शुक्रवार, जुलाई 26, 2013

तरक्की / लड़कपन / माहौल (क्षणिकाएं)

तरक्की 
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बाबा रखते थे कदम
ड्योढ़ी के भीतर खांसकर
चाचियाँ बाहर निकलतीं
सर पे पल्लू ढांपकर
देखिये इस बार पीढ़ी
क्या तरक्की कर गई
अब चुने जाते हैं शौहर
कुछ दिनों तक जांचकर !

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लड़कपन
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लड़कपन में तुझे छूकर 
कुछ ऐसा मुस्कराया था 
कि जैसे जमाने भर के 
मैं कंचे जीत लाया था !!
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माहौल 
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कुछ ऐसी शै मिलाइए 
नफरत के खेल में 
इंसान प्यार करने लगे 
'होल-सेल' में !!!
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-- प्रकाश गोविन्द 
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गुरुवार, जुलाई 25, 2013

माँ का वजूद / कोई नहीं (कवितायें)

माँ का वजूद
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मैं माँ की बरसी पर 
फूलों को कैसे उठाऊंगा 
हाथों में फूल नहीं 
माँ का वजूद होगा !!
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कोई नहीं 
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दोस्त तो बहुत हैं पर
बुखार में तपते जिस्म के 
सिरहाने बैठ कर 
"मैं हूँ न"
कहने वाला कोई नहीं !

एक समोसे पे दिन गुजारते देख कर
हेल्थ पर लेक्चर देने वाले बहुत हैं पर
टिफिन में मेरी खातिर
एक एक्स्ट्रा पराठा और आचार
लाने वाला कोई नहीं !

सुबह-शाम
देश, समाज, धर्म, संस्कृति,
की दुहाई देने वाले तो तमाम हैं
पर स्नेह भरी आँखों से
"मेरी खातिर" कहने वाला कोई नहीं !

जीवन दर्शन-आस्था-आस्तिकता पर
घंटों ज्ञान पिलाने वाले बहुत हैं
पर जीने की एक वाजिब वजह
दे देने वाला कोई नहीं !

हाँ.... 
मेरे पास दोस्त तो बहुत हैं
पर .......
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-- प्रकाश गोविन्द 
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बुधवार, जुलाई 24, 2013

शेर-ओ-सुखन

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हमदर्दियाँ ख़ुलूस दिलासे तसल्लियाँ 
दिल टूटने के बाद तमाशे बहुत हुए !!
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तुम अपने बारे में कुछ देर सोचना छोड़ो 
तो मैं बताऊँ कि तुम किस कदर अकेले हो !!
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ज़माना मेरा बड़ा एहतराम करता है 
उठा के ताक में जब से उसूल रखे हैं !!
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तमाम काम अधूरे पड़े रहे मेरे 
मैं जिंदगी पे बहुत ऐतबार करता था !!
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-- प्रकाश गोविन्द 
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मंगलवार, जुलाई 23, 2013

इन्डियन मुजाहिदीन का नेता जी को पैगाम


भाई जान !
हम खैरियत से हैं ... अल्लाताला से दुआ करते हैं आप भी चैनोअमन से होंगे !
आपको इत्तिला देना चाहता हूँ कि आपके बेवज़ह के बयानात से हमारा दिल टूट गया !
महीनों प्लानिंग हम करते हैं ...
जी जान लगा के बम हम फोड़ते हैं ...
लेकिन आप उसका क्रेडिट किसी और को दे देते हैं ..
ये गैरमुनासिब बात है ... आपको हमारे ज़ज्बातों का ख्याल रखना चाहिए ...
हमारे मुजाहिदीन साथी आपके बयान से बहुत ही ग़मगीन हैं ...
आपका यही रवैया रहा तो हमको कौन बम फोड़ने का ठेका देना पसंद करेगा ?

उम्मीद करता हूँ आपके दिमाग-ए-शरीफ में हमारे ज़ज्बात घुसे होंगे !
परवरदिगार आपको थोड़ी समझदारी दे !
आमीन !

आपका गरीब भाई
इन्डियन मुजाहिदीन



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The End 
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Prakash Govind

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अकेलापन (कविता)


बटन पुश कर देते हैं 
स्क्रीन चमकने लगती है 
उँगलियाँ हिलने लगती हैं 
हम गुम हो जाते हैं अनजान दुनिया में !

बाहर की दुनिया क्या सचमुच
इतनी नीरस और उबाऊ है कि 
हम अपने चिर-परिचित दायरों में
रोमांच खोजने लग जाते हैं?

जीते-जागते इंसान को छोड़कर
उससे नज़रें बचा कर
सैकड़ों लोगों का सर्कस देखना 
ज्यादा अच्छा लगता है

सामने बैठे इंसान से मुस्करा कर
दो बोल बोलने के बजाय
किसी दीवार पर
"LOL", "fantastic", "miss you"
लिखना ज्यादा अच्छा लगता है

बिस्तर से सुबह उठते ही
बटन पुश कर देते हैं 
स्क्रीन चमकने लगती है 
उँगलियाँ हिलने लगती हैं 
हम गम हो जाते हैं अनजान दुनिया में !

समय के साथ उम्र ढल जाती है
मॉडल बदल जाते हैं, प्लान बदल जाते हैं
चार-चार स्मार्टफोन घर में हो जाते हैं
पहले ही कम बोलते थे
अब मरघट सा छा जाता है
घर में ही SMS भेजे जाने लगते हैं

और एक दिन बैटरी चुक जाती है
चार्जर भी जवाब दे जाता है
तो अकेलापन ही अकेलापन
नितांत अकेलापन ही नज़र आता है
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-- प्रकाश गोविन्द 
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