तो डाकू ने घबराते हुए सब सच उगल दिया !
गजोधर ने दरोगा जी को बताया कि ये अपना नाम महमूद-उर-रहमान बता रहा है !
और यह वही बांग्लादेश का डाकू है जो कई महीनों से डकैती और रहजनी की वारदातें कर रहा है !
दरोगा ने आगे पुछवाया कि लूट का माल सब कहाँ है ?
गजोधर : दरोगा जी पूछ रहे हैं की लूट का सारा माल कहाँ है ?
डाकू : मुझे नहीं मालुम
गजोधर ने दरोगा जी को बताया कि ये कह रहा है इसे नहीं मालुम ! ये सुनकर दरोगा जी गुस्से में आगबबुला होकर बोले - "इस हरामी से कहो कि अभी पिछवाड़े पे डेढ़ सौ लाठी मारेंगे और पेड़ से उलटा लटका के गोली मार देंगे … जो पूछें वो एकदम सही-सही बताये !"
गजोधर : "देख भाई दरोगा जी कह रहे हैं कि अगर तूने नहीं बताया तो तुझे डेढ़ सौ लाठी मारेंगे और पेड़ से उलटा लटका के गोली मार देंगे !"
डाकू : "दरोगा जी से कह दो गोली न मारें । मेरी जान बख्श दें … मैंने लूट का सारा माल मैंने पुराने किले के पीछे जो कुआं है उसमें एक बोरे में बंद करके डाल दिया है … अब मुझे छोड़ दें … मैं वापस बांग्लादेश चला जाऊँगा !"
दरोगा : हाँ गजोधर … इसने लूट के माल के बारे में कुछ बका ?
गजोधर : "हुजूर ये कह रहा है कि इस दरोगा साले की ऐसी की तैसी … इसके जैसे भडुए बहुत देखे हैं … अगर एक ही बाप की औलाद है तो गोली मार के दिखाए …!"
गजोधर ने विनती की : "हुजूर मुझे बच्चे को स्कूल से लाना है .... मुझे देर हो रही है .... मुझे जाने दीजिये ! मैं चलता हूँ … जय हिन्द हुजूर"
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The End
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The End
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लेखक : प्रकाश गोविन्द
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