पुरुष मानसिकता वाले समाज में आप यह खबर पढ़कर चौंक जाएंगे कि एक महिला के पांच पति और सभी के सभी आपस में सगे भाई हैं। यह परिवार आपस में काफी खुश है और मिल-जुलकर रहता है।
राजो और उसके पहले पति गुड्डू की शादी चार साल पूर्व हिंदू रीति-रिवाजों के साथ हुई थी। इसके बाद राजो ने अन्य भाइयों बैजू [32 साल], संत राम [28 साल], गोपाल [26 साल] और दिनेश [19 साल] के साथ विवाह किया। दिनेश के 18 साल के होने पर उसने अपना पांचवां ब्याह रचाया। 21 साल की राजो वर्मा को यह नहीं मालूम कि 18 महीने के उसके बेटे का बाप पांच पतियों में से कौन हैं।
सदियों पहले प्राचीन भारत में कई जगहों पर बहुपति प्रथा कायम थी लेकिन आज केवल एक अल्पसंख्यक समाज में ही यह परंपरा है। इस परंपरा के पीछे यह माना जाता है कि इससे परिवार में जमीनों का बंटवारा नहीं होगा और परिवार आपस में एकजुट बने रहेंगे।
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The End
फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
Manish Gupta :
वैसे भी अगर ये समाज बेटियों का दुश्मन बना रहा तो एक दिन हर जगह ये आम बात होगी।
Markandey Pandey :---------------------------------------------------------------------------------
पोलीगेमी का समय आ रहा है जिसप्रकार से सेक्स रेशियों कम हो रहा है।
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किन्नौर, जौनसार और तिब्बत में यह प्रथा पहले बडे पैमाने पर थी... अब खत्म होने लगी है।
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kuchh scheduled tribes me abhi bhi hota hai.
Preetam Thakur :---------------------------------------------------------------------------------
ऐसे रिवाज किनौर हिमाचल में भी है
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नैनी ग्रोवर :
हाँ ऐसे गाँव आज भी हैं .. हिमाचल में भी जहाँ यह प्रथा अब भी है पिछले दिनों डिस्कवरी पर 1 घंटे की स्टोरी दी थी
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Gyasu Shaikh :
is purush maansikta mein bhugatna stree ko hi padta hai ! yahan uska sir aur sirf istemaal hi hota hai...
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Shiv Shambhu Sharma :
महाभारत के बाद यह प्रथा यदा कदा पंजाब व राजस्थान के कुछ ग्रामीण अंचलों के हिस्सों में यह प्रथा कमोवेश आज भी सुनने को मिलता है इसका प्रधान कारण खेतो का बंट्वारा होने पर की असुरक्षा की भावना और लडकियो की संख्या पुरूषों के बनिस्पत कम होना और संयुक्त परिवार के स्थायित्व की भावना का होना है बहरहाल यह एक कुप्रथा है एक स्त्री की मानसिक और शारीरिक उपभोक्तावाद की शर्मनाक स्थिति है ।
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Deepak Sharma :
so sad. kisi stree ka paanch paanch log milkar soshan kare toh yeh pratha kaisi ? yeh sab dekh kar lagta hai ki hum ab bhi sabse peechhe hain. na koi kaanun, na koi vyvastha. lagta hain ki bharat ki sarkar hi illiterate hai jo public ko apne hisaab se haankti hai.
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Shiv Shambhu Sharma :
यह प्रथा इसलिये कहा गया है क्योकि इसे वह गांव समाज परिवार ही स्वीकार नही करता अपितु वह स्त्री (अनपढ) जो यह सहन करती है उसकी भी सहमति होती है ।
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Deepak Sharma :
Shiv Shambhu bhayi agar koi stree 'love marriage' karna chahe toh yeh samaj usko pata nahi kya kya gaali deta hai. jabki wahan wo ek insaan ko apna jeevan saathi banana chahti hai aur yaha samaaj kya kar raha hai ?
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Shiv Shambhu Sharma :
@Deepak Sharma jee भाइ यह हमारे समाज की विभिन्नताओं से भरी जातिगत जटिल रूढिगत सामाजिक सोच को पालने और पुरोहितवाद के कारण है वैसे शास्त्रो मे गंधर्व विवाह आदि का प्रावधान है लेकिन वे तब के पुरोहित थे ये अब के।
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Avdhesh Nigam :
कुन्ती
अगर अपने
पाँच पुत्रों के लिए
पाँच औरतें लातीं
तो वे पाँचों उन्हें
नोच नोच कर खा जातीं |
पाँचों पुत्रों को
बांधकर रखने का
नायब तरीका
खोजा था कुन्ती ने|
और इसे "कुन्ती विवाह " का नाम दिया जाना चाहिए| अगर यह व्यवस्था कुन्ती ने न की होती तो पांडव कभी खोया हुआ राज्य एवं वैभव पुनः प्राप्त नहीं कर पाते|
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Ashutosh Pandey :
इस प्रकार की व्यवस्था का इतिहास जिस भी कारणवश व जैसी भी स्थितिवश रहा हो परन्तु आज नई सदी में विकासशील भारत सरकार को मंथन कर इस जैसी स्तिथि का भविष्य निर्धारण अवश्य ही करना चाहिए
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Chandrashekher Giri :
तीन तस्वीरें हैं, तीनो मे जितने भी सदस्य हैं खुश दिखाई दे रहे हैं ……… फ़िर क्या समस्या है। ओवर थिंकर परेशान रहते हैं और दूसरो को भी परेशान करते हैं।
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Ahmad Kamal Siddiqui :
अगर प्यार मुहब्बत बना रहे और घर ना टूटे तो क्या बुरा है .....
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Danda Lakhnavi :
भारत में बहु-पत्नीवाद और बहु-पतिवाद दोनों व्यवस्थाएं रही हैं| शास्त्रों में इसे जायज ठहराया गया है| प्राय: राजतंत्र में चल-अचल सभी प्रकार की सम्पत्तियों का स्वामी राजा होता था| उसका स्वामित्व स्त्री-पुरुषों की देह पर भी रहा करता था| वह विवेकानुसार अपने अधीन संपत्तियों का भोग करता था| कई-कई क्षेत्र में ऐसी परंपरा देखने में आई है कि प्रजावर्ग के किसी पुरुष की शादी होने पर वर के घर जाने के पूर्व वधू को ..... एक रात राजा के घर पर बिताना होता था| इस प्रथा के भय से प्राय: माता-पिता ... अपने पाल्यों का बालविवाह कर दिया करते थे| हिंदू-कोड बिल में डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने नारियों से संबंधित इस प्रकार की अनेक समस्याओं का समाधान सुझाया था.... जो उनके जीवन काल में पारित नहीं हो सका| बाद में टुकडों-टुकडों में उसे अबतक पारित करने की कवायद चल रही है
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Archna Upadhyay :
स्त्री को सम्पति मानने वाली किसी भी परम्परा का हम समर्थन नहीं कर सकते !
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Puneet Bisaria :
हिमाचल प्रदेश के के कुछ इलाकों, उत्तराखंड और पंजाब में ये परंपरा है। आदिवासी और पिछड़ा समाज की संपत्ति न बंटे, इसलिए ऐसा करता है।
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Danda Lakhnavi :
@ Archna Upadhyay जी! हमारे धार्मिक ग्रंथ स्त्रियों को संपत्ति मानते हैं... उनमें संशोधन नहीं हुआ है ... भारतीय संविधान आपको मौलिक अधिकार देता है ...
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Archna Upadhyay :
ऐसे धार्मिक ग्रन्थों को हम नहीं मानते, और स्त्रीयों के नौ रूप इन्ही ग्रन्थों में हैं, माँ का रूप सर्वोपरी है.
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Reetesh Khare :
पर चलिए यह समाचार बहुत ही सुखद है ... और आम समाज के हिसाब से बहुत ही ख़ास :-)
यहाँ मौजूद तमाम विचारों को पढ़ के विचारों के चक्षु कुछ और खुले...काफी जनों ने बाकायदा रोष और विरोध प्रकट किया है इस अनेक पतित्व के उदाहरण के प्रति. चूंकि बहुतायत में नारियों का शोषण तो निः संदेह हुआ होगा और आज भी हो रहा है... इसलिए आम फहम तो इसे कुरीति का दर्जा ही मिलेगा. पर इस परिवार विशेष के उदाहरण के अंतर्गत मैं पुनः इसे सुखद समाचार ही मानना चाहूँगा.
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Pramod Kumar :
जहाँ निश्छल प्यार हो वहां कुछ भी संभव है। जहाँ प्यार में स्वार्थ और अपेक्षाएं छुपी हों वहां परिवार का कोई रिश्ता सफल नहीं हो सकता।
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Danda Lakhnavi :
@ Pramod Kumar जी! समस्या प्यार-मोहब्बत तक नहीं है ... यह बाद में होने वाली संतानों के भरण-पोषण की है| माता पिता के न रहने पर उत्तरदायित्व के निर्वाह की है
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Pramod Kumar :
Dear Danda Lakhnavi Ji. लोग तो आज कुत्तों बिल्लियों को पाल लेते हैं शायद इंसान में उन्हें सच्चा प्यार नहीं दिखता .........। ऐसा कैसे हो सकता है की पाँचों माँ बाप न रहें । यहाँ तो माँ बाप के ज्यादा options हैं । मैं किसी परंपरा या रीती की पैरवी या वकालत नहीं कर रहा बल्कि निश्चल स्नेह की ओर इशारा कर रहा हूँ ।
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Satish Diwan :
Aisi parampara ko jaayaz thahrana aaj ke samaaj me kahin bhi uchit nahi lagta, jis aarthik aur ek jut-ta ko uddeshy bana kar aap ise pyar mohabbat ki misaal bata rahe hain, ye to agyanta aur mahabharat ke yug ki baaten hain, abhi 21wi sadi men aisi parampara nazayaj hai...
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Aradhana Chaturvedi :
ये आश्चर्य की बात नहीं है. मुझे बहुत पहले से पता है कि हिमाचल के कुछ अंचलों में 'बहुपति' प्रथा आज भी कायम है.
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योगेन्द्र राणा :
है ये प्रथा अब भी कुछ एरिया में है अगर कहा जाये तो ये यहाँ पर शिक्षा के अभाव के कारण है ... अधिकतर पहाड़ो के एरिया में ये प्रथा आप को मेलेगी.
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Vishesh Jain :
ye har lihaaz se bahut hi ghatiya parampara thi, hai aur rahegi. Aurat ko iss tarah paanch pusrushon mein, prasaad ki tarah baant dena, naa sirf aurat ke vyaktitva apitu uske sampoorna jeevan par ek gehra prahaar hai. Aurat ko itna nirarthak aur shoonya-astitava ka jaama, shayad aisi hi vikrut paurush-maansikta ka nateeja hai.
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Avnish Pandey :
कन्या हत्या इसी तरह होती रही तो यह मजबूरी हो जायेगी.
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Vishal Shah :
Save Girl child or be ready for similar future!!!
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रमा शंकर शुक्ल :
arey gajab bhaiya. us mahila ke sath sabhi purushon ko badhayi, jinhone samaaj ki visangatiyon ko kinare kar prem aur soojh-boojh ki anupam misaal di. ham unke sath hain.
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Rekha Srivastava :
koyi bhi samaaj ho aisi pratha na naari ke liye uchit hai aur na hi usake aane waali santaan ke liye. us stree ke bare men koyi doosara nahin soch sakata hai. phir jo hamari manasikata ladakiyon ke prati chal rahi hai (han abhi bhi badali nahin hai) us se bhavishya men sab mil-jul kar nahin rahenge balki ek ladaki ke liye hatyaayen hongi aur tab bhi kisi kee patni surakshit na rahegi.
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Prakash Govind :
रेखा जी आपसे सहमत हूँ ... आगे चलकर ढेरों समस्याएं उत्पन्न होंगी ... इनमें आपस में ही संघर्ष होगा .. मार-काट होगी ...ऐसे परिवार से उत्पन्न संतानों को समाज कभी सम्मान नहीं देगा ... वे कुंठाओं में जियेंगे .. ! सरकार को तत्काल इस कुप्रथा पे रोक लगानी चाहिए !
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Tarif Daral :
यह प्रथा उत्तरकाशी क्षेत्र के गावों में प्रचलित है।
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Joshu Nishant :
Bahupati pratha Himachal Pradesh ke kuchh ilakon mein dekhne ko milti hai..
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Govind Singh Parmar :
अटपटा जरूर लगा, लेकिन लडको और लडकियों का अनुपात 1000:900 हो गया है कुछ सालो बाद ये 1000 पर 200 भी पहुचेगा, तब यही विकल्प होगा, मै इसे बहुत बुरा नहीं मानता, मेरी समझ में इसमें महिला उपभोग की वस्तु न होकर पुरुष है और ऐसी स्थितिओ में महिला कभी दबकर नहीं रह सकती, मुझे तो ये सुखद लगा
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Sunil Mishra Journalist :
samajik asuraksha ke chalte...ku-pratha janm leti hai....ladkiyon ka ghat-ta anupaat bhi wajah aur isake pichhe bhi samaj hai.....U.P, West aur Hariyana men pratha jinda hai...aapne achchhi reporting ki hai...
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Rosey Insan :
what the hell is this ????? aaj-kal ke time men aisa bhi hota hai. its strange
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Ratan Singh Bhagatpura :
यदि कन्या भ्रूण हत्याएं रुकी नहीं और बढती रही तो ऐसे दृश्य अल्पसंख्यक समाज में ही नहीं सभी समाजों की जरुरत बन जायेंगे !!
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Mohammed Tarique Azmi :
kisi ek samaaj ko alpasankhyak ka darja kaise de sakte hain ? ye pratha galat thi hai aur rahegi. jahan tak kunti ki baat hai bhagwaan jane kya sahee kya galat bin byaahe karn ko janm de diya aur fenk diya .. aarop bechare soorya par laga diya ki aakar bachcha dekar chale gaye......
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Malik Rajkumar :
Dehradoon ke paas 'Lahkaa Mandal' men yah prathaa aaj bhi hai bhayi.
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Mukesh Kain :
कमाल है गोविन्द जी, जब आज के जमाने में एक आदमी अनेक की तरफ भागता है, ये अनेक एक से संतुष्ट है ... धन्य है ये सच्चे पत्नी व्रता है !
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रामकिशोर पवार बैतूल :
शर्मसार कर देने वाली घटना है।
समझ के बाहर की बात है कि यह स्वेच्छीक है या बलपूर्वक लेकिन इस कार्य की निंदा की जाए या फिर उस नारी का सम्मान समझ के बाहर की बात है। अगर हम इसकी निंदा करते है तो फिर हमें द्रोप्रदी की भी निंदा करनी चाहिए ..!
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Jogeshwar Garg :
देश में कन्या भ्रूण हत्या जारी रही और कन्याओं की संख्या ऐसे ही घटती रही तो ...........
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Vandana Awasthi Dubey :
ये प्रथा राजस्थान के एक इलाके में अभी भी प्रचलित है, जहां एक भाई की शादी होने पर बहू बाकी भाइयों की पत्नी स्वत: ही हो जाती है वो भाई पांच साल का ही क्यों न हो.
हमारे देश के तमाम प्रांत आदिवासी बहुल हैं. ये हिस्से इतने अन्दर हैं, कि वहां पहुंच रास्ते तक अभी ठीक से निर्मित नहीं हुए हैं. इन हिस्सों में ये परम्पराएं अपने मूल रूप में विद्यमान हैं. मसलन बस्तर, अबूझमाड़, छोटा नागपुर विदर्भ और राजस्थान के कई हिस्से.
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Brajesh Rana :
ladke aur ladki ka anupaat 1000:814 hai. ye hi halaat rahe to ye sthiti kaheen bhee ho saktee hai.
Haryana is importing girls from other poor states or Bengal and Odesha.
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Prakash Govind :
अगर 1000 लड़कों की तुलना में 814 लड़कियां हैं तो दस करोड़ लड़कों पर आठ करोड़ चौदह लाख लड़कियां हुयीं .... इस तरह एक करोड़ छियासी लाख लड़कों का क्या होगा ???? बहुत डराने वाला आंकड़ा है.
एक करोड़ छियासी लाख तो सिर्फ दस करोड़ पर है .... देश की आबादी तो एक सौ पच्चीस करोड़ है ..... बारह करोड़ से ज्यादा युवकों का सोचिये
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