शनिवार, सितंबर 26, 2015

प्रोफेशनल भिखारी


कल मुझे एक नौजवान स्टेशन पर मिला। 
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कहने लगा - . "मेरी जेब से पर्स कही गिर गया है, बस मुझे जयपुर पहुंचने तक के पैसे दे दीजिये। 
टिकट 150 रूपये का है। और आगे रेलवे स्टेशन से मैं पैदल अपने घर चला जाऊंगा। बस 150 रूपये 
चाहिये। वैसे मै बहुत संपन्न परिवार से हूँ। मुझे मांगते हुए झिझक महसूस हो रही है।" 
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मैने कहा - 
"इसमे शर्माने वाली कोई बात नहीं है। कभी मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है ... ये लो मेरा फोन अपने घर वालो से बात करो, उनसे कहो कि मेरे इस नबंर पर 200 रूपये का रिचार्ज करवा दें और उसके बाद तुम मुझसे 200 रूपये नकद ले लो। तुम्हारी परेशानी खत्म।" 
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वो व्यक्ति बिना कुछ बोले आगे बढ गया। 



:-) :-) :-)
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शुक्रवार, सितंबर 25, 2015

कैसे-कैसे दिलचस्प साइनबोर्ड :-)


क्या कहा ~~~
नाम में क्या रखा है ?? 
अरे नहीं जनाब 
नाम में ही तो बहुत कुछ रखा है 
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न यकीन हो तो देखिये -

 अरे ~~~ फेसबुक तो फ़ास्ट फ़ूड भी बेचता है
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 इन्फोसिस का नया धांसू बिजनेस
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 डंके की चोट पे धंधा
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 क्या सीखा … घंटा ???
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 गूगल सब्जी भी बेचता है … अपनी आँखों से देख लो
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 ये डॉक्टर का नहीं भाई, रेस्टोरेंट का साइनबोर्ड है
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 हाई-फाई चिकन ले लो
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 नाम में इमानदारी हो तो ऐसी हो
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इतना कठिन विषय है कि 
अलग से इंस्टिट्यूट खोलना पड़ा
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होनहार मंगेतर :-)

एक लड़की अपने होने वाले मंगेतर को अपने मम्मी-पापा से मिलाने के लिए घर लेकर आयी, डिनर के बाद लड़की की माँ ने अपने पति से कहा कि कुछ लड़के के बारे में पता करो!! 
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लड़की के बाप ने लड़के को अकेले में बुलाया और उससे बातचीत करने लगे बाप ने पूछा - 
"तुम्हारा प्लान क्या है ?" 

लड़के ने कहा - "मैं रिसर्च स्कॉलर हूँ !! 

बाप ने कहा - ओह ~~ रिसर्च स्कॉलर ... बहुत अच्छे ! पर तुम मेरी बेटी को एक सुन्दर सा घर कैसे दो पाओगे, जिसकी उसे आदत है ? 

लड़के ने कहा - "मैं पढ़ाई करूँगा, , और भगवान हमारी मदद करेंगे !!" 

और तुम किस तरह उसके लिए सगाई की यादगार अंगूठी खरीदोगे ?

मैं और ज्यादा पढ़ाई करूँगा .. लड़के ने कहा बाकी भगवान हमारी मदद करेंगे !! 

और बच्चे होंगे तब ? बाप ने कहा, उन्हें कैसे पालोगे ? 

चिंता मत कीजिये सर, भगवान कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेगा !! 
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इसी तरह जितनी बार बाप ने कुछ भी पूछा, तो लड़के ने हर बार कहा कि कोई न कोई रास्ता भगवान निकाल ही लेगा !! 

बाद में लड़की की माँ ने कहा - "ये सब कैसे होगा जी ?" 

बाप ने कहा - "पता नहीं, उसके पास न कोई नौकरी है, न कोई प्लान, न ही जिम्मेदारी का एहसास है ... पर, अच्छी खबर ये है कि वो मुझे भगवान समझ रहा है !" 


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:-)  :-)  :-) 
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इंजीनियर की समस्या और जाट बुद्धि


तीन-चार इंजीनियर एक टेढ़े मेढ़े पाइप में से तार डालने कि कोशिश कर रहे थे, 
लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहे थे ! एक जाट कई दिन से ये सब देख रहा था 
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पांचवें दिन जाट बोला :-  मै करू साब ?? 
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इंजीनियर ने घूरा और बोला :-  हम पांच दिन से कोशिश कर रहे हैं, हमसे तो हुआ नहीं, 
तू कैसे निकालेगा ? ..... चल तू भी कोशिश कर ले...... 
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जाट बोला :-  ठीक है साब 
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जाट खेत मे गया ,,, एक चूहा पकड़ लाया और उसकी पूँछ मे तार बान्धा ,,, फिर चूहे को 
पाईप मे डाला ...... कुछ देर बाद चूहा दुसरी तरफ से तार के साथ बाहर निकल गया ! 


इंजीनियर अब तक कोमा में है
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:-) :-) :-) 
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बुधवार, सितंबर 09, 2015

मानवता को समर्पित एक शख्स


करीब तीस साल का एक युवक मुंबई के प्रसिद्ध टाटा कैंसर अस्पताल के सामने फुटपाथ पर खड़ा था। युवक वहां अस्पताल की सीढिय़ों पर मौत की दहलीज पर खड़े मरीजों को बड़े ध्यान दे देख रहा था, जिनके चेहरों पर दर्द और विवषता का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था। इन रोगियों के साथ उनके रिश्तेदार भी परेशान थे। 
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वहां मौजूद रोगियों में से अधिकांश दूर दराज के गांवों के थे, जिन्हे यह भी नहीं पता था कि क्या करें, किससे मिले? इन लोगों के पास दवा और भोजन के भी पैसे नहीं थे। टाटा कैंसर अस्पताल के सामने का यह दृश्य देख कर वह तीस साल का युवक भारी मन से घर लौट आया। उसने यह ठान लिया कि इनके लिए कुछ करूंगा। कुछ करने की चाह ने उसे रात-दिन सोने नहीं दिया। अंतत: उसे एक रास्ता सूझा.. 
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उस युवक ने अपने होटल को किराये पर देक्रर कुछ पैसा उठाया। उसने इन पैसों से ठीक टाटा कैंसर अस्पताल के सामने एक भवन लेकर धर्मार्थ कार्य (चेरिटी वर्क) शुरू कर दिया। 
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उसकी यह गतिविधि अब 27 साल पूरे कर चुकी है और नित रोज प्रगति कर रही है। उक्त चेरिटेबिल संस्था कैंसर रोगियों और उनके रिश्तेदारों को निशुल्क भोजन उपलब्ध कराती है। करीब पचास लोगों से शुरू किए गए इस कार्य में संख्या लगातार बढ़ती गई। मरीजों की संख्या बढऩे पर मदद के लिए हाथ भी बढऩे लगे। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम को झेलने के बावजूद यह काम नहीं रूका। 
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यह पुनीत काम करने वाले युवक का नाम था हरकचंद सावला।
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एक काम में सफलता मिलने के बाद हरकचंद सावला जरूरतमंदों को निशुल्क दवा की आपूर्ति शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने मेडिसिन बैंक बनाया है, जिसमें तीन डॉक्टर और तीन फार्मासिस्ट स्वैच्छिक सेवा देते हैं। 
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57 साल की उम्र में भी सावला के उत्साह और ऊर्जा 27 साल पहले जैसी ही है। मानवता के लिए उनके योगदान को नमन करने की जरूरत है। यह विडंबना ही है कि 10 से 12 लाख कैंसर रोगियों को मुफ्त भोजन कराने वाले को कोई जानता तक नहीं। यहां मीडिया की भी भूमिका पर सवाल है, जो सावला जैसे लोगों को नजर अंदाज करती है। 
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यह हमे समझना होगा कि शिरडी में साई मंदिर, तिरुपति बाला जी आदि स्थानों पर लाखों रुपये दान करने से भगवान नहीं मिलेगा। भगवान हमारे आसपास ही रहता है। लेकिन हम बापू, महाराज या बाबा के रूप में विभिन्न स्टाइल देव पुरुष के पीछे पागलों की तरह चल रहे हैं। 
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End
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