सोमवार, दिसंबर 08, 2008

दो कवितायें - मूक प्रश्न / संवाद



- मूक प्रश्न - (कविता)

बीजगणित के "इक्वेशन"
भौतिकी के "न्युमैरिकल"
और जैविकी की "एक्स्पैरिमेंट्स"
से परे भी,
एक दुनिया है
भूख और गरीबी से सनी हुयी !

वहीँ मिलूँगा मैं तुम्हें
यदि तुम मेरे मित्र हो तो आओ
इस इक्वेशन को हल करें
कि क्यों मुट्ठी भर लोग
करोड़ों के हिस्से की रोशनी
हजम कर जाते हैं !

इस न्युमैरिकल का जवाब ढूँढें
कि करोड़ों पेट क्यों
अंधेरे की स्याही पीने को अभिशप्त हैं !

आओ ! इस एक्स्पैरिमेंट्स का
परिणाम देखें
कि जब करोड़ों दिलों में
संकल्प की मशालें जल उठेंगी
तब क्या होगा ???



- संवाद - (कविता)

बहुत दिन हुए
नहीं दिखायी पड़ा कोई सपना
एक पत्थर तक नहीं उठाया हाथ में
चिल्लाए नहीं, हँसे नहीं रोये नहीं
किसी का कन्धा तक थपथपाए हुए
कितने दिन बीत गए !

यहाँ घास का एक बड़ा सा मैदान था
यह कहते हुए भी लड़खड़ाती है जुबान
इतने गरीब तो हम कभी नहीं थे
कि नफरत जानने के लिए
डिक्शनरी में शब्द ढूंढते फिरें !

उदाहरण के लिए यह आंसू की एक बूँद है
जिसे हम कहते रहे पत्थर
हम बेहतर जीवन की तलाश में यहाँ आए थे
यह कहने की शायद कोई जरूरत नहीं कि
क्रूरता के बाद भी बची हुयी है दुनिया !

इस अंधेर नगरी में सिगरेट सुलगाते हुए
हमारे हाथ कांपते हैं जरा सी आहट पर
हो जाती है बोलती बंद
अब कोई भी नहीं कहता
मैं इस दुनिया को आग लगा दूँगा !

हद से हद इतना सोचते हैं अगर चाहूँ तो
मैं भी लिख सकता हूँ
कागज़ पर क्रान्ति की बातें
और उबलते संवाद !!!

16 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब शब्दों से सजी दोनों कवितायें कमाल की हैं...बेहतरीन.
    नीरज

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  2. आपकी कवितायें अच्छी लगीं

    धन्यवाद इस प्रविष्टि के लिए .
    हिमांशु .

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  3. बेहद दमदार कवितायें हैं / मैं कविताओं का पाठक नहीं हूँ लेकिन फिर भी पता नहीं क्यूँ आपकी कवितायें बेहद अच्छी लगीं / शब्दों के अन्दर छुपे हुए भाव प्रभावित करते हैं //

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  4. बहुत बढ़िया लगी आपकी यह कविताएं

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  5. आपकी दोनों कवितायें कई बार पढीं, कौन सी ज्यादा अच्छी है यह तय करना मेरे लिए मुश्किल है, बहरहाल मेरी मुबारकबाद स्वीकार करें इतनी सशक्त कविताओं के लिए

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  6. कागज पर क्रांति की बातें ..बहुत खूब .....बहुत बढ़िया लिखा है आपने

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  7. बहुत खूब,
    आपकी दोनों कवितायें पढीं,
    अत्यन्त विचारोत्तेजक एवं सारगर्भित लगीं मुझे,

    ईश्वर आपको कामयाबी दे

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  8. ... प्रसंशनीय व प्रभावशाली रचनाएँ हैं ।

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  9. प्रकाश जी पता नहीं क्यूँ आपका ब्लॉग कई दिन से ओपन नहीं हो पा रहा था / चौथी बार आया हूँ तो सफल हुआ / आपकी कवितायें पढीं ! बहुत ही पठनीय , एवं प्रेरणादायक कवितायें हैं ! कई जगह आपने अत्यन्त सुंदर शब्दों का प्रयोग किया है - "नफरत जानने के लिए डिक्शनरी में शब्द ढूंढते फिरें" ...........या फिर "क्रूरता के बाद भी बची हुयी है दुनिया" !
    आगे भी ऐसी ही दर्शनीय रचनाओं का इन्तजार रहेगा !

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  10. Prakash ji,
    Apkee kavitaon men jo talkhee,ag aur shabdon kee dhar hai use barkarar rakhiyega.meree mangalkamnayen.mere blog sadasya banane ke liye dhanyavad.
    Hemant Kumar

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  11. आपकी ये दोनों कवितायेँ बहोत ही अच्छी लगी
    ................................
    पहले भी पढ़ा था पर टिप्पणी नहीं दे पाया था
    ................................

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  12. काश यह इक्वेशन सुलझ जाती....
    दोनों कविताएं बहुत अच्छीं...

    जवाब देंहटाएं

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