शनिवार, सितंबर 05, 2015

हिंदी के अध्यापक और साइकल मिस्त्री


परसों की बात है 

हिंदी के अध्यापक मिश्रा जी साइकिल मिस्त्री की दुकान पे हवा डलाने पहुँचे 

मिश्रा जी :- लो भाई !!! अगले पहिये में हवा डाल दो. थोड़ी कम है 

दुकानदार :- मास्साब ! आप तो हिंदी के टीचर हो जरा शुद्ध हिंदी में बताओ तो हम भी जाने कि आप हमारे बच्चों को कितना अच्छे से हिंदी पढ़ाते हो. 

मिश्राजी :- प्रथम तो ये, क़ि मुझे शिक्षक उदबोधित् कीजिये टीचर नहीं ... अब सुनो :

"हे कनस्तरनुमा ! लौह~गुमठि में विराजमान द्विचक्र~वाहिनी सुधारक, मेरी द्विचक्र~वाहिनी के अग्रिम चक्र से अल्प वायु निगमन कर गयी है ,,, कृपया अपने वायु-रेचक यंत्र से अग्रिम चक्र में थोड़ी वायु प्रविष्ट करने की कृपा करें, ताकि मैं नियत समय पर पहुँच कर, आप जैसे मूढ़मति पिता के ज्ञानरिक्त मस्तिष्क लिये बैठे पुत्रों के मस्तिष्क में ज्ञान की प्रविष्टि करने की अपनी दैनिक क्रिया को पूर्ण कर सकूँ ... . समझे ??? 


तब से आज तक साइकिल वाले दुकानदार का सिर घूम रहा है ! .
.
.
:-) :-) :-) 
.
================================================== 
फेसबुक लिंक
==================================================

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

'आप की आमद हमारी खुशनसीबी
आप की टिप्पणी हमारा हौसला' !!

संवाद से दीवारें हटती हैं, ये ख़ामोशी तोडिये !!
*****************************************************