सोमवार, सितंबर 07, 2015

कला पारखी और जुम्मन मियां


बाजार की एक गली में जुम्मन मियां की छोटी सी मगर बहुत पुरानी कपड़े सिलाई की दुकान थी। उनकी इकलौती सिलाई मशीन के बगल में एक बिल्ली बैठी एक पुराने गंदे कटोरे में दूध पी रही थी। 

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एक बहुत बड़ा कला पारखी जुम्मन मियां की दुकान के सामने से गुजरा। बिल्ली के कटोरे को देख वह आश्चर्यचकित रह गया। वह कला-पारखी होने के कारण जान गया कि कटोरा एक एंटीक आइटम है और कला के बाजार में बढ़िया कीमत में बिकेगा, लेकिन वह ये नहीं चाहता था कि जुम्मन मियां को इस बात का पता लगे कि उनके पास मौजूद वह गंदा सा पुराना कटोरा इतना कीमती है। 
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कला-पारखी ने दिमाग लगाया और जुम्मन मियां से बोला - 
'बड़े मियां आदाब ! आप की बिल्ली बहुत प्यारी है, मुझे पसंद आ गई है। क्या आप बिल्ली मुझे देंगे? 
चाहे तो कीमत ले लीजिए।' 
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जुम्मन मियां ने पहले तो इनकार किया मगर जब कला-पारखी कीमत बढ़ाते-बढ़ाते दस हजार रुपयों तक पहुंच गया तो जुम्मन मियां बिल्ली बेचने को राजी हो गए।
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कला-पारखी जुम्मन मियां को दाम चुकाकर  बिल्ली लेकर जाने लगा। अचानक वह रुका और पलटकर जुम्मन मिया से बोला - 
"बड़े मियां बिल्ली तो आपने बेच दी। अब इस पुराने कटोरे का आप क्या करोगे? इसे भी मुझे ही दे दीजिए। बिल्ली को दूध पिलाने के काम आएगा। चाहे तो इसके भी 100-50 रुपए ले लीजिए।' 
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जुम्मन मियां ने जवाब दिया - 
"नहीं साहब, कटोरा तो मैं किसी कीमत पर नहीं बेचूंगा, क्योंकि इसी कटोरे की वजह से आज तक मैं 50 बिल्लियां बेच चुका हूं। 
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:-) :-) :-)
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