गुरुवार, जून 09, 2016

वेटिकन सिटी में धंदा


वेटिकन सिटी में दो भिखारी बैठे थे ... 
एक के हाथ में ॐ था और दुसरे के हाथ में जीसस का क्रॉस ! 
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लोग वहां से निकलते और सब ॐ वाले भिखारी को गुस्से से देख के क्रॉस पकड़े हुए भिखारी को पैसे दे कर जा रहे थे ! 
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थोड़ी देर के बाद वहां से क्रिस्चियन के धर्मगुरु पॉप निकले ,,, उन्होंने ये देखकर ॐ वाले भिखारी को बोला - 

"भाई ये क्रिस्चियन लोगों का देश है .. यहाँ कोई तुम हिन्दू को भीख नहीं देगा ... सच तो ये है कि लोग यहाँ तुम्हे चिढाने के लिए क्रॉस वाले भिखारी को ज्यादा पैसा दे देते हैं .... 
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ॐ वाले भिखारी ने क्रॉस वाले भिखारी को देखा और बोला - 

"जिग्नेस भाई ~~" 

"बोलो मनसुख भाई ~~" 

"अब ये हमें सिखाएगा धंदा करना ?????"
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:-)  :-) :-)  

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पिता-पुत्र कथा



माँ के निधन के पश्चात इकलौते बेटे ने पत्नी के कहने में आ कर अपने पिता को वृद्धाश्रम में भेजने का निर्णय ले लिया। पिता की समस्त भौतिक वस्तुएँ समेट वो एक ईसाई पादरी द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में पिता को ले आया। 
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काउंटर पर बैठी क्लर्क ने बहुत से विकल्प दिए टेलीविज़न, एसी, शाकाहारी, मांसाहारी इत्यादि । पिता ने सादे एक वक़्त के शाकाहारी भोजन को छोड़ सब के लिए मना कर दिया। 
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पुत्र पिता का सामान कार से निकालने बाहर गया । तभी पत्नी ने फ़ोन किया ये पता लगाने के लिए कि सब कुछ ठीक से निपटा या नहीं । और इस बात के लिए पति को ज़ोर देकर आगाह किया की उसके पिता को अब त्योहारों पर भी घर आने की ज़रुरत नहीं। 
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क्रिश्चियन पादरी बाहर आये पिता को देख उनकी और बढ़ गये और उनके दोनों कन्धों पर हाथ रख कर बात करने लगे। 
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इस दौरान पिता हिम्मत से मुस्कुराते रहे। 
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बेटे को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने तुरंत निकट पहुंचकर पादरी से पूछा कि क्या वो पूर्व परिचित हैं ? जो इतनी बेतकल्लुफी से बात कर रहे हैं ? 
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पादरी ने गीली आँखें पोछते हुए बेटे को देखा और कहा - हाँ ! बहुत ही अच्छे से। आपके पिता 30 साल पहले यहां आये थे और अपने साथ एक अनाथ बच्चे को ले गए थे, गोद लेने के लिए !!! बेटा अवाक था....!!! 

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रविवार, सितंबर 27, 2015

निश्छल प्रेम


[कश्यप किशोर मिश्रा द्वारा रचित उत्कृष्ट लघु कथा]
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एक बूढ़ी औरत सड़क के किनारे डलिया में संतरे बेचती थी 
एक युवा अक्सर उसके पास से संतरे खरीदता. 
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हर बार खरीदे हुए संतरों से एक संतरा निकाल उसकी एक फाँक चखता और कहता -
“ये कम मीठा लग रहा है, देखो !” 
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बूढ़ी औरत संतरे को चखती और प्रतिवाद करती - “ना बाबू मीठा तो है!” 
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वो युवक उस संतरे को वही छोड़, बाकी संतरे ले गर्दन झटकते आगे बढ़ जाता. 
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युवक अक्सर अपनी पत्नी के साथ होता था, एक दिन पत्नी नें पूछा - 
“ये संतरे हमेशा मीठे ही होते हैं, पर यह नौटंकी तुम हमेशा क्यों करते हो ?” 
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युवा ने पत्नी को एक मघुर मुस्कान के साथ बताया - “वो बूढ़ी माँ संतरे बहुत मीठे बेचती है, पर खुद कभी नहीं खाती, इस तरह उसे मै संतरे खिला देता हूँ…” 
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एक दिन, बूढ़ी माँ से, उसके पड़ोस में सब्जी बेचनें वाली औरत ने सवाल किया - “ये झक्की लड़का संतरे लेते समय इतनी चिक-चिक करता है, पर संतरे तौलते समय मै तेरे पलड़े देखती हूँ, तू हमेशा उसकी चिक-चिक के चक्कर में उसे ज्यादा संतरे तौल देती है”. 
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बूढ़ी माँ नें साथ सब्जी बेचने वाली से कहा - “उसकी चिक-चिक संतरे के लिए नहीं, मुझे संतरा खिलानें को लेकर होती है, मै बस उसका प्रेम देखती हूँ, पलड़ो पर संतरे अपनें आप बढ़ जाते हैं ।”
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The End
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शनिवार, सितंबर 26, 2015

प्रोफेशनल भिखारी


कल मुझे एक नौजवान स्टेशन पर मिला। 
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कहने लगा - . "मेरी जेब से पर्स कही गिर गया है, बस मुझे जयपुर पहुंचने तक के पैसे दे दीजिये। 
टिकट 150 रूपये का है। और आगे रेलवे स्टेशन से मैं पैदल अपने घर चला जाऊंगा। बस 150 रूपये 
चाहिये। वैसे मै बहुत संपन्न परिवार से हूँ। मुझे मांगते हुए झिझक महसूस हो रही है।" 
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मैने कहा - 
"इसमे शर्माने वाली कोई बात नहीं है। कभी मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है ... ये लो मेरा फोन अपने घर वालो से बात करो, उनसे कहो कि मेरे इस नबंर पर 200 रूपये का रिचार्ज करवा दें और उसके बाद तुम मुझसे 200 रूपये नकद ले लो। तुम्हारी परेशानी खत्म।" 
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वो व्यक्ति बिना कुछ बोले आगे बढ गया। 



:-) :-) :-)
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शुक्रवार, सितंबर 25, 2015

कैसे-कैसे दिलचस्प साइनबोर्ड :-)


क्या कहा ~~~
नाम में क्या रखा है ?? 
अरे नहीं जनाब 
नाम में ही तो बहुत कुछ रखा है 
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न यकीन हो तो देखिये -

 अरे ~~~ फेसबुक तो फ़ास्ट फ़ूड भी बेचता है
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 इन्फोसिस का नया धांसू बिजनेस
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 डंके की चोट पे धंधा
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 क्या सीखा … घंटा ???
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 गूगल सब्जी भी बेचता है … अपनी आँखों से देख लो
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 ये डॉक्टर का नहीं भाई, रेस्टोरेंट का साइनबोर्ड है
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 हाई-फाई चिकन ले लो
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 नाम में इमानदारी हो तो ऐसी हो
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इतना कठिन विषय है कि 
अलग से इंस्टिट्यूट खोलना पड़ा
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