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गुरुवार, अगस्त 01, 2013

हम पूर्वजों के क्रेडिट पर कब तक शान मारेंगे

नवीनतम से नवीनतम विज्ञान का अविष्कार भी धर्म की हजारों वर्ष पुरानी किताब में पहले से दर्ज है ! 
आगे भविष्य में भी जितने अविष्कार होंगे वो सब भी इन्ही धार्मिक ग्रंथों के हवाले से होंगे !
मुझे तो लगता है हमारे धर्म ग्रंथों का सबसे ज्यादा अध्ययन अमेरिका, जापान, फ्रांस वालों ने ही किया है .... 

उन्होंने वहीँ से सब चोरी कर लिया ! 

परमाणु बम क्या कद्दू .... हमारे यहाँ तो ब्रह्मास्त्र था 
विमान और राकेट गए तेल लेने ...हमारे यहाँ तो पुष्पक था 
फोन..मोबाईल तो कुछ नहीं ...हम तो परकाया प्रवेश में भी माहिर थे 
अमेरिका वाले मंगल जा रहे हैं ...हुंह ..
हमारे ऋषि-मुनि तो मंगल की मिटटी का रंग तक बता चुके हैं 
एलोपेथिक बकवास है ..... आयुर्वेद का लोहा तो दुनिया मान चुकी है 


आत्म मुग्धता के नशे से कब बाहर निकलेंगे ?
कभी भारत विश्व गुरु रहा होगा ... 
सवाल है कि -
"आज भारत क्या है ?"
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-- प्रकाश गोविन्द
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फेसबुक लिंक :

फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं
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Pankaj Mohan Sharma : 
Ab to duniya hamara GHOTALASHSTRA padh rahi hai. 
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Ranjan Yadav :
नीचे की पंक्ति अति सुन्दर- 'भारत विश्व गुरु रहा होगा ...आज भारत क्या है?'  
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Harmahendra Hura :
pracheen samay men Swiss Bank nahin tha isliye desh ki pragati desh mein samavisht thi. ab kuchh logon ki pragati aur desh ka vinaash hai  
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Sanjay Bengani :  
हमें वो इतिहास पढ़ाया जाता है जो हमें शर्मसार करे. और हम अपने अतित पर गर्व करना चाहते है. हम वर्तमान को बनानें में असफल रहे तो अपने अतित को वर्तमान से ज्यादा अच्छा बताते हैं. इसकी जड़ में यही है. 
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Ek Diwana Tha :
Aaj bharat corruption men sab se aage hai.   
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Shah Nawaz : 
आप इसे आत्म मुग्धता कह सकते हैं मगर यह सत्य है, हालाँकि ज़रूरत अब और भी आगे देखने की है। मगर क्या अपने गौरवशाली इतिहास को भुला देना चाहिए ? 
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Prakash Govind :
Shah Nawaz Bhayi हमें अपने अतीत पर ... अपने पूर्वजों पर निश्चित ही गर्व होना चाहिए ... लेकिन उनके इतिहास का ताबीज गले में लटकाने का बजाय उससे प्रेरणा लेनी चाहिए ... उससे सबक लेना चाहिए ... उसे आधार बनाकर आगे बढना चाहिए ... अतीत का ढोल बजाने से क्या होगा ?   
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Sandeep Gupta :
shah nawaz ji itihas nahi bhulana hai yaad rakhna hai. aur bhavishya ki traf dekhna hai.  
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Suryakumar Pandey :
maithili sharan gupt ne bharat bharti me iska vistar se varnan kiya hai.  
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Danda Lakhnavi :  
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पाखंडों से दोस्ती, सदाचर से........हेट। 
चार ग्राम युग-धर्म का, कई कुंतलों पेट॥
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Brajesh Rana : 
हिन्दुस्तान में वेद तो हैं ही नहीं. अँगरेज़ चुरा कर ले गए नहीं तो हम नंबर एक होते.  1197 से 1757 तक क्या कर रहे थे? 
पूरे भारत वर्ष में गुरुकुल थे और शिक्षा की अपूर्व व्यवस्था थी. सब अंग्रेजों ने बर्बाद कर दी. Macauley की औलादों ने. 
गांधारी अफगनिस्तान से, बाली और सुग्रीव और हनुमान इंडोनेशिया से, हिडिम्बा मणिपुर से. अपनी तो सिर्फ द्रौपदी हे. 
1197 से 1757 तक कुछ नहीं कर पाए और दोष देते हैं अंग्रेजों को. ये तो औरंगजेब में ही खुश रह सकते हैं. 
कोई दीक्षित साहिब हैं कहते थे की दातुन करनी चाहिए नीम के पेड़ की. अगर हिन्दुस्तानियों ने बात मान ली तो एक नीम का पेड़ नहीं बचेगा. पूरे सवा सौ करोड़ हैं अब तो. 
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Shivendra Sinha :
अभी खोज चल रही है / जिस दिन भी पारस पत्थर मिल गया हम अमेरिका, जापान और फ्रांस को जेब में रख के घूमेंगे.  
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Syed Khalid Mahfooz :
भविष्य को भूल कर, वर्तमान की चिंता छोड़, अतीत पर गर्व ... हमें कुएं का मेंढक बना देता है...  
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Prabhu Heda :  
ये तो कुछ भी नहीं साहब विश्व की प्रथम फायर प्रूफ लेडी भारत से थी जिसका नाम होलिका था, पहले पत्रकार नारद तो विश्व ही क्या समस्त ग्रहों की सनसनीखेज न्यूज़ टेलीकास्ट कर सकते थे, "संजय" के पास तो ऐसा सैटलाइट था की वो महाभारत का आँखों देखा हाल 3डी में देख और दिखा सकते थे, यही नहीं मेडिकल साइंस तो इससे भी आगे था अब गणपति का ही उधाहरण ले लो! दादागिरी भी हमसे ही सीखी है सबने. शनिदेव का आतंक आज भी हर शनिवार को उसके चेले दिखा जाते है !  
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Anupam Parihar :
अच्छी बहस है .... वर्तमान जब पीड़ित होता है तो अतीत की सांसें लेता है ....कुछ दिन तो चलेगा.  
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Shiv Shambhu Sharma :
आत्म मुग्ध हो तब तो बाहर निकले मुदा हम आत्मुग्ध भी नही है और आज का भारत क्या है यह बता पाना सहज नही रहा ... वैसे यह सच है जब दुनियां के और लोग आदिमानव थे तब यहां यज्ञ की समिधा दी जाती थी। ’ब्रम्ह सत्य जगतमिथ्या’ के सिद्धांत से न माया मिली न राम और हम नकलची आलसी बन कर रह गये जबकि आज जो नये आविष्कार परक सुविधाए हम भोग रहे है वह भी उन लोगो के परिश्रम का फ़ल है जो हमारे यज्ञ समिधा के समय आदिमानव थे।  
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Govind Singh Parmar  :  
भाई, आपकी बात अपनी जगह सही है, लेकिन जापान अमेरिका के लोग तब कुछ नहीं जानते थे जब हम नालंदा विश्वविद्यालय जैसा संस्थान चलाते थे, चीन, ईरान, भारत सबसे महत्वपूर्ण देश हुआ करते थे, आज विश्व व्यापार में हमारा हिस्सा केवल एक प्रतिशत है जो 1000 में 30 और 1500 सन में 25 प्रतिशत था, हां हम पिछले चार सौ सालो में बहुत पिछड़े है ! 
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Nitish K Singh :
Bade bade bhavishya apne me khone ki wajah se itihas men vileen ho gye... Intezar kijiye ek aur itihas ka.   
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Diwakar Mishra : 
Ham bhi bahut haisiyat rakhte the, keval dharm aur darshan men hi nahi, duniyavi cheezon men bhi... hazzaron saalon ki gulami ne bahut pichhaad diya hai.. jaisa ki uupar govind ji ne bataya.. us gulami ke jamane me bhi duniya ka ek chauthai vyapar hamare kabje me tha... Macauley ne hamare confidence ko khatam karne ka jo safal prayas kiya hai, us se yah aatma-mugdhata ka nasha hi bahar nikal kar la sakta hai... jarurat hai ki ise nashe ke roop men nahi, balki davayi ke roop me prayog kiya jaaye. 
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Huma Kanpuri :
हम क्या थे, आचार्य चतुरसेन का 'सोना और ख़ून' पढ़कर अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अपना उपहास न किया जाए, ताकि औरों को भी बोलने का अवसर मिले।  
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Prakash Govind :
Huma Kanpuri Ji आचार्य चतुरसेन जी को खूब पढ़ा है ... ऐतिहासिक कहानियों को लिखने में उनका कोई मुकाबला नहीं ! सवाल ये है कि मान लीजिये हमारे परदादा नामी-गरामी पहलवान थे ... तो उनकी क्रेडिट पर हम दूसरों पर कब तक जलवा गांठते रहेंगे ? उपहास तो हम स्वयं अपना बना रहे हैं !  
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राजीव तनेजा  :  
वर्तमान में जीने के बजाय हम भूतकाल में जीते हैं....हर नई तकनीक चाहे वो मोबाईल हो या फिर कंप्यूटर ... हम दुसरे देशों की तरफ ताकते हैं लेकिन फिर भी पुरानी बातों को याद कर ... इण्डिया इज बैस्ट का नारा लगाते रहेंगे ! 
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Sunil Mishra Journalist :
Bharat aaj bhi Bharat hai....log jaisa bana rahe hain...waisa ban raha hai.....   
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दिनेशराय द्विवेदी : 
हमें नशे में जीने की आदत है। 
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Alok Khare :
Khush hote raho ! is par tax nahi lagta ! kehte raho hamaare chacha Jameedaar--Soobedaar the ! usse kya ? tum to saale driver ho ! usko jaano bas ! kaun kya tha usme kya rakha hai ? aur kab talk dhol peet-te rahoge wo bhi aisa jiski khaal na jaane kab ki fat chuki hai ! sahi kaha bhai ji! are theek he ham rahe honge vishva guru ! to kya uski pension aaj tak khaate rahoge khaali-peeli.  
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Prakash Govind :
आलोक भाई ... दहशत तो तब होती है जब कोई प्रकांड पंडित अपनी बात मनवाने के लिए भारी भरकम संस्कृत के श्लोक बोलने लगता है ... तब मुंडी ऊपर-नीचे हिलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता :-)   
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Ssd Agrawal :  
आपकी बात सही है परन्तु हमारी तकनीकी लिपिबद्ध न होने की वजह से कहानी किस्से बन कर रह गयी है । बहुत पीछे न जा कर मुगल शासन काल की ही बात करे उस समय जो तकनीकी थी वो विश्व मे प्रख्यात थी परन्तु आज विलुप्त हो गयी क्यूँ की हम सब अपनी विरासत को आगली पीढ़ी तक नहीं बढ़ा पाये ।  
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Diwakar Mishra :
इस पोस्ट पर बहुत कमेंट आए, और बहस चली । पर इतने सारे विमर्श से क्या किसी का मत बदला? यहाँ दो पक्षों के कमेंट आते रहे हैं । और जब उनके कमेंट दुबारा आते हैं तो लगता है कि उनका मत अब भी उसी ओर ही नहीं बल्कि उसी जगह पर है । आखिर क्यों लम्बी चर्चा के बाद भी किसी के मत में (अक्सर) विकास या परिवर्तन नहीं होता । कारण कि अधिकतर की प्रवृत्ति सुनने की नहीं सुनाने की होती है, सीखने की नहीं सिखाने की होती है, सीखने को चेला बनना और सिखाने को गुरु बनने के रूप में देखते हैं और गुरु बनना चाहते हैं । क्या कोई ऐसा है जिसका मत ऊपर की चर्चा पढ़कर बदला हो? यदि हो तो कृपया बताएँ ।  
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Prakash Govind :
Diwakar Mishra Ji आपकी प्रतिक्रया अच्छी लगी ! आभार !! ....... 
फेसबुक सहज अभिव्यक्ति का एक माध्यम है ! यहाँ गुरु-चेला बनाने जैसी कोई बात नहीं ! हम सभी यहाँ एक-दुसरे से ही काफी कुछ सीखते हैं ! जहाँ तक मत या विचार बदलने की बात है तो वो एक ऐसी प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे ही होती है ! मन के भीतर जमी परतों को खुरच के अलग करना इतना आसान नहीं होता ! अभी तो सिर्फ इतना ही बहुत है कि हम एक-दूसरे को सुनें ... समझें और अभिव्यक्ति का सम्मान करें !  
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आनंद शर्मा :  
Vivek Shrivastava Aap se poorn sahmati .. puraani uplabdhiyaa prerak ho sakti hain ... par unke bharose vartmaan men sirf deenge haanknaa katayi theek nahi. 
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Prakash Govind :
हम विकास का अंतर इस बात से लगा सकते हैं कि जब यहाँ तुलसीदास जी रामायण की चौपाईयां रच रहे थे तब यूरोप में कैमरे का आविष्कार अंतिम पड़ाव पर था ! 
आप इतिहास उठा के देखिये हमने हर प्रगति और परिवर्तन का जमकर विरोध किया ! लेकिन हुआ क्या ? सारे परिवर्तन होकर ही रहे बस विरोधों और उदासीनता के कारण गति धीमी रही ! जब रेलगाड़ी आई तो तहलका मच गया ... लोग छाती पीटने लगे कि इससे तो हिन्दुस्तान बर्बाद हो जाएगा ... देश के सारे पशु - गाय-बैल-बकरी कट के मर जायेंगे ! आस-पास के मकान गिर जायेंगे ! गर्भवती महिलाओं पर बहुत घातक असर पड़ेगा ... जाने-जाने क्या-क्या बातें और विरोध !

कैमरा आया तो लोगों ने अफवाह फैला दी कि इससे तस्वीर मत उतारने देना ...शरीर की ताकत ख़त्म हो जायेगी ! घरों में नल लगने शुरू हुए तो लोगों ने भगा दिया ..... ये पानी कौन पिएगा ... जाने कितने कितने दिन का बासी पानी ...सब अशुद्ध हो जायेंगे ! ... 

इसी तरह चाय का विरोध ...चीनी का विरोध ...अंग्रेजी दवाईयों का विरोध ... टीवी का विरोध ... हर चीज का विरोध किया ! विरोध, नकारात्मकता और परिवर्तन से घबराना हमारा मूल स्वभाव ही है ! 

आपको याद है न ? जब कंप्यूटर आया था तो पूरे देश ने कैसा विरोध किया था ... सब बेरोजगार हो जायेंगे .. हाय दादा अब क्या होगा ! आज क्या स्थिति है बताईये ? कंप्यूटर के बिना हम स्थिति की कल्पना भी नहीं करना चाहते !   
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शैलेश गुप्ता : 
लेकिन आज के इस विकसित साइंस और सनातन विज्ञान में एक मूल भूत फर्क था और वो की हमारे यहाँ जो कुछ भी तकनीक विकसित की गई थी वो पर्यावरण के संतुलन को बनाये रखती थी परन्तु आधुनिक विज्ञानं में वो बात नहीं ..... और पूर्ण सहमत हु आप की इस बात से भी की समय पूर्वजो के विकास से आत्म मुग्ध होने का नहीं बल्कि उन से सीख और प्रेरणा ले कर आगे बढ़ने का है ! 
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Mumtaz Aziz Naza :
wo chidiya, jis ko sone ke lalach ne noch noch kar itna zakhmi kar diya hai ke wo tadap tadap kar cheekh rahi hai, phir bhi us par kisi ko taras nahi aa raha  
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जितेन्द्र जौहर :
यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है, इसे हवा में नहीं उड़ाया जा सकता...!  
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सोमवार, जुलाई 29, 2013

क्या सचमुच दुखुराम अपराधी है ?

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समाचार-पत्र में छपी एक खबर पर 
नज़र पड़ी तो मैं सोच में पड़ गया !!
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जाँजगीर ( छतीसगढ़ ) चांपा जिले के बिर्रा गाँव में रहने वाले दुखुराम का अपने भाइयों के साथ ज़मीन जायदाद सम्बंधित एक मुकदमा लगभग छः साल से चल रहा है | मुक़दमे की पेशियों से परेशान दुखुराम को उम्मीद थी कि इस बार उसके मामले में सुनवाई हो जाएगी | मुक़दमे की पेशी पर अदालत में पहुंचे दुखुराम यादव को जब लगा कि इस बार भी सुनवाई नहीं होगी और अगली तारीख मिलेगी तो उसने अपनी जेब से सौ सौ रुपये के तीन नोट निकाल कर जज की ओर बढ़ा दिये | उसने जज से अनुरोध किया कि वे पैसे ले लें और सुनवाई कर दें | 


भरी अदालत में रिश्वत की इस पेशकश से जज और दुखुराम यादव के वकील सहित सभी लोग भौंचक रह गये | जज के निर्देश पर फ़ौरन पुलिस को बुलाया गया और रिश्वत देने के मामले पर दुखुराम यादव को गिरफ्तार कर लिया गया | मामला रिश्वत की पेशकश का था इसलिए जज की शिकायत पर एंटी करप्शन ब्यूरो ने उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 8 और 12 के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया | 

पत्रकारों से बातचीत में दुखुराम ने सरलता से जवाब दिया "मुझे गाँव में बताया गया था कि पेशी पर पैसे देने पड़ते है तभी सुनवाई होती है | बहुत उम्मीद के साथ मैंने जज साहब को पैसे दिये थे, लेकिन उन्होंने नहीं लिये' 

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कोई मुझे बताए कि :-
क्या सचमुच दुखुराम अपराधी और सजा पाने के योग्य है ?
क्या उसने जो कुछ अदालत में कहा और किया वह असत्य था ?
क्या वादी ज़िंदगी भर मुक़दमे की पड़ती तारीखों पर अदालत का
चक्कर लगाते रहने के लिये बाध्य और अभिशप्त है ?
किसके पास है उत्तर इन प्रश्नों का ?
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फेसबुक मित्रों द्वारा की गयीं कुछ चुनिन्दा टिप्पणियां
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Syed Khalid Mahfooz : 
"Justice Delayed Justice Denied"..... 
कोई जवाब नहीं है ... होंठो पर सिर्फ सवाल है .
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Chandrashekher Giri :
व्यवस्था पर सवाल तो बहुत से हैं …पर क्रान्तिकारी बदलाव लाये कौन…लकीर के फ़कीर बनना मज़बूरी सा बन गया है । 
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Ajeet Yadav :
Judicial system ke corruption ko rokane ke liye judicial accountability jaroori hai. Delay in judgement must be punished. If a higher court reverts any decision of a lower court there must be a system of punishing the lower court judge for bad/wrong decision. Power without accountability is the root cause of corruption in Judicial system.  Judge, imaandaar to tab maana jaata jab Dukhuram ke case me sunwaai puri kar usi din decision de deta. ek puraani kahaawat hai : 'aadami jab thaana-kachehari jaata hai to samjho usake bure din aa gaye haiN', aaz bhi yah satya hai.
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Govind Singh Parmar  :  
इस व्यवस्था के सामने इतने नंगेपन से ही काम चलेगा.
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Sangita Puri  :
बहुत बुरा हाल है व्‍यवस्‍था का .. आम आदमी करे भी तो क्‍या?  
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Raj Bhatia : 
जज को दिखाई नही देता कि यह छोटा सा मामला इतना लमबा केसे चल रहा हे ? मेरे विचार मे दुखु राम निर्दोष हे....
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स्वप्निल जैन :
300 रुपए कम हैं - जज को अपमान महसूस हुआ --- दुखुराम को फांसी दो 
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Ravindra Singh :
in the presence of judges their staff collect bribe and the judges closes their eyes because more than fifty precent of the total collection goes to the dining table of judges via kitchen... and it is very easy to shoot on cameras... 
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पवन कुमार जैन  :  
जज साहब ने अपनी खिसियाहट उतारी है .. वरना 98 प्रतिशत जज आज इस तरह से धन लेने में संलिप्त हैं .. उनके सामने ही उनका स्टाफ पैसे लेता है .. वह पीठ पीछे लेते हैं .. दुखुराम सीधा आदमी था उसे पीछे से देने के बारे में ज्ञान नहीं था ...
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राजीव तनेजा :
माना कि जज रिश्वतखोर होते हैं लेकिन ऐसे...सरेआम?....सबके सामने?....कतई नहीं...कदापि नहीं....और फिर क्या इतने बुरे दिन आ गए हैं हमारे यहाँ के न्याधीशों के कि तीन-तीन सौ रूपए पे अपना ईमान बेचते फिरे?....उसे कम से कम माननीय(?) जज साहब के रुतबे...उनकी हैसियत ...उनकी पोजीशन का ख्याल तो रखा ही चाहिए था.  
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सुनील अनुरागी : 
दुखुराम को किसी ने ये बात नहीं बताई रिश्वत छुपाकर या परदे के पीछे से दी जाती है.छुपाकर दोगे तो यहाँ पीएम भी रिश्वत लेने को तैयार है. काम भी हो जाएगा और मुकदमा भी नहीं चलेगा.
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Sambhu Singh  :
जज का जो चरित्र ऊसे गाव मे बताया गया था ऊसने वैसा किया, जज तो समझदार थे, उन्हे तो उसकी परेशानी समझ कर कारबाई पे ध्यान देना चाहिए था। 
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Ravi Gahlot :
Nahi wah gunehgar nhi balki voh to nadan or sidha saada insan hai. Us men agar thodi bhi chalaaki hoti to kya wo is tarah sab ke samney judge sahab ko paise dene ki gustakhi krta 'nahi' kabhi bhi nahi. usko to sirf insaf chahiye tha jo usko itney lambey arsey se nahi mila tha. Or ha asli gunehgar to wo log hain jo paise ki khatir apna dil imaan bech dete hain, or fir insaaf jaldi de dete hain. Arey jo log apna "dil,imaan" bech chukey hain aise log kya kisi ko insaaf de payengey or kya kisi ke huq main faisla dengey, jo paisa dega insaf to usi ko milega. 
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Vishvatosh Pandey :  
Agar Nyayadheesh hi vyakti ki manodasha samajhane me chook karenge to nyaay ki umeed bhi dhoomil hone ke kagar pe pahunch jayegi.
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कवि दीपक दीप :
ab Sach bolne pe bhi saja...  aur Jhooth bolne ki bhi saja...  hame sab saja de do... lakin... is anyaay ko hata do..  ya to le lo..  ya fir lena dena band karo..  ek aam admi ke jeevan ka sach....
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Dr.Anil Gupta : 
aaj ka samay jou desh ka chal raha hai yah iska marmik chitran hai.
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दिनेशराय द्विवेदी :
यह हमारी न्याय व्यवस्था की विडम्बना है। यह रिश्वत का मामला भी नहीं है। यह तो न्याय व्यवस्था में जो देरी की जा रही है उस का प्रतिरोध मात्र है लेकिन साथ ही वर्तमान सत्ता को चुनौती भी है। यह प्रदर्शित करता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता एक ढकोसला है। न्याय व्यवस्था पूरी तरह सत्ता के नियंत्रण में है। सत्ता कभी भी न्याय पालिका को इतनी सुविधा प्रदान नहीं करती कि वह पर्याप्त संख्या में इतने न्यायालय स्थापित कर सके जिस से लोगों को प्रत्येक मामले में एक दो वर्ष में न्याय प्रदान किया जा सके। अब जब सत्ता को चुनौती दी गई है तो सत्ता दंड तो देगी। उस का सामना भी करना पड़ेगा। सत्ता को चुनौती एक व्यक्ति जब भी देता है तो उस की यही स्थिति होती है। यदि इस व्यक्ति को दंड मिलता है तो यह सत्ता को एक व्यक्ति द्वारा दी गई चुनौती की सजा होगी।  

I think this type of Judges are not human beings. They born as human but the system changed them in mechanical devices.
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Mangleshwer Sharma :
ये सभी भ्रष्टाचारी बद हैं... बदनाम नहीं (क्योंकि आरोप साबित नहीं हुआ)... और बद को कोई सजा नहीं.. बदनाम को है. करोड़ों डकारने वाले शान से कहते हैं की हम इमानदार हैं, और कोर्ट उनका कुछ नहीं बिगाड्पाती.. पर केवल 10 पैसे की हेराफेरी में एक कोर्ट ने एक पोस्टमास्टर को 6 महीने की सजा और नोकरी से निकाला दे दिया... भाई ये तो अंधेर नगरी और चोपट राजा है... टेक सेर भाजी और टेक सेर खाजा है.... 
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Abhinav Pandey :  
एक तो भ्रष्टाचार, उस पर कोढ़ मेँ खाज ये न्याय व्यवस्था.... ये घटना निस्संदेह सोचने को बाध्य करती है. . . अगर बाप ने रिश्वत नहीँ दी और उसको फँसा दिया गया तो जीवन भर केस लड़ने के बाद भी अंत समय बाप की बेग़ुनाही साबित करने बेटे का 'पेशी' पर जाना क्या न्यायसंगत और तर्कसंगत है?? दुखराम की ग़लती तो है और वो ये कि वो भोला है और ग़रीब है। अगर तमाम तरह के हरे, पीले, लाल पत्तोँ वाले क़ानून जानता तो कब का निकल भागता अपने सच को साबित करके या अपने झूठ को ज़मानता दिलवाकर. . . . . . यहाँ इलाहाबाद मेँ, रोज़ाना सैकड़ोँ मुवक़्क़िल, वादी दिख जाएँगे जिनकी हालत मुवक़्क़िल जैसी कम और शादी के दिन लड़की के बाप जैसी ज़्यादा लगती है....
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Gopal Sharma :
प्रकाश जी, इस घटना के बारे में जानता हूँ क्योकि जहाँ मै (कोरबा) रहता हूँ उससे से कुछ ही दूरी पर जांजगीर है .जज साहब के सामने बैठ कर खुले आम बाबू पैसे लेते है, सच मे कानून अँधा है और छत्तीसगढ़ मै तो तरक्की बहुत हुए है पर न्याय पालिका घ्वस्त हो गयी है जग्गी हत्या कांड और बिनायक सेन प्रकरण सब को मालूम है  
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रमा शंकर शुक्ल : 
एक घटनाक्रम को लेकर समूची न्याय प्रणाली और भारतीय सिस्टम पर प्रकाश जी की चिंता को चलताऊ नहीं कहा जा सकता. दर-असल भारत का हर दफ्तर इसी मानसिकता में संचालित है. एक घटनाक्रम बता रहा हूँ - 

मेरे विद्यालय के प्रभारी प्रबंधक सिटी मजिस्ट्रेट दया शंकर पाण्डेय आवास विकास प्राधिकरण के बड़ें सचिव थे. मैंने अपने मकान का मैप दो माह बीत जाने के बाद भी जब पास होना नहीं पाया तो सीधे पाण्डेय जी के दफ्तर में घुस गया. यह जानते हुए भी कि ये महाशय मुझे सस्पेंड भी कर सकते हैं. मैंने उनसे अपना परिचय देने के बाद सीधा सवाल किया "जानने आया हूँ कि क्या 5000 रुपये न देने पर मेरे घर का नक्सा नहीं पास होगा?" उन्होंने पूछा कि यह किसने आपसे कहा? मैंने बिना किसी संकोच के बताया कि "आपका सिस्टम. आप हमें केवल यह बताएं कि मेरी फ़ाइल किस आधार पर दो माह से रोकी गई है. जब जे.एई. ने पोजिटिव रिपोर्ट लगा दी तो आपने उसे क्यों नहीं फाइनल किया. आपके नीचले अधिकारी कहते हैं कि साहब को 5000 देना होता है." पाण्डेय जी ने झेपते हुए कहा कि यह तो गलत कह रहे हैं लोग. अरे घर-मकान बनाते समय लोग अपनी ख़ुशी से दे देते हैं." मै चकित था. एक मजिस्ट्रेट का यह बयान हजम नहीं हो रहा था. मैंने फिर पूछा, मान्यवर एक बात पूछूं. "आप धोबी, नाऊ, पंडित, कोहार हैं क्या कि लोग आपको नहछू नहावन के नाम पर 5000 खुश होकर दे देंगे. इस सवाल का उत्तर उनके पास न था. उन्होंने तत्काल मेरी फ़ाइल मंगाकर हस्ताक्षर कर दिया." 

मै काफी कुछ कह चूका था. आगे विवाद बढ़ता, इसलिए चला आया, लेकिन सवाल तो जस का तस खड़ा हा कि जिसमे इतना साह्स न हो, उसके काम का क्या होगा? दूसरा यह कि सिस्टम के हिसाब से निचले स्टार से यदि फ़ाइल पूरी है तो उसे खुद-ब-खुद उच्चाधिकारी के पास पहुँच जाना चाहिए. पर किस व्यवस्था के तहत वे ही फाइलें उच्चाधिकारी के पास भेजी जाती हैं, जिसे सिर्फ तभी भेजा जायेगा, जब उच्चाधिकारी मंगाएगा. अंदरखाने से पता चला कि निचले स्तर के कर्मचारी से उच्चाधिकारी पूछते हैं कि कितनी फाइलों का पैसा मिला है. जिनका मिल गया हो, उनकी फाइलें लेकर आओ. 

अब यदि किसान ने भरी अदालत में जज को पैसा देना चाह तो क्या बुरा किया. यदि वह ऐसा न करता तो शायद हम और आप इस घटना से अवगत न होते. वह किसान बधाई का पात्र है. हमें भी इस तरह के कार्य करने होंगे. कम से कम वहां के सिस्टम पर चर्चा तो शुरू होगी. उन अधिकारियों को लज्जित तो होना पड़ेगा.
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Hari Shankar Pandey :
व्यवस्था में व्यापक रूप से कमी है? आम आदमी करे तो क्या करे ? 
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Avinash Bhardwaj :
कानून की धाराओं के अनुसार दुखुराम बेशक अपराधी है. क्योंकि कानून अँधा होता है और वो फैसला केवल सबूतों के आधार पर देता है. लेकिन दुखुराम की गैरआपराधिक मंशा और मासूमियत के मद्देनज़र उसे माफ़ किया जा सकता है. 
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Ranju Bhatia :  
sacche kisse aaj ke kisse .. har jagah prakashit hote hain . ham padhte hain aur fir wahi sab ..........andhe goonge aur bahre ho jaate hain ...
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Narendra Singh Tomar Nst :
दुखुराम दोषी नहीं है .... तारीख बढ़वाने के लिये भरी व खुली अदालत में ऐसी पेशकश पर रिश्वत देने का आरोप नहीं बनता .... दुखुराम को छुड़वाया जाना चाहिये .... अलबत्ता अदालत की अवमानना करने का यानि अपमान करने का केस बन सकता है ... वह भी तब जब दुखुराम का कोई दुराशय साबित हो ...  

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Aditi Chauhan : 
Dukhuram seedha sada aadmi tha...usko to jaisa logon ne bataya us bechare ne kiya. iski saza bas itni honi chahiye ki us se wahin kaan pakad ke uthak baithak karwa lete.
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Shail Agrawal :
aakhri tinke pe aas lagaye baitha tha, Use kya pata tha ki Yahi chubhega. 
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दिनेशराय द्विवेदी :
सजा मिलनी चाहिए उन राजनेताओँ को जो पर्याप्त अदालतों की व्यवस्था नहीं करते। लेकिन जज उन का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते। 
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Dinesh Aggarwal :  
सब जानते हैं कि न्याय बिकता है तथा जज राजनीति से प्रभावित होते हैं अन्यथा अब तक आधे से अधिक नेता जेलों में होते एवं राजाओं, कनिमोझियों, कलमाड़ियों की जमानत न होती। स्टाम्ट घोटाले में शरद जी जेल में होते। चारे में लालू जी, कोयले में आधे काँग्रेसी, बीजेपी के नैता जेल में होते। किस किस न नाम लूँ लगभग सभी बड़े एवं ऊँचे कद के नेता जेल में होते।
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