शुक्रवार, सितंबर 25, 2015

होनहार मंगेतर :-)

एक लड़की अपने होने वाले मंगेतर को अपने मम्मी-पापा से मिलाने के लिए घर लेकर आयी, डिनर के बाद लड़की की माँ ने अपने पति से कहा कि कुछ लड़के के बारे में पता करो!! 
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लड़की के बाप ने लड़के को अकेले में बुलाया और उससे बातचीत करने लगे बाप ने पूछा - 
"तुम्हारा प्लान क्या है ?" 

लड़के ने कहा - "मैं रिसर्च स्कॉलर हूँ !! 

बाप ने कहा - ओह ~~ रिसर्च स्कॉलर ... बहुत अच्छे ! पर तुम मेरी बेटी को एक सुन्दर सा घर कैसे दो पाओगे, जिसकी उसे आदत है ? 

लड़के ने कहा - "मैं पढ़ाई करूँगा, , और भगवान हमारी मदद करेंगे !!" 

और तुम किस तरह उसके लिए सगाई की यादगार अंगूठी खरीदोगे ?

मैं और ज्यादा पढ़ाई करूँगा .. लड़के ने कहा बाकी भगवान हमारी मदद करेंगे !! 

और बच्चे होंगे तब ? बाप ने कहा, उन्हें कैसे पालोगे ? 

चिंता मत कीजिये सर, भगवान कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा !! 
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इसी तरह जितनी बार बाप ने कुछ भी पूछा, तो लड़के ने हर बार कहा कि कोई न कोई रास्ता भगवान निकाल ही लेगा !! 

बाद में लड़की की माँ ने कहा - "ये सब कैसे होगा जी ?" 

बाप ने कहा - "पता नहीं, उसके पास न कोई नौकरी है, न कोई प्लान, न ही जिम्मेदारी का एहसास है ... पर, अच्छी खबर ये है कि वो मुझे भगवान समझ रहा है !" 


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इंजीनियर की समस्या और जाट बुद्धि


तीन-चार इंजीनियर एक टेढ़े मेढ़े पाइप में से तार डालने कि कोशिश कर रहे थे, 
लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहे थे ! एक जाट कई दिन से ये सब देख रहा था 
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पांचवें दिन जाट बोला :-  मै करू साब ?? 
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इंजीनियर ने घूरा और बोला :-  हम पांच दिन से कोशिश कर रहे हैं, हमसे तो हुआ नहीं, 
तू कैसे निकालेगा ? ..... चल तू भी कोशिश कर ले...... 
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जाट बोला :-  ठीक है साब 
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जाट खेत मे गया ,,, एक चूहा पकड़ लाया और उसकी पूँछ मे तार बान्धा ,,, फिर चूहे को 
पाईप मे डाला ...... कुछ देर बाद चूहा दुसरी तरफ से तार के साथ बाहर निकल गया ! 


इंजीनियर अब तक कोमा में है
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बुधवार, सितंबर 09, 2015

मानवता को समर्पित एक शख्स


करीब तीस साल का एक युवक मुंबई के प्रसिद्ध टाटा कैंसर अस्पताल के सामने फुटपाथ पर खड़ा था। युवक वहां अस्पताल की सीढिय़ों पर मौत की दहलीज पर खड़े मरीजों को बड़े ध्यान दे देख रहा था, जिनके चेहरों पर दर्द और विवषता का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था। इन रोगियों के साथ उनके रिश्तेदार भी परेशान थे। 
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वहां मौजूद रोगियों में से अधिकांश दूर दराज के गांवों के थे, जिन्हे यह भी नहीं पता था कि क्या करें, किससे मिले? इन लोगों के पास दवा और भोजन के भी पैसे नहीं थे। टाटा कैंसर अस्पताल के सामने का यह दृश्य देख कर वह तीस साल का युवक भारी मन से घर लौट आया। उसने यह ठान लिया कि इनके लिए कुछ करूंगा। कुछ करने की चाह ने उसे रात-दिन सोने नहीं दिया। अंतत: उसे एक रास्ता सूझा.. 
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उस युवक ने अपने होटल को किराये पर देक्रर कुछ पैसा उठाया। उसने इन पैसों से ठीक टाटा कैंसर अस्पताल के सामने एक भवन लेकर धर्मार्थ कार्य (चेरिटी वर्क) शुरू कर दिया। 
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उसकी यह गतिविधि अब 27 साल पूरे कर चुकी है और नित रोज प्रगति कर रही है। उक्त चेरिटेबिल संस्था कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को निशुल्क भोजन उपलब्ध कराती है। करीब पचास लोगों से शुरू किए गए इस कार्य में संख्या लगातार बढ़ती गई। मरीजों की संख्या बढऩे पर मदद के लिए हाथ भी बढऩे लगे। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम को झेलने के बावजूद यह काम नहीं रूका। 
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यह पुनीत काम करने वाले युवक का नाम था हरकचंद सावला।
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एक काम में सफलता मिलने के बाद हरकचंद सावला जरूरतमंदों को निशुल्क दवा की आपूर्ति शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने मेडिसिन बैंक बनाया है, जिसमें तीन डॉक्टर और तीन फार्मासिस्ट स्वैच्छिक सेवा देते हैं। 
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57 साल की उम्र में भी सावला के उत्साह और ऊर्जा 27 साल पहले जैसी ही है। मानवता के लिए उनके योगदान को नमन करने की जरूरत है। यह विडंबना ही है कि 10 से 12 लाख कैंसर रोगियों को मुफ्त भोजन कराने वाले को कोई जानता तक नहीं। यहां मीडिया की भी भूमिका पर सवाल है, जो सावला जैसे लोगों को नजर अंदाज करती है। 
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यह हमे समझना होगा कि शिरडी में साई मंदिर, तिरुपति बाला जी आदि स्थानों पर लाखों रुपये दान करने से भगवान नहीं मिलेगा। भगवान हमारे आसपास ही रहता है। लेकिन हम बापू, महाराज या बाबा के रूप में विभिन्न स्टाइल देव पुरुष के पीछे पागलों की तरह चल रहे हैं। 
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End
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मंगलवार, सितंबर 08, 2015

जाओ बाबू, दरोगा बन जाओ ... (लघु कथा)

किसी ने उसे बता दिया था, कि "कलेट्टर साब के हियाँ चलजा, सब काम हो जाई"। 
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इसीलिए साहब के दरवाज़े पे बैठी थी। सुबह आठ बजे से बैठे-बैठे दुपहर के दो बज गए थे। सुतली के सहारे टिके चश्मे के भीतर धँसी, तरसती आँखों से उसने जाने कितने ही लोगों को भीतर जाते और बाहर आते देखा था। कम से कम बीसियों बार उसने खुद चपरासी से चिरौरी की थी, कि उसे अन्दर जाने दे। पर सब व्यर्थ गया। उसे यकीन हो चला कि कहीं कोई सुनवाई नहीं। 
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फिर भी आख़िरी बार उसने चपरासी से पूछा - "ए भईया, तनी देख न। साहब खाली भए ?" 
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"नहीं माता जी। साहब अभी खाना खाने गए हैं। अभी समय लगेगा। बैठो। नहीं तो जाओ, कुछ खा-पी के आना।" चपरासी ने उसे टालते हुए कहा। 
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साहब तो बस उठे ही थे जाने के लिए, आवाज़ सुन के बाहर आ गए - "क्या हुआ ? क्या बात है ?" 
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"सर ये बुढ़िया परेशान कर रही थी। अभी-अभी आई है, और, मिलना है-मिलना है चिल्ला रही है।" 
चपरासी ने खुद को बचाते हुए कहा। 
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"कहाँ से आई हो माता जी? अन्दर आ जाओ।" कलेक्टर साहब ने चपरासी को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, और खुद अन्दर चले। 

पीछे-पीछे बुढ़िया और उसके पीछे चपरासी कि कहीं कोई शिकायत ना कर दे बुढ़िया।" 

हम ओह पार से आ रहे हैं भईया।" बुढ़िया ने कहा।" 

यहाँ कब से बैठी हो?" साहब ने पूछा। 

"सर ये तो..." चपरासी ने कुछ सफाई देनी चाही।" 

तुम बाहर जाओ।" साहब की कड़कदार आवाज़ बिजली बन के गिरी, और चपरासी सरपट कमरे से बाहर निकल गया।" 

हाँ माता जी ...बताओ।" साहब ने बड़े ही आदर से पूछा। 
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बस फिर क्या था, अगले कुछ मिनटों में बुढ़िया के शब्दों ने उसकी भावनाओं पे जमी धूल की परतों को खुरच-खुरच के उतार दिया, और बरसों से सीने में दबा दर्द पिघल कर आँखों से बह चला। 
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साहब ने दो-एक फ़ोन किये और एक-आध लोगों को डाँट पिलाई। फ़िर बुढ़िया की तरफ़ मुड़ के बोले - 
"जाओ माता जी। तुम्हारा काम हो गया।" और उठने का उपक्रम किया। 
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बुढ़िया ने साड़ी के कोने की पोटली खोली और दस रुपये के कुछ फटे-पुराने नोट और सिक्के निकाल के कलेक्टर साब को देने लगी।" 

अरे ... ! ये मत किया करो माता जी। जाओ अब। कोई तुम्हे परेशान नहीं करेगा।" 
कहकर कलेक्टर साहब ने अपनी झेंप मिटाने की कोशिश की। 

बुढ़िया को सहसा विश्वास ही नहीं हुआ, उसने कहा - 
"खूब तरक्की करो भईया, बड़े हो जाओ बाबू, दरोगा बन जाओ।" 

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The End
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सऊदी अरब का स्टूडेंट


आस्टेलिया में रहकर पढने वाले सऊदी अरब के स्टूडेंट ने अपने अब्बा जान को मेल किया :- 

"आस्टेलिया बहुत ही सुंदर देश है ... 
और उतने ही सुंदर यहां के लोग ... 
लेकिन मुझे उस समय शर्म आती है, जब मै 20 तोले की सोने की चेन गले में डालकर 
अपनी फरारी से कालेज जाता हूँ... जबकि सभी लोग ट्रेन से कालेज जाते हैं...." 

-- आपका बेटा नसीर 
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..
दूसरे दिन उसे 
अब्बा का मेल मिला :- 

"बेटे अब तुम्हें भी झिझकने या शर्म महसूस करने की जरुरत नही ... 
क्योंकि मैंने तुम्हारे खाते में 20 मिलियन डॉलर डाल दिये हैं.... जाओ तुम भी ट्रेन ले लो....." 

-- तुम्हारा बाप अल हबीबी 
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:-) :-) :-) 
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