[कश्यप किशोर मिश्रा द्वारा रचित उत्कृष्ट लघु कथा]
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एक बूढ़ी औरत सड़क के किनारे डलिया में संतरे बेचती थी
एक युवा अक्सर उसके पास से संतरे खरीदता.
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हर बार खरीदे हुए संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता -
“ये कम मीठा लग रहा है, देखो !”
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बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती - “ना बाबू मीठा तो है!”
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वो युवक उस संतरे को वही छोड़, बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता.
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युवक अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी नें पूछा -
“ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ?”
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युवा ने पत्नी को एक मघुर मुस्कान के साथ बताया - “वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह उसे मै संतरे खिला देता हूँ…”
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एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया - “ये झक्की लड़का संतरे लेते समय इतनी चिक-चिक करता है, पर संतरे तौलते समय मै तेरे पलड़े देखती हूँ, तू हमेशा उसकी चिक-चिक के चक्कर में उसे ज्यादा संतरे तौल देती है”.
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बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा - “उसकी चिक-चिक संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर होती है, मै बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं ।”
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The End
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बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ,,
जवाब देंहटाएंप्यार की भाषा हर कोई नहीं समझ पाता ..
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति ,,
जवाब देंहटाएंप्यार की भाषा हर कोई नहीं समझ पाता ..
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!