रविवार का दिन था, आज गोल गप्पे खाने की इच्छा हुयी। शाम को गोलगप्पे का ठेला जो कि हमारी कॉलोनी के बाहर रोड पर ही खड़ा रहता है, वहीँ चले गए और देखा तो वहाँ काफी भीड़ थी...लोग हाथ में प्लेट लेकर लाइन में लगे हुए थे। तकरीबन 15 मिनिट के बाद हमारा भी नम्बर आ गया.... लेकिन उस 15 मिनट के दौरान में यह सोचता रहा कि -
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बेचारा क्या कमाता होगा ... ??
बेचारा बड़ी मेहनत करता है ... ??
बेचारा घर का गुजारा कैसे चलाता होगा ... ??
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जब हमारी बारी आई तो मैंने गोल गप्पे वाले से यूँही पूछ लिया -
"भाई क्या कमा लेते हो दिन भर में" (मुझे उम्मीद थी की 300-400 रुपये बन जाता होगा गरीब आदमी का) --
गोल गप्पे वाला - "साहब जी भगवान की कृपा से माल पूरा लग जाता है"
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मैंने पुछा - "मैं समझा नही भाई, मतलब जरा अच्छे से समझाओ"
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गोल गप्पे वाला - "साहब हम सुबह में 7 बजे घर से 3000 गोलगप्पे लेकर के निकलते है और शाम को 7 बजने से पहले भगवान की कृपा से सब माल लग जाता है"
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मैंने हिसाब लगाया कि यह 10 रुपये में 6 गोल गप्पे खिलाता है मतलब की 3000 गोल गप्पे बिकने पर उसको 5000 रुपये मिलते होंगे और अगर 50% उसका प्रॉफिट मान लें तो वह दिन के 2500 रुपये या उससे भी ज्यादा कमा लेता है...!!! यानी कि महीने के 75,000 रुपये !!!
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यह सोचकर तो मेरा दिमाग चकराने लगा....
अब मुझे गोलगप्पे वाला बेचारा नजर नही आ रहा था...बेचारा तो मैं हो गया था...!!
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एक 7-8 क्लास पढ़ा इन्सान इज्जत के साथ महीने के 75,000 रुपये कमा रहा है...
उसने अपना 45 लाख का घर ले लिया है...और 4 दुकाने खरीद कर किराये पर दे रखी है
जिनका महीने का किराया 30,000 रुपये आता है...।
और हमने वर्षों तक पढ़ाई की, उसके बाद 20-25 हजार की नौकरी कर रहे है....
किराये के मकान में रह रहे है... यूँ ही टाई बांधकर झुठी शान में घूम रहे हैं...
दिल तो किया की उसी गोलगप्पे में कूदकर डूब जाऊं...
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किसी ने सही कहा है ...
"Dont Under Estimate Power of The Common Man"
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:-) :-) :-)
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excellent line
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